सरदारशहर. भारतीय भूविज्ञान सर्वेक्षण (जीएसआई) ने वर्षों पूर्व सरदारशहर तहसील के गांव घड़सीसर में खनिज पोटाश की खोज की थी। देशभर में केवल राजस्थान में मौजूद खेती के काम आने वाले पोटाश की उपलब्धता का पता चलने के बावजूद इसे गंभीरता से नहीं लिया और माइनिंग के लिए कोई काम नहीं हुआ। अब केन्द्र और राज्य सरकार एक बार फिर सर्वे का कार्य शुरू करने पर सरदारशहर तहसील के गांव घड़सीसर के अलावा प्रदेश के कई क्षेत्रों में पोटाश के भण्डार मिले है। कंपनियों ने ड्रिलिंग मशीनें लगाकर बोरवेल खोद कर पोटाश की मात्रा, क्वालिटी, माइनिंग करने की संभावनाओं के बारे में पुख्ता जानकारी हासिल की। खान एवं भूविज्ञान विभाग और सर्वेक्षण कंपनियों के अधिकारियों के मुताबिक भारत सरकार ने पोटाश पर प्राथमिकता से काम करने का निर्देश दिया है। घड़सीसर गांव में 36 किलोमीटर में पोटाश का भण्डार मिला है। इसके लिए खान एवं भू विज्ञान विभाग चूरू के सहायक अभियंता ने 7 जनवरी को तहसीलदार को पत्र प्रेषित कर लिखा कि घड़सीसर गांव में खजिन पोटाश को कम्पोंजिट लाईलेंस के तहत नीलामी के लिए कार्यवाही कर ब्लॉक बनाकर प्रस्ताव निदेशालय, उदयपुर को भिजवाए जाने की प्रक्रिया की जानी है। इसलिए इस ब्लॉक में आने वाले खसरों का सर्वे करने के लिए इस कार्यालय के खनिज कार्यदेशक द्वितीय को मौका जांच के लिए भेजा जा रहा है। इसलिए नीलामी के लिए तैयार किए जा रहे ब्लॉक में आने वाले खसरों की सीमाओं से संबंधित समस्त जानकारी मौके पर देने के लिए हल्का पटवारी को मौके पर उपस्थित रहने के लिए पाबंध करें। ताकि मौके पर खसरों की सीमाओं के अनुसार सर्वे किया जा सके तथा ब्लॉक्स में आने वाले समस्त खसरों का खसरा नक्शा व जमाबंदी राजस्व रिकार्ड कार्यालय के खनिज कार्यदेशक को उपलब्ध करवाए।

पोटाश की होती है सोल्यूशन माइनिंग
पोटाश में पोटेशियम के अलग-अलग साल्ट होते हैं और इसकी उपलब्धता जमीन में गहराई में होने के कारण इसका खनन सोल्यूशन माइनिंग से किया जाता है। माइनिंग की इस तकनीक में सोडियम क्लोराइड को पानी के साथ गरम कर पाइपों के सहारे जमीन में पंपिंग किया जाता है। दूसरे पाइपों से पानी को बाहर निकालेंगे जिसमें पोटाश के अवयव होंगे। इनको सेप्रेशन मेथड से अलग किया जाता है। खेती के लिए खाद के रूप में काम आने वाला पोटाश भारत में केवल राजस्थान में है। इसकी खोज के 25 साल बाद भी केन्द्र और राज्य सरकार माइनिंग शुरू नहीं कर पाई हैं। जबकि, भारत सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों डॉलर खर्च कर कनाडा, जर्मनी, फ्रांस अन्य देशों से पोटाश मंगवाना पड़ रहा है।