कोरोना काल में करवा चौथ का पावन पर्व आज बुधवार को मनाया जाएगा। अखंड सुहाग के निमित्त महिलाएं निर्जला व्रत रखेंगी। चंद्रोदय के बाद विधिपूर्वक पूजन करके अर्घ्य देंगी। परंपरा के अनुसार पति को चलनी से निहारने के बाद व्रत का पारण करेंगी।
हर सुहागिन के लिए प्रेम का प्रतीक करवा चौथ खासा मायने रखता है। लेकिन इस बार कोरोना कालखंड ने पर्व के प्रति आस्था, उल्लास को सीमिच कर दिया है। इस का प्रभाव पारंपरिक पूजन, श्रृंगार, आभूषमों और कपड़ों पर दिख रहा है। संक्रमण का भय, सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन और कोरोना के प्रसार ने पर्व की रौनक कम कर दी है। लेकिन महिलाएं परंपरा के अनुसार पूजन अर्चन करके कोरोना से अपने सुहाग की रक्षा की कामना करेंगी।
पैर छूकर आशीर्वाद से परहेज
व्रत औऱ पूजन में महिलाएं पहले गले मिलकर और पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करती थी, लेकिन अब सोशल डिस्टेंसिंग के कारण पैर छूने से परहेज करेंगी। पति की ओर से दिए जाने वाले उपहार में इस बार डिजाइनर मास्क औऱ सेनिटाइजर दिए जाएंगे।
यूट्यूबर पर सुनेंगी कथाएं: इस बार महिलाएं सामूहिक पूजा में शामिल न होकर यूटयूब, लाइव वीडियो कॉल में कथाएं सुनेंगी। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए इस तरह की सावधानी रखना बहुत जरूरी है।
करवा चौथ पूजा मुहूर्त
पूजा समय शाम – शाम 6:04 से रात 7:19
उपवास समय सुबह – शाम 6:40 से रात 8:52
चौथ तिथि – सुबह 3:24 से 5 नवंबर सुबह 5:14 तक
चंद्रमा का उदय – 4 नवंबर रात 8.16 से 8:52 तक
इस व्रत में पूरे दिन निर्जला रहा जाता है। व्रत में पूरा श्रृंगार किया जाता है। महिलाएं दोपहर में या शाम को कथा सुनती हैं। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें। थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं। प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इस बात का ध्यान रखें कि सभी करवों में रौली से सतियां बना लें। अंदर पानी और ऊपर ढ़क्कन में चावल या गेहूं भरें। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें। थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं। प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इसके बाद शिव परिवार का पूजन कर कथा सुननी चाहिए। करवे बदलकर बायना सास के पैर छूकर दे दें। रात में चंद्रमा के दर्शन करें। चंद्रमा को छलनी से देखना चाहिए। इसके बाद पति को छलनी से देख पैर छूकर व्रत पानी पीना चाहिए।
करवा चौथ…
सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्य का प्रतीक है। इस अवसर पर महिलाएं बिना अन्न-जल ग्रहण किए व्रत करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व है। चंद्र दर्शन के बाद ही सुहागिन महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। चंद्र पूजन के बिना करवा चौथ का व्रत पूरा नहीं होता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवाचौथ का व्रत किया जाता है। इस व्रत के फल से महिलाओं को अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन करवा माता, शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन विवाहित महिलाएं विधिपूर्वक करवा माता की पूजा भी करती हैं।
महिलाएं इस पूरे दिन व्रत करती हैं और चंद्रोदय का बेसब्री से इंताजर करती हैं। हालांकि, अलग-अलग राज्य में अलग-अलग समय पर चंद्रोदय होता है। जागरण अध्यात्म के इस लेख में हम आपको विभिन्न राज्यों में चंद्रमा के उदय होने का समय क्या रहेगा इसकी जानकारी दे रहे हैं।
जानें करवा चौथ पर क्यों दिया जाता है चंद्रमा को अर्घ्य:
जैसा कि हमने आपको बताया करवा चौथ पर महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और रात के समय चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत खोलती हैं। करवा चौथ में चंद्र देव की आराधना का महत्व विशेष होता है। शास्त्रों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि अगर चंद्र देव की उपासना की जाए तो इससे दीर्घ आयु और पति-पत्नी के बीच प्रेम में वृद्धि होती है।