नागौर, लंपी स्किन डिजीज सन 1885 में अफ्रीकन देशों में आई थी। सबसे पहले यह बीमारी तंजानिया में करीब 100 साल पहले आई, अपने देश में यह बीमारी 100 साल बाद आई है। तंजानिया के बाद यह बीमारी मिडिल ईस्ट में आई और 2019 में यह बीमारी बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान, चाइना, वियतनाम पहुचीं। जहां से अगस्त 2019 में भारत के उड़ीसा में इसका पहला केस मिला। यह जानकारी रिटायर्ड प्रोफेसर एंड एचओडी वैटेनेरी कॉलेज बीकानेर डॉ. एके ने दी। उनका दावा है कि आने वाले दिनों में भैंसों और ऊंटों में भी ये बीमारी फैल सकती है। खींवसर पहुंचे अपेक्स सेंटर एनिमल डिजीज डायग्नोसिस प्रोफेसर डॉक्टर ऐ के कटारिया पिछले 34 सालों से पशुओं में होने वाली बीमारियों पर भविष्य वाणी करना और उनके बचाव पर शोध कर रहे हैं। कटारिया ने अन्नदाता चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा किए गए संक्रमित गायों के इलाज के बारे में धनंजय सिंह खींवसर से जानकारी ली और उनका गायों को बचाने के इस प्रयास को सहारा। कटारिया ने बताया की लंबी वायरस गोवंश के लिए बहुत खतरनाक बीमारी है इस बीमारी में ऐसा पशुधन जो सारे रूप से कमजोर हो वह जिस की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है ऐसे पशु इस बीमारी के ज्यादा शिकार हो रहे हैं।

वायरस से संक्रमित होने के सातवें दिन दिखते लक्षण
डॉ. कटारिया का कहना है कि इस बीमारी के लक्षण पांव में सूजन आना, बुखार खाना पीना छोड़ ना वह नाक से पानी निकलना मुख्य लक्ष्ण है। इस वायरस से संक्रमित होने के 7 दिन बाद यह लक्षण गोवंश में नजर आते हैं, इसके बचाव के लिए अभी तक कोई विशेष इलाज भी नहीं मिल पाया है। ऐसे में घरेलू इलाज के साथ-साथ साफ सफाई गोवंश के लिए अति आवश्यक है। गाय के शरीर पर पड़ने वाले घाव की समय-समय पर साफ सफाई अति महत्वपूर्ण है। गायों में तेजी से इस वायरस के फैलने का मुख्य कारण मच्छर मक्खी जैसे कीट है, जो संक्रमण को एक गाय से दूसरे गाय तक पहुंचा रहे हैं।

वायरस संवेदनशील, दूध में नहीं, लेकिन उबाल कर पीएं
डॉ. कटारिया ने कहा कि संक्रमित गाय के दूध को हम उबालकर इस्तेमाल कर सकते हैं। दूध के उबालने के बाद वायरस का असर खत्म हो जाता। वायरस संवेदनशील है, दूध में इसकी मात्रा नहीं मिली है। लेकिन फिर भी लोगों को दूध को अच्छी तरह से उबाल कर पीना चाहिए।

अब तक 3000 मेडिकल किट किए जा चुके वितरित
इधर, खींवसर में अन्नदाता चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक धनंजय सिंह ने बताया कि अब तक करीब 3000 मेडिकल कीट का वितरण किया जा चुका है। जिसमें संक्रमित गायों के लिए आवश्यक दवाइयों का एक किट बनाया गया है साथ ही वह स्वयं डॉक्टर्स की टीम के साथ क्षेत्र में जाकर गायों का इलाज करवा रहे हैं।