सात्विक विचार रखो, सात्विक भोग रखो : क्षमाराम महाराज

बीकानेर। सात्विकता का जीवन में बड़ा महत्व है। व्यक्ति को सात्विक विचार रखने चाहिए और सात्विक भोग ही करना चाहिए। इससे शुद्धता आती है और विचार भी अच्छे आते हैंं। यह सद्विचार कथावाचक महंत क्षमारामजी महाराज ने गुरुवार को श्रीमद् भागवत कथा एवं ज्ञानयज्ञ मं व्यक्त किये।

श्री गोपेश्वर महादेव मंदिर में चल रही पन्द्रह दिवसीय कथा के छठे दिन महाराज ने संसार में रहते हुए भगवान की कृपा प्राप्ति में आ रही बाधाओं पर व्याख्यान देते हुए उनकी प्राप्ति के लिए उपायों की विवेचना की। महाराज क्षमाराम जी ने कहा कि भगवान को जानने या समझने की कौशिश मत करो, भगवान की माया को कोई नहीं समझ सकता।

उन्होंने कहा कि जब हम एक दूसरे के मन की बात को नहीं समझ सकते, जान सकते हैं तो भगवान के मन की बात को जानना तो कल्पना से परे की बात है।

महाराज ने कहा कि भगवान से प्रेम करो तो खण्ड-खण्ड नहीं अखण्ड प्रेम करो, खण्ड में तो काता गया सूत भी किसी काम नहीं आता तो भगवान कैसे प्राप्त होंगे। उन्हें पाने के लिए तो हमें सांसारिक मोह-माया का त्याग करना पड़ेगा। एक तरफ आप संसार का प्रेम चाहते हो और दूसरी तरफ भगवान का सानिध्य एवं भक्ति तो यह संभव नहीं होगा।

क्षमाराम जी महाराज ने भागवत का महत्व बताते हुए कहा कि आप जब कथा सुनते हैं तो वास्तव में कथा नहीं सुन रहे होते हैं, भगवान को मन में बिठा रहे होते हैं। भगवान आप के मन में बैठे काम-क्रोध-लोभ और मोह को कथा के माध्यम से मन के अन्दर जाकर उन्हें बाहर निकाल कर फैंक देते हैं। इसलिए कथा तन-मन को निर्मल करती है, जहां तक हो सके कथा श्रवण का लाभ लेकर अन्त:करण को शुद्ध करो।

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