निजी कॉलेजों के शिक्षकों पर दोहरी मार और मौन है सरकार

बीकानेर। वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से लगभग तीन महीने की देशबंदी के कारण कई क्षेत्रों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इनमें से एक निजी क्षेत्र के शिक्षक भी हैं। जिनको दोहरी मार अब तक झेलनी पड़ रही है। मंजर यह है कि  शिक्षा विभाग का एक आदेश भी निजी शिक्षक संस्थाओं में काम कर रहे शिक्षकों के लिये काल में अधकमास के हालात पैदा कर रहा है। जी हां हम बात कर रहे है शिक्षा निदेशक सौरभ स्वामी के उस आदेश की जिसमें उन्होनें डीएलएड प्रथम व द्वितीय वर्ष परीक्षा की उतरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन की व्यवस्था व परीक्षकों के अनिवार्य ऑनलाइन पंजीकरण की बात कही है। इस आदेशानुसार इन परीक्षाओं की उतरपुस्तिकाओं की जांच के लिये विभाग में कार्यरत सभी एनसीटीई योग्यताधारी अधिकारियों व शिक्षकों को मूल्यांकन के लिये पंजीयन करवाने के निर्देश है। इस आदेश से निजी शिक्षक संस्थाओं में कार्यरत योग्यताधारी शिक्षकों को उत्तरपुस्तिकाओं की जांच से वंचित रखा गया है। जिससे सैकड़ों शिक्षकों पर कोरोना काल की मार के अलावा इस मार को भी वहन करना पड़ेगा।

शाला दर्पण में निजी शिक्षण संस्थाओं के शिक्षकों का नहीं हो रहा पंजीकरण
मजे की बात तो यह है कि राज्य सरकार की ओर से शिक्षण कार्य व शिक्षण पद्वति में एकरूपता की बात की जाती है। किन्तु जब निजी शिक्षकों की योग्यता और उनको हक देने की बात आती है तो इस प्रकार के आदेश निकालकर उनकी योग्यता को तोला जा रहा है। मंजर यह है कि  शाला दर्पण के माध्यम से निजी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं में कार्यरत प्राचार्य एवं शिक्षकों का पंजीकरण नहीं किया जा रहा है। ऐसे में प्रदेश के 303 निजी शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान डीईएलईडी तथा 913 बीएड कॉलेज के योग्यताधारी शिक्षकों का शाला दर्पण पोर्टल पर पंजीकरण करने से वंचित रख जाएंगे।
आदेशों को बताया तुगलगी
शिक्षा विभाग की ओर से जारी इन आदेशों का विरोध होना शुरू हो गया है। राजस्थान अन ऑर्गनाईज्ड वर्कर्स कांग्रेस के स्टेट प्रेस कॉडिनेटर डॉ विजय आचार्य ने इसका विरोध करते हुए इसे विभाग की तानाशाही बताया है। आचार्य ने कहा कि एक ओर तो निजी शिक्षण संस्थाओं में काम कर रहे शिक्षक पहले से ही आर्थिक मार झेल रहे थे। अब इस तरह के आदेश निकाल कर शिक्षा निदेशक ने उन्हें दोहरी मार दी है। आचार्य ने कहा कि ऐसे आदेश वापस लेने की मांग की है। ऐसा न करने पर धरना प्रदर्शन की चेतावनी भी दी है। आचार्य ने कहा कि आखिर सरकार की क्या मजबूरी है कि वे इस प्रकार के आदेशों पर चुप्पी साधे बैठी है।

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