बीकानेर। राजस्थानी भाषा दशा और दिशा विषय पर नागौर नगर परिषद और स्कूल शिक्षा के संयुक्त तत्वावधान संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता जाने माने राजस्थानी कवि और आलोचक डॉ.. अर्जुनदेव चारण ने आह्वान किया कि उनके पूर्वज राजस्थानी की मान्यता के लिए केवल सरकार के समक्ष विनम्रता से निवेदन करते रहे मगर मान्यता नहीं मिली। ऐसे में युवा पीढ़ी को अब तेवर दिखाने होंगे। तेवर दिखाने से ही राजस्थानी को मान्यता मिलेगी और मान्यता मिलने पर राजस्थान में रोजगार के अनेक अवसर पैदा होंगे। डॉ. चारण ने कहा कि जब आजादी के बाद नए राज्यों का भाषा के आधार पर गठन हो रहा था तब हमारे पूर्वजों की उदासीनता के कारण राजस्थान की भाषा राजस्थानी नहीं बन पाई। इसके लिए समय समय पर खूब संघर्ष किए गए और खूब आंदोलन भी किए मगर फिर भी हमारी राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिली क्योंकि हिन्दी भाषी अधिकारी चाहते ही नहीं कि यहां राजस्थानी को भाषाई मान्यता मिले। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि अब चुनाव सिर पर है। आने वाले चुनावों से पहले नेताओं को न माला दो न मंच दो और उनको अपने सामने बिठाकर दो टूक शब्दों में राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग रखो। तेवर दिखाते ही राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल जाएगी। अब भी ऐसा नहीं हुआ तो हमारी भाषा व हमारी संस्कृति लुप्त हो जाएगी।”
कार्यक्रम जिला कलेक्टर डा. जितेन्द्र कुमार सोनी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। संगोष्ठी का बीज भाषण जयनारायण विश्वविद्यालय के बाबा रामदेव शोध पीठ के डा. गजेसिंह राजपुरोहित ने दिया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्य अकादमी नई दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल के संयोजक मधु आचार्य आशावादी और जाने माने पर्यावरण प्रेमी पदमश्री हिम्मताराम भांभू थे। मंच पर अतिथियों के रूप में समाजसेवी डॉ. हापूराम चौधरी, जिला परिषद सीईओ हीरालाल मीणा, नगर परिषद आयुक्त श्रवणराम चौधरी, जिला शिक्षा अधिकारी राजेन्द्र कुमार शर्मा आदि मौजूद थे। संचालन डॉ. रामरतन लटियाल व्याख्याता राजस्थानी साहित्य ने किया।
इस दौरान वरिष्ठ साहित्यकार देवकिशन राजपुरोहित, बीकानेर के राजेन्द्र जोशी, लक्ष्मणदान कविया, सतपाल सांदू, पवन पहाड़िया सहित अनेक साहित्यकार व शोधार्थी मौजूद थे।
कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया। तदोपरांत अतिथियों के माला व साफा बंधन के बाद कार्यक्रम का आगाज जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के बाबा रामदेव शोध पीठ के डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित के बीज भाषण से हुआ। डॉ. राजपुरोहित ने इतिहासपरक जानकारियां देते हुए बताया कि आजादी से पहले से राजस्थानी की मान्यता को लेकर संघर्ष चल रहा है। राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए कई प्रस्ताव पारित हुए। कई जगह धरना प्रदर्शन भी हुए मगर हमें केवल आश्वासन मिल रहा है। उन्होंने बताया कि बांग्लादेश तो केवल भाषा के आधार पर ही स्वतंत्र देश बन गया इसलिए हमें आंदोलन की जरूरत है। इस कार्यक्रम में ऐसे लोग भी शामिल थे जिनका कार्य राजस्थानी भाषा के नाम पर मंत्रियो की जी हजूरी कर अपने आप को चर्चित रहना है।