सदाचार युक्त जीवन  बहुत बड़ी उपलब्धि – आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

बीकानेर। भगवान महावीर ने कहा है- एक को जानता है, वह सबको जान लेता है। एक कौन है…?, एक है आत्मा, जिसने आत्मा को जान लिया, पहचान लिया, वह संसार का समग्र ज्ञान प्राप्त कर लेता है। आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम सत्संग और स्वाध्याय है। श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने शनिवार को दस्साणियों के चौक स्थित सुन्दर सदन में प्रवचन देते हुए यह बात कही। महाराज साहब ने कहा कि आज ज्ञान पंचमी है, इस दिन का जिन शासन में बड़ा महत्व है। आज का दिन जैन दर्शन के लिए विशेष दिन है। आज ही के दिन भगवान महावीर के पांचवे गणधर सुधर्म स्वामी आचार्य बने, सुधर्म स्वामी को आचार्य पद पर आरूढ़ करने का काम चतुर्विद संघ ने किया। महाराज साहब ने फरमाया कि संघ की व्यवस्थाओं को सुचारू ढंग से चलाने के लिए आचार्य का होना जरूरी होता है।

जीवन में ज्ञान का होना जरूरी
आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि जीवन में ज्ञान का होना जरूरी है। भोजन का ज्ञान नहीं होने से व्यक्ति रोगों से घिर जाता है। व्यवहार का ज्ञान ना हो तो संबंधो में कटुता आ जाती है। भाषा का ज्ञान ना हो तो व्यक्ति स्वयं नहीं जानता कि वह क्या बोल जाता है और व्यापार का ज्ञान ना हो तो आजीविका की समस्या खड़ी हो जाती है। आचार्य श्री ने कहा कि ज्ञान हमें दृष्टि देता है, गति देता है, सुरक्षा और व्यवस्था देता है। ज्ञान ही जीवन में सबकुछ है, सदाचार युक्त जीवन  बहुत बड़ी उपलब्धि है।

पांच ज्ञान में श्रूत ही मुखर ज्ञान
आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि मति ज्ञान, श्रूत ज्ञान, अवधी ज्ञान, अनुप्रयोग ज्ञान और केवल्य ज्ञान, यह पांच ज्ञान है। इनमें से केवल श्रूत ज्ञान ही मुखर ज्ञान है, बाकी चार मूक ज्ञान है।  अभिव्यक्ति के लिए श्रूत ज्ञान का आलम्बन लिया जाता है। श्रूत ज्ञान की अराधना होती है, ज्ञान पूर्णता को प्राप्त करता है। महाराज साहब ने  श्रावक-श्राविकाओं से पूछा  कि जीवन में अज्ञानी क्या कर सकता है! लेकिन, ज्ञानी सबकुछ कर सकता है। इसलिए जीवन में ज्ञान की बड़ी आवश्यकता है।

आत्मा का स्वभाव जागने का
आचार्य श्री ने बताया कि मोह-राग- अज्ञान हमें जगने नहीं देता, आत्मा का स्वभाव सोने का नहीं, जागने का है। लेकिन यह विभाव आत्मा को जागने नहीं देता।

संसार में सबसे बड़ा कौन..?
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने श्रावक-श्राविकाओं से पूछा- सबसे बड़ा कौन…?, फिर इसका उत्तर देते हुए गुरु- शिष्यों का प्रसंग सुनाया और कहा कि ज्ञान बड़ा है, ज्ञान है तो गुरु है, भगवान है, समझ है और पहचान है। यह संसार ज्ञान की बदौलत है, इससे ही हम एक-दूसरे को पहचानते हैं। लेकिन, बंधुओ- हमारी रूचि अन्य कार्यों में जितनी है, उतनी ज्ञान प्राप्त करने में नहीं है। युवा पीढी को रचनात्मकता में रूचि है, लेकिन, धर्म-ध्यान, सामायिक, प्रतिक्रमण करने में नहीं है। युवा इनसे दूर भागते हैं। आज हम ज्ञान-ध्यान से  पिछड़ रहे हैं। स्थानक वासी समाज  साधु- साध्वियों के आलम्बन पर टिका है। साधु- साध्वियों के प्रति  आस्था का भाव तभी पैदा होगा जब हमारे अंदर ज्ञान के प्रति लगाव होगा। इसलिए ज्ञान- वैराग्य, विवेक की चेतना को जगाने का प्रयास करें। प्रवचन से पूर्व महाराज साहब के संग में भजन ‘उठ जाग रे चेतन, निंदिया उड़ाले मोह-राग की, कौन कहां से आया है, तू जाना कौन मुकाम, इन संबंधों में उलझा है, सोच जरा नादान, रिश्ते-नाते कितने सच्चे, कितना वैभव तेरा, क्या लाया, क्या ले जाएगा, कहता जिसको मेरा। का सामूहिक संगान किया गया।