आंख फेरे तोते की-सी, बात करे मैना की-सी कथन कुछ नेताओं पर और कुछ राजनीतिक दलों पर बिल्कुल फिट बैठता है। अब देखिए न… टिकट न मिला तो हमारे नेताजी ने अपनी पार्टी से कैसे आंखें फेर ली। समर्थकों ने भी अंधेरी रात में हो-हल्ला कर मोहल्ले के घरों की की लाइटें जलवा दी। और पार्टियों ने भी कैसे दुनियाभर के तोतों को पछाड़ते हुए अपने वादों की टोकरी कूड़े के ढेर के हवाले की व प्रिय नेताओं से नैन-मटक्का करने लगीं। भाईजी, पार्टियों के प्रत्याशियों की देर रात तक मशक्कत के बाद जारी सूचियां और नेताओं के शहर-शहर आवासों के बाहर बना माहौल तो ऐसी ही कहानियां बयां कर रही हैं।

सूची से बाहर रहे यही नेताजी पिछले चुनाव में इस पार्टी के कसीदे पढ़ते नहीं थके थे और अब जिसका दामन थामा है तब उस पार्टी को पानी पी पी कर कोसते थे। इन तोताचश्म मैनाराम जी नेता ने हम से वोट लेने का अपना काम निकालने के लिए पहले तो बहुत वादे किए मगर चुनाव के बाद हमारी ओर से तोते की तरह आंख फेर कर ऐसे उदासीन हो गए जैसे हमें जिंदगी में कभी देखा ही न हो। हम आप तो जानते ही हैं कि आंख का नूर और दिल की ठंडक वही नेता बन पाता है जो बात भी मैना की-सी करे और तोते की तरह आंख भी न फेरे। नेता ही क्यों, समाज में कतिपय अन्य चरित्रों पर भी यह बात लागू होती है। खैर, अफसोस तो वह कार्यकर्ता भी कर रहे हैं जिन्होंने पार्टियों के लुभावने बोलो पर पहले तो काम किया फिर सर्वे के लिए भागदौड़ की फिर बूथ बूथ घर घर खेल खेला और अंतत: कुर्सी के लिए “टीला” खोदकर सिंहासन निकाला तो उस पर बैठने के लिए पर्चियां कटी ।

यह ऐसे ही लोगों का कहना है हम नहीं कहते कि मशक्कत करने वालों के नाम कट गए। पर्ची पर नाम उन लोगों के सुनहरे अक्षरों में लिखे हुए दिखने लगे जिनके बारे में कार्यकर्ता कभी सोच भी नहीं पा रहे थे । वे तो यह भी कह रहे हैं कि देश में ऐसी ही पार्टियों ने राजनीतिक गरिमा को प्रभावित किया है। समाज में ऐसे नेताओं को मान सम्मान भी देना पड़ता है । लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है । वक्त आने पर उसे असलियत से वाकिफ करवा भी देती है। हम भी पब्लिक ही हैं न । हमारे कारण ही राजनीतिक हलकों में चुनावी रणभेरी बजने पर ऐसे नेताजी कुर्सी पर विराजमान होते हैं। अगले चुनाव तक हमें दूध में गिरी मक्खी की तरह अपनी याददाश्त से निकाल फेंकते हैं । फिर चुनाव आने पर, जैसे कि इन दिनों, तोताचश्म मैना राम जी मुंह की खाते हैं । यही कारण है कि हमने पांच पांच साल में सरकार बदलने की ठान रखी है। हमारा नारा – हर बार नई सरकार । न तो हम अपने निर्णय बदलते हैं और न ही तोताचश्म मैना राम नेता अपनी प्रवृति को परिवर्तित करते हैं। लेकिन सामाजिक जीवन में तोते की तरह आंख फेरने और मैना की-सी बात करने वाले लोग अपने साथियों से पिछड़ जाते हैं।

चुनावी माहौल में जो नेताओं के किस्से गूंज रहे हैं वे आने वाले दिनों में भी और आगामी चुनावों में भी चटखारे लेकर सुने सुनाए जाते रहेंगे। धार्मिक कथाओं की तरह अंत भला तो सब भला। ऐसे नेताओं के किस्से भी तोता-मैना के किस्सों की तरह लोगों की जुबान पर रहते हैं। जो आंख फेरे तोते की-सी, बात करे मैना की-सी।