जोधपुर. राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के 100 ऊंट का दस्ता शामिल होगा। इनका नेतृत्व संग्राम नामक ऊंट करेगा, जिस पर बीएसएफ जोधपुर के डिप्टी कमाण्डेंट मनोहर सिंह खीची सवार होंगे। संग्राम के पीेछे-पीछे जगुआर, गजेंद्र, युवराज, मोती, मोनू, गुड्डू सहित विभिन्न नाम के 99 ऊंट परेड करते हुए राजपथ पर आगे बढ़ेंगे। इस बार तेज भागने वाला मिल्खा ऊंट नहीं दिखेगा। मिल्खा को बॉर्डर की ड्यूटी पर जैसलमेर भेजा गया है।
कोविड-19 के कारण केंद्र सरकार ने इस बार राजपथ पर होने वाली परेड में कई झांकियां और अन्य सुरक्षा बलों के दस्ते को छोटा कर दिया है, लेकिन राजपथ की शान बीएसएफ का ऊंट दस्ता 100 का ही रहेगा। इसमें चालीस ऊंट बीकानेर और साठ ऊंट जोधपुर से गए हैं। गोरबंद, लूम सहित 70 तरह के आभूषण की परंपरगत पौशाक पहनकर ऊंट राजपथ पर चलेंगे। इन पर 100 बीएसएफ के जवान होंगे जो केसरिया साफा, अचकन, ब्रिजेस, सिरपेच कमरबंद, कलंगी सहित अन्य आभूषण व परिधान के साथ दुल्हे की तरह तैयार होकर सवार होंगे। ऊंटों पर 54 जवान केवल सफेद पौशाक में रहेंगे जबकि 36 जवानों का बैंड होगा। बैंड की स्वरलहरियों के साथ ऊंट मार्च पास्ट करेंगे।
जोधपुर में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं बीएसएफ के ऊंट
बीएसएफ के पास करीब 1200 ऊंट हैं। ऊंटों को जोधपुर में मंडोर रोड स्थित बीएसएफ के सहायक प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षित किया जाता है। बीएसएफ 5 साल के ऊंट को प्रशिक्षण के लिए चुनती है। प्रशिक्षण केंद्र में ऊंटों को बैंड की धुनों, तेज आवाज के साथ संयोजन, चलने का क्रम, उठने-बैठने का तरीका, गर्दन घूमाना सिखाया जाता है। एक ऊंट बीएसएफ में करीब 15 साल तक सेवाएं देता है। उसके बाद उसे सेवानिवृत्त कर दिया जाता है।
1976 में पहली बार शामिल हुए ऊंट दस्ता
राजपथ परेड में पहली बार वर्ष 1976 में बीएसएफ का ऊंट दस्ता शामिल हुआ था। उस वक्त ऊंटों को खास प्रशिक्षण नहीं दिया गया था। वर्ष 1990 से ऊंट दस्ता बैंड के साथ सम्मिलित होने लगा।
राव बीका ने बनाया केमल कैवेलरी, आर्मी ने बीएसएफ को सौंपी
मारवाड़ नरेश राव जोधा के पुत्र राव बीका सौ ऊंट लेकर नया राज्य बसाने के लिए अलग हो गए थे। उन्होंने बीकानेर बसाया। वर्ष 1465 में बीकानेर में ऊंट दस्ता गठित हुआ। इसके बाद बीकानेर रियासत के सभी राजाओं ने ऊंटों को अपनी सेना में रखा। महाराजा गंगा सिंह की विश्व प्रसिद्ध सैन्य टुकड़ी गंगा रिसाला में ऊंट सवारों की सेना थी। आजादी के बाद बॉर्डर की सुरक्षा के लिए भारतीय सेना ने ऊंट दस्ता ले लिया। आर्मी की 13 व 17 ग्रेनेडियर ने ऊंट अपने पास रखे। वर्ष 1948 और 1965 की जंग में आर्मी ने बॉर्डर पर ऊंटों के साथ लड़ाई लड़ी। बीएसएफ की स्थापना 1965 में होने के बाद आर्मी ने अपना ऊंट दस्ता बीएसएफ को दे दिया। बीएसएफ ने 1971 में पाक के साथ हुई जंग में ऊंटों का बेहतरीन इस्तेमाल किया। जेपी दत्ता निर्देशित मशहूर फिल्म बॉर्डर में भी बीएसएफ के ऊंट दस्ते को दिखाया गया है।