देवेन्द्र वाणी न्यूज़ @ बीकानेर। स्कूलों में नया सत्र शुरू होते ही अभिभावकों की परेशानी बढ़ गई है। एक से दो माह की फीस के साथ स्कूलों में डेवलपमेंट फीस के नाम पर ली जाने वाली मोटी रकम भरनी है तो कॉपी-किताब भी खरीदना है। कॉपी-किताब का सेट इतना महंगा है कि उसे खरीदने में अभिभावकों के पसीने निकले जा रहे हैं। कई निजी स्कूलों में तो पहली व आठवीं कक्षा की किताबों का सेट छह से 10 हजार रुपये पड़ रहा है। प्रशासन और शिक्षा विभाग इस लूट पर चुप्पी साधे हुए हैं। इन दिनों सभी पुस्तक विक्रेताओं के यहां लंबी लाइनें लग रहीं हैं। परिजन बच्चों की कि ताबें खरीदने चुनिंदा दुकानों पर पहुंच रहे हैं। स्कूलों द्वारा तय निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी की किताबों से पांच गुना तक महंगी हैं। अधिकांश निजी स्कूल संचालक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबें मंगवाने में रुचि नहीं दिखाते। निजी विद्यालयों में 80 फीसदी निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें पढ़ाई जाती हैं।इन किताबों की कीमत एनसीईआरटी से कई गुणा अधिक होती हैं। कई किताबों में तो प्रिंट रेट के ऊपर अलग से प्रिंट स्लिप चिपकाकर प्रकाशित मूल्य से कहीं अधिक वसूली की जाती है। निजी स्कूलों में कमीशन के चक्कर में हर साल किताबें बदलने के साथ अलग-अलग प्रकाशकों की महंगी किताबें लगाई जाती हैं।

हर साल बदल जाता है सिलेबस हालात यह है कि स्कूलों का सिलेबस हर साल बदल जाता है। लेकिन एनसीईआरटी द्वारा बड़ी रिसर्चों के साथ बनाया गया पाठ्यक्रम बरसों से एक जैसा ही है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि निजी स्कूलों में लागू पाठ्यक्रम का स्टैंडर्ड एक ही साल इतना गिर जाता है कि स्कूलों को उसे बदलना पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है, पाठ्यक्रम का स्टैंडर्ड तो ठीक होता है, लेकिन स्कूलों को अपनी कमीशन में कटौती का डर होता है। यदि पुराना सिलेबस लागू किया जाए तो छात्रों को वे सभी किताबें शहर की सभी दुकानों पर मिल जाएंगी। कुछ छात्र पुरानी किताबों के साथ भी काम चलाने का प्रयास करेंगे। ऐसे में निजी स्कूलों की अवैध कमाई को धक्का लग सकता है। निजी स्कूल इसके पक्ष में नहीं है।

निजी प्रकाशकों की किताब के लिये निश्चित दुकान एनसीईआरटी की पुस्तकें तो हर दुकान में मिल जाती हैं पर निजी प्रकाशकों की किताबें लेने के लिए निश्चित दुकान पर आना पड़ता है। कहीं और ये किताबें नहीं मिलतीं। एटलस, मानव मूल्य की पुस्तक, व्याकरण, कॉम्पैक्ट, ग्राफ बुक, आदि ऐसी चीजें है जो पूरे साल कहीं नहीं लगतीं, फिर भी लेनी पड़ती हैं क्योंकि स्कूल कहता है। 488 रुपये की कॉम्पैक्ट असाइनमेंट, 50 रुपये की ग्राफ बुक आदि लेते-लेते बिल हजारों में चला जाता है।चाहे प्रदेश सरकार हो या केन्द्र सरकार, शिक्षा पर किसी का ध्यान नहीं है। इस क्षेत्र में निजी स्कूलों द्वारा जनता से खुली लूट हो रही है। कोई भी सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रही।

विभाग रोता है शिकायत का रोना मजे की बात तो यह है कि शिक्षा मंत्री का यह गृह जिला है। जब इस संदर्भ में तहलका संवाददाता ने विभाग के अधिकारियों से बातचीत की तो सामने आया कि विभाग के अधिकारी शिकायत नहीं आने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे है। हालांकि शुक्रवार को ही घड़सीसर स्थिल ल्यॉल पब्लिक स्कूल में इस बात को लेकर हंगामा भी हो चुका है। उसके बाद भी विभाग के अधिकारी शिकायत रूपी जिन्न का इंतजार कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे है। जबकि राज्य सरकार ने स्पष्ट आदेश निकाल रखा है कि निजी स्कूल में पढऩे वाले बच्चों पर कॉपी-किताब,ड्रेस या अन्य सामग्री तय दुकानों से नहीं खरीदने के आदेश निकाल रखे है। इसकी अनुपालना भी नहीं हो रही है।