मैं आपके अंदर की भावना को जगाना चाहता हूं – आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.
दूसरों को दुख देकर सुख कभी नहीं मिलता – आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.
बीकानेर। सुख के दृष्टिकोण अलग-अलग है। कोई पुत्र में सुख देखता है तो पुत्र की कामना करता है। कोई परिवार में तो कोई व्यापार में सुख देखता है। जिसमें जो सुख देखता है, उसमें व्यक्ति अपनी पूरी शक्ति और सामथ्र्य लगा देता है। यहां कहने का अभिप्राय यह है कि संसारियों के सुख के प्रति अलग-अलग मानदंड होते हैं। संसारी सुख के प्रति अलग- अलग दृष्टिकोण रखते हैं। श्री शांत क्रांति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में नित्य प्रवचन के दौरान साता वेदनीय कर्म के नौंवे बोल भक्ति में रमण करता जीव साता वेदनीय कर्म का उपार्जन करता है, विषय पर व्याख्यान देते हुए सुख, भक्ति और इनके प्रति श्रावक-श्राविकाओं के दृष्टिकोण के बारे में विस्तारपूर्वक प्रसंगों और भजन सरिता के माध्यम से अवगत कराया।महाराज साहब ने कहा कि सुख नहीं मिलने का एक कारण यह है कि संसारी सुख के प्रति अपना नजरिया, दृष्टिकोण अलग-अलग रखते हैं, जीव के प्रति भक्ति का भाव उनमें नहीं होता है। जबकि भक्ति जीव के प्रति होनी चाहिए। सभी जीवों के प्रति हम आदर, प्रेम, आत्मियता का भाव रखते हैं तो हम जीव के प्रति द्वेष का, प्रतिकार का भाव नहीं रखेगें।
तप- जप, अराधना जारी
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के सानिध्य में श्रावक-श्राविकाओं के तप और जप निरन्तर हो रहे हैं। बेला, तेला, आयम्बिल, एकासना और अराधना हो रही है। चैन्नई, बैंगलुुरु, सहित अन्य स्थानों से भी श्रावक आए।