बीकानेर. उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान को सरसब्ज करने वाली इंदिरा गांधी नहर, गंगनहर और भाखड़ा नहर को पानी की आपूर्ति करने वाले बांधों में अभी पानी की आवक कमजोर है। हिमाचल में बारिश कम होने से नदियों में पानी का फ्लो कम रह रहा है, जिससे बांधों का जलस्तर अपेक्षानुरूप नहीं बढ़ रहा है। जो आगे राजस्थान के किसानों को पानी की पर्याप्त आपूर्ति करने में परेशानी पैदा कर सकता है। इसी के साथ पहले से बांधों का अधिकतम भरने का स्तर दस फीट घटाया हुआ है। इसकी वजह से भी बांधों में पानी की मात्रा कम भंडारित हो रही है।

सितम्बर तक भरने का समय

बांधों को भरने का समय 21 मई से शुरू होता है तथा 20 सितम्बर तक जल भंडारण किया जाता है। इसके बाद 21 सितम्बर से 20 मई तक इस पानी को नहरों के माध्यम से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर को वितरित किया जाता है। यदि बांधों में पानी कम भंडारित होता है, तो सभी राज्यों को उस अनुपात में कम पानी मिलता है।

जानिए कहां से आता है यह पानी

हिमाचल में बने पौंग व भाखड़ा बांध तथा जम्मू-कश्मीर में बने रणजीतसागर बांध में रावी, व्यास और सतलुज नदी का पानी आता है। यह नदियां हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र से निकलती हैं। हिमाचल में अच्छी बारिश होने पर बांधों में पानी की आवक अच्छी रहती है। रविवार को पौंग बांध में 18 हजार 600 क्यूसेक और भाखड़ा में 33 हजार तथा रणजीत सागर में 10 हजार क्यूसेक पानी की नदियों से आवक हो रही थी।

बीस-तीस साल बाद ही घटा दी क्षमता

पौंग बांध का निर्माण कार्य वर्ष 1974 में तथा भाखड़ा बांध का निर्माण 1964 में पूरा हुआ। यह तीन सौ साल तक उपयोग में लेने के हिसाब से इंजीनियरों ने डिजाइन कर बनाए थे। सरकारों की ओर से बांधों का वाटर लेवल बीस-तीस साल बाद ही कम कर दिया गया। मसलन पौंग बांध की डिजाइन क्षमता 1400 और भाखड़ा की 1690 फीट की थी। जुलाई 1990 में दस-दस फीट घटाकर 1400 और 1680 फीट कर दिया गया। इससे करीब दो-दो मिलियन एकड़ फीट पानी का भंडारण कम होने लगा। जिसका खामियाजा सिंचित क्षेत्र भुगत रहे हैं।बांधों का निर्माण करते समय जो डिजाइन क्षमता थी, उसी के हिसाब से भरते रहे थे। परन्तु सरकार ने इनकी देखभाल और रख-रखाव को और ज्यादा बेहतर करने के बजाए 1990 में दस-दस फीट अधिकतम वाटर लेवल कम कर दिया। जिससे बांधों के दस-बारह फीट खाली होने के बावजूद अतिरिक्त पानी को हर साल पाकिस्तान बहा दिया जाता है। बाद में जनवरी से मई के बीच हमारे किसान पानी को तरसते हैं। वर्ष 1954 में रावी-व्यास नदी के पानी का आंकलन 15 मिलियन एकड़ फीट का कर राजस्थान को 52 फीसदी यानी 8 एमएएफ हिस्सा दिया गया। बाद में 1981 में दुबारा आंकलन करने पर पानी 20 मिलियन एकड़ फीट माना गया। इस हिसाब से 0.6 एमएएफ हमारा पानी नहीं दिया जा रहा है। अभी बांधों में जल भंडारण का समय चल रहा है। बांधों की मॉनिटरिंग और रख-रखाव के साथ नदियों के बहाव क्षेत्र आदि का प्रदेश सरकार को भी समय-समय पर निरीक्षण करते रहना चाहिए। क्योंकि यही पानी बांधों के माध्यम से हमारी नहरों से इलाके में पहुंचता है।