ऐसे काटा और ऐसे उलट गया
आज कतिपय लोग अपनी बात से, अपने द्वारा किए गए काम से, अपने बयान से, अपने वक्तव्य से, अपने वादों से मुकर जाते हैं। और कुछ लोग जो समझदारी दिखाने की कोशिश में रहते हैं वह अपने वक्तव्य पर खेद प्रकट कर देते हैं । जैसा कि चुनावी माहौल में इन दिनों हमारे जनप्रतिनिधि अपनी प्रवृत्ति अनुसार उदाहरण पेश भी कर रहे हैं । अब कल की ही तो बात है, हमारे नेता जी ने जाति वर्ग भेद सांप्रदायिकता के कुछ ऐसे भाव प्रकट कर दिए कि आलाकमान के कहने पर उन्होंने तुरंत खेद प्रकट करने में ही भलाई समझी।
दरअसल ऐसी प्रवृति नई नई पैदा नहीं हुई है। प्राचीन काल से ऐसे लोग समाज और राज में रहे हैं। मैंने ऐसा तो नहीं कहा था… कहने में देर नहीं लगाते। फिर आज तो मीडिया द्वार प्रचार प्रसार का जमाना है और ऐसे में कोई बात पलभर में दुनिया भर में चर्चा का विषय बन जाती है। तुर्रा यह कि अधिकांश विवादित मामलों में संबंधित पक्ष यह कह कर पल्ला झाड़ने का प्रयास करता है कि मेरे या हमारे कहने का गलत अर्थ लगाया गया है। हमारे कहे को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है। बड़े बुजुर्गों की बात याद करें तो ‘‘काटा और उलट गया’’ के माइने समझ में आते हैं।
उलट या पलट जाने के माइना भी हर बात की तरह एकाधिक हैं। उलट जाना यानी सर्प की तरह काट कर उलट जाना। किसी काम को करके मुकर जाना। अपने अनुभवों के इशारों से बुजुर्गों ने ऐसे लोगों से सेचत रहने की नसीहत दी है। यह बात हमें आज परचूनी की दुकान पर बूढ़ी काका ने समझाई, काकी चाय की पत्ती लेने आईं थी मगर सास-बहू के किस्से सुनाकर अपनी बहू के हुकमनामे जाहिर कर रही थीं। वे बोलीं – बेटा, वक्त बदल गया। हम बहू थीं तो सासुजी से चाय बनवातीं थी, आज तो बहू सबकुछ करवाती है। और कोई टोके, रोके तो पलट जाती हैं। नेताओं की तरह। बूढ़ी काकी की बात से परचूनी की दुकान राजनीतिक बहस दिखाते किसी टीवी चैनल की मानिंद हो गयी, मौजूद सभी अपनी-अपनी हांकने लगे। हर कोई नौ-नौ गज की जुबान लपलपाता लगा। हम सोच में पड़ गये – किसी काम को बढ़ा चढ़ा कर ऐसे भी पेश किया जाता है। नैताओं की की तरह! तिनके की चटाई, नौ बीघा फैलाई। काम से अधिक प्रचारित करना। याद आया, 2 दिन पहले ही बड़े नेता जी ने हमारे राज्य के सीएम के लिए कहा वही काम तो बहुत किए है परंतु प्रचार में पीछे रह रहे। तब तो बात समझ में नहीं आई थी किंतु बूढ़ी काकी की बात पर परचून की दुकान पर छिड़े संवाद में लोगों की कही बातों से यह समझ में आने लगा कि काम कम प्रचार ज्यादा यह तो दुनिया की पुरानी रीत है लेकिन प्रचार कम और काम ज्यादा नई रीत है। पुरानी के तहत अक्सर सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार में ऐसा होता है। कुछ निजी क्षेत्र की कपनियां भी अपने लाभ को बढ़ाने के लिए अपने कामों को बढ़ा चढ़ा कर प्रचारित करती हैं।
ऐसी ही प्रवत्ति किसी व्यक्ति में भी दिख जाती है। परंतु जैसे ही उनकी लंबी – लंबी छोड़ी गयी बातों पर आक्षेप लगने लगते हैं कहने वाले लोग अपनी बात से मुकर जाते हैं । यानी काटते पहले हैं और उलटते बाद में है। इसकी जानकारी हो भी तो फर्क क्या पड़ेगा। हां, सीधा समाज और लोगों के हित से जुड़े सरकारी और अन्य क्षेत्रों के कामों के बारे में ऐसे प्रचार का असर पड़ता है। लोगों की जेब से ही निकाली गई राशि से भरी सरकार की तिजोरी जो खाली होती है। और नेताजी के लिए सबसे बड़ी बात भी मामूली कि वे इसे इत्ती-सी छोटी बता देते हैं। नेता ही ऐसा कर सकते हैं, कह दो और फिर बाद में सफाई पेश कर दो हम तो मजाक कर रहे थे। और भाईजी, यह भी हम नहीं कहते । ऐसा तो बूढ़ी काकी कहती हैं जो चाय पत्ती लेकर बहू के दरबार की ओर चली गयीं।
वे ही बता गयीं कि ऐसा बुधवार को एक नेता के मजाक में कहे गए “हार-जीत और सुसाइड” से जुड़े वक्तव्य से जुड़े विवाद के बाद लोग कहने लगे कि नेताजी इसे मजाक बता रहे थे जिसे उन्होंने पहले कहा था । यानी उन्होंने काटा और उलट गये।