नई दिल्ली/ 98 साल की उम्र में उनके पास पद्मभूषण भी था और लक्ष्मी भी। FMCG सेक्टर के सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले CEO थे MDH ग्रुप के धरमपाल गुलाटी। पद्मभूषण से नवाजे जाने की घोषणा हुई तो बधाइयों के लिए उनके फोन की घंटी बार-बार बजने लगी। विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आए इस 98 साल के बुजुर्ग के फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी बेहद दिलचस्प है…

रोजाना सुबह 4 बजे उठकर पंजाबी बीट्स पर डंबल से कसरत करते थे, फिर फल खाते थे। इसके बाद नेहरू पार्क में सैर करने जाते थे, दिन पराठों के साथ गुजरता था, शाम होते ही दोबारा सैर पर निकलते थे और फिर रात में मलाई और रबड़ी का दौर शुरू होता था। यह डाइट प्लान किसी पहलवान का नहीं बल्कि ‘मसालों के बादशाह’ और ‘महाशय’ धरमपाल गुलाटी का था, जिन्हें आपने टीवी पर ‘असली मसाले सच-सच’ वाले ऐड में देखा होगा। 98 साल के महाशय फिर भी कहते थे ‘अभी तो मैं जवान हूं’…

जी हां, आज हम आपको एक ऐसे तांगेवाले की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी मेहनत, प्यार, सेवा, विश्वास और लगन से सिर्फ 1500 रुपये से शुरू किया बिजनस 2000 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया। विज्ञापन में आने वाले धरमपाल दुनिया के सबसे अधिक उम्र के स्टार के रूप में जाने जाते थे। अवॉर्ड के बाद से सैकड़ों लोगों के गुलदस्ते और कॉल्स आने के बाद उनका कहना था- मेरी तो ‘बल्ले-बल्ले’ हो गई है। ऑफिस में मिलने वालों की लाइनें लगी हुई थीं। इसे देखकर उन्होंने कहा था, ‘मैं कोई और नशा नहीं करता, मुझे प्यार का नशा है।’ मुझे यह बहुत पसंद है जब बच्चे और युवा मुझसे मिलते हैं और मेरे साथ सेल्फी लेते हैं। अवॉर्ड के बारे में कहते हैं यह आप लोगों का प्यार है। मेरा कुछ नहीं।

बोर्ड मीटिंग में लगती है लाफ्टर क्लास
धरमपाल के चेहरे पर सदा एक अलग ही रौनक रही। इसका नुस्खा बताते थे हमेशा हंसते रहना। कहते थे ‘मैं कभी भी तनाव में नहीं रहता। बड़ी से बड़ी परेशानी झेली लेकिन माथे पर शिकन नहीं आने दी।’ यह ही अपने लोगों को सिखाता हूं। इसलिए पार्क में लाफ्टर क्लास लगती है। वहीं बोर्ड मीटिंग्स में भी अपने कर्मचारियों को हंसाता रहता हूं। इससे उनका भी फायदा होता है और मेरी भी एक्सरसाइज हो जाती है। वह कहते थे किसी को भी बैठे नहीं रहना चाहिए। जीवन में योग और चलते-फिरते रहना चाहिए। यह कोई अपना ले तो उसकी लाइफ सेट है।

लाइमलाइट में रहना था पसंद
महाशय जी को लाइमलाइट में रहना पसंद था। पश्चिमी दिल्ली के कीर्ति इंडस्ट्रियल एरिया में में उनके एमडीएच हाउस की दीवार का एक-एक इंच उनके मुस्कान भरे चेहरे से पटा पड़ा है। टीवी विज्ञापनों में उनका आना अचानक ही हुआ जब विज्ञापन में दुल्हन के पिता की भूमिका निभाने वाले ऐक्टर मौके पर नहीं पहुंचे। गुलाटी याद करते हैं, ‘जब डायरेक्टर ने कहा कि मैं ही पिता की भूमिका निभा दूं तो मुझे लगा कि इससे कुछ पैसा बच जाएगा तो मैंने हामी भर दी।’ उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। तब से गुलाटी एमडीएच के टीवी विज्ञापनों में हमेशा दिखते रहे।

MDH वाले महाशय की कहानी, पाकिस्तान से भारत तक

पाकिस्तान के सियालकोट में 27 मार्च को जन्म हुआ। स्कूल गए लेकिन मन नहीं लगता था। जैसे-तैसे 5वीं तक पढ़ा। फिर पिताजी ने अपनी मसाले की दुकान में काम के लिए लगा दिया। 1942 में शादी हो गई। पार्टिशन के दौरान सियालकोट छोड़ना पड़ा। अमृतसर पहुंच गए। यहां मन नहीं लगा। बड़े भाई और रिश्तेदार के साथ दिल्ली आ गए। काम-धंधा न मिला तो तांगा चलाने लगे। उससे भी मन ऊब गया। मन मसालों के पुराने कारोबार के लिए प्रेरित करता था। फिर अजमल खां रोड पर खोखा बनाकर दाल, तेल, मसालों की दुकान शुरू कर दी। तजुर्बा था, इसलिए काम चल निकला।