बीकानेर का 533 नगर स्थापना पर्व मनाने की तीव्र इच्छा होली के बाद ही प्रारम्भ हो जाती गणगौर पर्व के बाद पतंगबाजी ओर अखय तृतीया उठिक हर बीकानेर वासी को होती है क्यो ना हो यह हमारे नगर की वर्षगांठ है यह लोक संस्कृति ओर लोक जीवन का पावन अखय पर्व है जो सनातनी है । ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है।

भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव  और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था, ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं,जी.एम. हिंगे के अनुसार तृतीया ४१ घटी २१ पल होती है तथा धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया ६ घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसा इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए,इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता।

मदनरत्न के अनुसार:
“अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥

यानि इस तिथि को किया गया हर कार्य सिद्ध होता ही है 
हम नगर स्थापना के साथ सनातनी अखय पर्व भी मनाते हैं घर में अखय अनाज से बना खीचड़ा , बनाते है नई मटकी हांडी ओर लोटडी से शुभता का शगुन करते है किसान खेतो में खेत की पूजा और एक अच्छी फसल ओर वर्षा का शगुन ओर टोटका करते है मगर सबसे बड़ा रोचक और आनद आता है पतंगबाजी में भरी दुपहरी में भी छत्तो पर बॉय काटा बॉय काटा के साथ पतंग उठाने ओर लूटने का लुप्त रोमांचकारी होता है सारा नगर एक साथ छत्तो पर एकत्रित होकर स्थापना पर्व मनाते हैं यह घर्म पंथ ओर मतमतान्तर से पर्व सभी समाजो ओर धर्मालंबियों का पर्व है इस नगर के हर वासी का पर्व है सच कह यह धर्मनिरपेक्ष पर्व है इस माटी के लालो का जोश और शौर्य और ऐतिहासिक गौरव का पर्व है जिस पर सभी को नाज है आज भी बीका जी राज सदैव अखय रहे, सुहागिन का सुहाग अखय रहे, ताबरियो रा किन्ना अखय रहे सेठ साहूकारों का व्यापार अखय रहे जैसे श्लोक चन्दो पर लिखकर उड़ाये जाते है  चंदा उड़ाने की परंपरा तो नगर स्थापना से चली आ रही है हर धर से चंदा उड़ाना कभी शौभाग्य का प्रतीक माना जाता था ,राव बीका द्वारा 533 वर्ष पूर्व 12 अप्रेल 1488 को शौभाग्यदीप किले (वर्तमान लक्ष्मी नाथ मन्दिर के गढ़ गणेश) की छत्ते से चंदा उठा कर नगर स्थापना का गगनचुंबी शंखनाद किया था उसके बाद वर्षो तक नगर में चंदा उठाने की ही परम्परा चलती रही तब तक पतंगबाजी नही होती थी मगर राजा रायसिंह जी द्वारा ई वी 1594 को जूनागढ़ के निर्माण के बाद नई किले में प्रथम नगर स्थापना के अवसर पर चंदे के साथ पतंग उठाई तभी से बीकानेर में नगर स्थापना पर पतंगबाजी होने लगी ठाकुर विजयसिंह मोहता की बहि के अनुसार ,ओर दयालदास की ख्यात के अनुसार तो जूनागढ किले की नींव भी अखय तृतीया को ही रखी गई थी तब से  अखय तृतीया ओर नगर स्थापना पर पतंगवाजी नगर की पहचान और हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा ही नही हमारी संस्कृति ओर परम्परा बन गई 532 वर्षो से हम इस परम्परा को अनवरत निभाते आ रहे है मगर जीवन संघर्ष और चुनौतियों का नाम है इस वर्ष ईश्वर हमारी परीक्षा ले रहा है जांगल देश के हम निवासी जो हिमालय की कोख से पानी छीन पर लाने वाले गंगासिंह के वंशज ओर अकबर की छाती पर चढ़कर सतीत्व की रक्षा करने वाली किरनकुमारी की संतानें ओर माँ करणी के भक्त हर विपदा से लड़ना जानते है इस वर्ष कोरोना बीमारी के कारण प्रशासन द्वारा पतंगबाजी निषेध है

नगरवासियों के स्वास्थ्य और जीवन की सुरक्षा के लिये यह उचित कदम भी है मगर हमें निराश होने या हतोत्साहित होने की जरूरत नही है नगर स्थापना पर्व ओर अखय तृतीया तो पावन ओर अबूझ पर्व है जिसका शुगन अखय भोजन करने दान करने, नई वस्तुओं की खरीद ओर उनका उपयोग करने से है यह सनातनी पर्व पतंगबाजी का पर्व नही है जीवन में शुभता ओर नवाचार का पर्व है बसन्त के बाद ग्रीष्म ऋतु के आगमन ओर एक अच्छे जमाने की प्रार्थना का पर्व है, चलो इस बार आसमान में नही दिलो की गहराइयों  में जगत के कल्याण हेतु आशा और विश्वास की डोर से उम्मीदों की पतंग उठाते हैं कि हम कोरोना से जीतेंगे , हर हाल में जीतेंगे इस विषाणु पर मानवता की फतह होगी और 2021 में इस साल से अधिक इक्कीस होकर,दोगुनी जोश से फिर से नगर स्थापना पर्व मनाएंगे इस वर्ष आध्यात्मिक होकर जीवन्देयता के लिये मानस  पतंगबाजी से ही यह लोक पर्व मानाएँगे 

लेखक : डॉ राजेन्द्र जोशी