अचानक तो चांद आज तक नहीं निकला। चंद्रोदय और चंद्रास्त का समय तय होता है। फिर भी चुनाव में प्रत्याशी से लेकर मतदान प्रतिशत के अनुमान हो या किसी कार्य के नतीजों पर मंथन हो, तकरीबन हर विषय के परिणाम जाहिर होने के संशयों की इतिश्री के लिए बातचीत में प्रचलित है – चांद निकलेगा तो दुनिया देखेगी ।
चुनावी दौर में भावी प्रत्याशियों की सूची की झड़ी लगी रही। यह सूचियां बनाता कौन था? मालूम नहीं! अब जबकि नामांकन हो गए और चांद चमकने लगा तो भी सभी अनदेखा कर दूसरी ओर ध्यान खींचने लगे। तभी तो सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और वीडियो क्लिप के पासे कभी कांग्रेस की कभी बीजेपी की प्रत्याशियों की छवि पर कथित रूप से उछाले जाने लगे । शांत शहरों को भी विचलित कर देने वाली ऐसी करतूतें करने वाले जांच में पकड़े जाएं तो शांति मिले। शांति और सौहार्द के पर्याय शहर रूपी चांद में दाग लगाने की कोशिश करने वाले ऐसे ऐसे चेहरों की जितनी भर्त्सना की जाए उतनी कम है। भर्त्सना तो उन राजनीतिक पार्टियों की भी की जानी चाहिए जो सत्ता हासिल करने के लिए अपने ही कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्या करने से भी पीछे नहीं हटती। कार्य करने वालों की अनदेखी मतलब निकले हुए चांद को भी न देखना । ऐसे कुकृत्य करने वालों से पूछिए कि वे ऐसा किसके लिए कर रहे हैं? उन नेताओं के लिए जो अपनी पार्टी के भी ना हुए! चुनाव आने पर कुर्सी पाने की चाह में वे अपनी पार्टी को छोड़कर विरोधी पार्टी में चले गए! नेता कहे जाने वाले ऐसे चांद कार्य करके उभरे चांद से ज्यादा चमक वाले नहीं होते।
वे टिकट लेकर उदय होंगे तो क्या समाज का और क्या देश का भला करेंगे? ऐसे “चांदों” का क्या उदय होना और क्या अस्त होना, उनका तो अस्तित्व स्वतः ही अंधकार में विलीन हो जाना चाहिए। कार्यकर्ताओं को भी आज इस थाली में खाया कल उस थाली में खाया, छेद दोनों में किया, ऐसे नेताओं से उम्मीद रखना अपना और समाज तथा देश का समय व्यर्थ करना ही कहा जाएगा। सत्ता की कुर्सी हथियाने के लिए इतना उतावलापन ऐसे दागी नेताओं में भी दिख रहा है जिनको जनता का प्रतिनिधित्व करने के नाम पर अपना सिक्का बाजार में प्रचलित करना है। जनहित की बातों के लिए पूछने पर तो उनका सिर्फ इतना ही कहना होता है जब प्रयास जारी है, फाइनल होगा तो बता दिया जाएगा । लेकिन दुनिया है कि सोते में भी चुप नहीं रहती। प्रेमचंद की एक कहानी का वाक्य याद आ रहा है, दुनिया सोती है मगर दुनिया की दुनिया की जीभ नहीं सोती। ठीक उसी प्रकार प्रत्याशियों की छवि प्रभावित करने के साथ-साथ अपने शांत शहर में भी बवाल पैदा कर देने जैसी नकारात्मक बातों की बाढ़ मिनटों में सोशल मीडिया पर दिखाई दे जाती है। जबकि सबको मालूम है उगने से पहले चांद दिखता नहीं ।
चांद निकलेगा तो दुनिया देखेगी। लेकिन चुनावी माहौल में पार्टी की अधिकृत घोषणा हुई नहींं मगर कयासों के बाजार सज गए। कयासों के बाजार कितने ही गर्म क्यों ना हो उससे कुछ हासिल होने वाला तो है नहीं। ठीक इसी प्रकार दूसरे बड़े दिग्गज नेताओं के बारे में भी खूब अटकलों का दौर चला। अब देखना यह है कि अब यह कयास के बाजार कैसे-कैसे गुल और खिलाएंगे। जी… सच कहा आपने ।
कयासों के बाजारों में एक बार फिर अपने अपने काउंटर सजाए जाएंगे। तब दौर होगा – इस वर्ग के वोट किस नेता के कारण कटने वाले हैं, यह पार्टी यहां पर 3 बार जीती है अब मुंह की खाने वाली है। हालांकि कुछ आकलन सटीक भी हो जाते हैं । प्राय: राजनीति के जानकारों के विश्लेषण क्षेत्रीय समीकरणों के गुणा भाग से सही नतीजों के अधिकतम नजदीक होते हैं। लेकिन सटीक कहने वाले भी इससे इनकार नहीं करते कि – चांद निकलेगा तो दुनिया देखेगी।