ये क्या हुआ !
आज-कल अजीब कुछ होता लगता ही नहीं। अब देख लीजिए न… कबूतरों को हेलिकॉप्टर बनाया जाने लगा है । तब भी राजनीतिक जगत में कहां किसीको अचरज होता है ? चुनावी समर में हेलीकॉप्टरों ने कई विधानसभा क्षेत्रों में समीकरणों पर प्रभाव डाला है । चुनावी राजनीति का अनुभवी दिग्गज मतदाताओं के अलावा कौन हो सकता है ? वही दिग्गज मतदाता मौन के स्वर मुखर कर रहा है। वह ऐसे हेलिकॉप्टरों में से कुछ को थाली का बैंगन करार दे रहा है। यह कहते हुए कि हवा का रुख देखकर दल बदलने वाले थाली के बैंगन की मानिंद लुढ़कते ही रहते हैं। और गाल बजाना जारी रखकर जिसकी ओर गए उसकी लुटिया डुबोने का उनका रिकॉर्ड बनता है। ऐसे कथित नेताओं को मतदाता अंडे का शहजादा भी कह देते हैं, जो होते तो छोटे हैं मगर पेट में दाढ़ी रखने का ढिंढ़ोरा पीटते अपने से वरिष्ठ नेताओं को ही नसीहत देने लगते हैं। जैसे कि एक छोटी होती जा रही बड़ी पार्टी के एक प्रत्याशी ने मतदाताओं को कहा – “उनको” जानते हो न, उन्हें मैं जेब में रखता हूं तभी तो टिकट ले आया…! तभी तो बड़े कह गए हैं – अपनी गरज बावली, अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे। मतलब साफ है, कतिपय नेताजी अपने अन्दर के ढेर सारे दुर्गण न देखकर दूसरे नेताओं के अवगुणों पर ही भाषण पर भाषण पिलाते जाते हैं। ऐसे ही बन रहे मौसम का हाल जानने वाले बताते हैं कि तापमान गिरता जा रहा है । हवाएं अस्थिर है। और ऐसे में ठंड की बजाय गर्मी बढ़ रही है ।
कुछ जगहों पर यह भी सामने आता जा रहा है कि चुनावी रणभेरी गूंजने के बाद प्रारंभ में जहां स्थानीय प्रत्याशी को जनता अपनी पलकों पर बैठा रही थी, वहां हेलीकॉप्टर बन उतरे नेताजी दिलों पर छाने लगे हैं । कुछ सीटों के हेतु इससे उलट भी समीकरण दिखाई दे रहे हैं । दूसरी ओर कुछ नामों का चमत्कार भी सामने आ रहा है । इस बार राजस्थान विधानसभा के चुनावों में 319 ऐसे प्रत्याशियों के नाम सामने आए हैं जिनके नाम में राम अंकित है । और ऐसे प्रत्याशी केवल एक ही दल के नहीं बल्कि दोनों प्रमुख दलों के साथ साथ निर्दलीय व तीसरे मोर्चे में शामिल होने वाले भी हैं। तीसरे मोर्चे से याद आया कि तीसरे मोर्चे के प्रमुख नेताजी जहां-जहां पहुंच रहे हैं वहां निर्दलीय प्रत्याशियों की सभाओं में भीड़ बढ़ती दिखती है । ऐसे में भी समीकरण बिगड़ रहे हैं। साथ ही यह भी सामने आया कि एक स्थान पर तीसरे मोर्चे के प्रमुख नेता जी को भीड़ वांछित दिखाई नहीं दी और उन्होंने अपने समर्थित प्रत्याशी को नसीहत दी – भैया थोड़ी मेहनत करो तभी दिलों पर राज कर पाओगे। यह भी सच है कि कबूतर या हेलीकॉप्टर सभी जगह नहीं पहुंच पाते। उसी तरह राजनीतिक जगत में भी सभी कबूतर या हेलिकॉप्टर लैंड नहींं कर पाते और समीकरण गड़बड़ा जाते हैं। जानकार तो ऐसी गड़बड़ाई हुई सीटों में दोनों प्रमुख दलों के प्रमुख-प्रमुख नेताओं के समीकरण भी बिगड़े हुए बताने से नहींं चूक रहे। खैर, समीकरण बिगड़ने बनने का खेल ऐसा हो या न हो कुछ वाकिअे अजीब होते हैं। कुछ लगते अजीब हैं। कहते हैं, कोयल का अंडा कौआ सेता है। अजीब बात है न ! यह पार्टी के आलाकमानों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को चतुराई से अपना काम निकालने का संदेश है या धैर्य धारण कर अपना काम तन्मयता से करने का !
मतलब राजनीतिक जगत भी बाजारवाद की जद में आ गया। फाउंडर कार्यकर्ता-नेता कोई और, हेलिकॉप्टर की तरह टिकट ले उड़ान भरने हेलिपेड पर आन खड़ा हुआ कोई और? बाजारवाद के इस दौर में जब खुद को स्थापित करने के लिए समूह के समूह परिश्रम की भट्टी में खुद को झोंक रहे हैं, तब अजीब लगता है किसी उत्पाद की अनुकृति का रातोंरात ईजाद हो जाना। अजीब लगता है किसी मजदूर को भरपेट खाकर सोना भी नसीब न होना और जहां वह मजदूर दिनभर खटता है वहां के हुक्मरानों का रातभर जश्न मनाना। बड़े बुजुर्गों ने ऐसे ही हालात कभी अनुभूत किए होंगे। अजीब बात है, इस संसार में अंडे कोई और सेता है, बच्चे कोई और लेता है।