गहलोत

बीकानेर/जयपुर। प्रदेश में सीएम बनने के बाद कांग्रेस हाइकमान राहुल गांधी के चाणक्य अशोक गहलोत दिल्ली छोड़ रहे हैं। सालभर से भी कम समय में दिल्ली में रहते हुए पार्टी में नंबर दो के नेता की पोजीशन हासिल करने वाले गहलोत के दिल्ली से हटने के साथ ही संगठन महासचिव के लिए नए चेहरे की तलाश शुरू हो गई है। कई नामों पर चर्चा भी हो रही है।

वहीं दूसरी तरफ गहलोत के सीएम बनने और दिल्ली छोडऩे के बीच सियासी गलियारों में यह चर्चा भी जोर पकडऩे लगी है कि इस निर्णय से वे क्या खोएंगे और अब क्या हासिल करेंगे। ये चर्चा इसलिए हो रही है, क्योंकि गहलोत पार्टी में जिस पद को छोड़कर अपने गृह राज्य लौटे हैं, उसे पाने के लिए ना जानें कितने नेता वर्षों से आस लगाए बैठे हैं।

वैसे भी राजस्थान की राजनीति में गहलोत का कांग्रेस के भीतर 1998 से एक छत्र राज बना हुआ है। हालांकि इस बार जो सरकार बनी है, उसमें अब वो बात नहीं है जो कि 2008 तक में बनी सरकार में रही है।

इस बार उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पीसीसी चीफ सचिन पायलट के डिप्टी सीएम होने के कारण जयपुर से लेकर दिल्ली तक तीन पावर सेंटर बन गए हैं। तीनों पावर सेंटर के बीच की मशक्कत सरकार बनने के बाद मंत्रिरपरिषद से लेकर मंत्रियों के विभागों के बंटवारे के दौरान बखूबी देखने को मिली है। लेकिन गहलोत को करीबी से जानने वालों का कहना है कि राजनीति के माहिर खिलाड़ी गहलोत हर परिस्थिति से निकलना जानते हैं।

जानकारों की मानें तो रणनीतिक कौशल में माहिर गहलोत ने दिल्ली छोडऩे का फैसला काफी सोच समझकर किया है। उनका कहना है कि दिल्ली की सियासत में वही टिक सकता है जिसकी जड़ें काफी गहरी हों। यदि ऐसा नहीं है तो दिल्ली में ज्यादा समय तक अपने पांव पर खड़ा रह पाना नेताओं के बस की बात नहीं है।

बात कांग्रेस की हो तो गहलोत से पहले पार्टी के दिग्गज नेताओं में शामिल दिग्विजय सिंह, सीपी जोशी और जनार्दन द्विवेदी की ताकत एक समय में काफी बड़ी थी लेकिन जैसे ही राजनीति की हल्की सी हवा चली तो हर कोई ताकतवर पदों से उखड़ गया।

जानकारों का कहना है कि इसे अच्छी तरह से गहलोत समझते हैं, यही वजह है कि उन्होंने सम्मानजनक तरीके से दिल्ली छोड़ दी। गहलोत को अच्छे से मालुम है कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस के लिए सत्ता की सीढ़ी चढऩा काफी मुश्किल है।

यही वजह है कि वे अपने रणनीतिक कौशल पर बिना कोई दाग लगाए सम्मान रूप से दिल्ली से हट गए हैं। इसके बाद अगले चुनाव तक राजनीति के ‘गंगा’ में बहुत सारा पानी बह जाएगा और स्थितियां भी बहुत बदल जाएगी।