राहुल गांधी से नेशनल हेराल्ड मामले में ED की पूछताछ से दिल्ली से जयपुर तक सियासी माहौल गर्मा गया है। कांग्रेस के नेता बढ़-चढ़कर ED के नोटिस का विरोध कर रहे हैं। राहुल गांधी के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं। कांग्रेस में हर नेता इस वक्त राहुल गांधी के साथ दिखना चाहता है। वहीं, इस विरोध में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फ्रंट रोल में नजर आ रहे हैं। दिल्ली में कांग्रेस की इस मुहिम में गहलोत के फ्रंट रोल में दिखने के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
प्रदर्शनों से लेकर पार्टी का पक्ष रखने तक हर मोर्चे पर गहलोत की सक्रिय मौजूदगी सियासी चर्चा का विषय बनी हुई है। गहलोत शुरू से ही ED, CBI और इनकम टैक्स छापों को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर रहे हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी को नोटिस मिलने के बाद से उनके तेवर और तल्ख हो गए। मुख्यमंत्री बनने से पहले गहलोत कांग्रेस के संगठन महासचिव के रोल में थे। ED विरोधी आंदोलन में गहलोत उसी पुराने रोल में नजर आ रहे हैं। राज्यसभा चुनाव जीतने के बाद गहलोत की नेशनल लेवल पर कुशल रणनीतिकार और सियासी पकड़ वाले नेता की छवि बन गई है।
रणनीति बनाने से लेकर दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन तक एक्टिव
राहुल गांधी से पूछताछ के दौरान कांग्रेस मुख्यालय से लेकर ED के दफ्तर के बाहर तक मुख्यमंत्री गहलोत और भूपेश बघेल वरिष्ठ नेताओं के साथ सड़कों पर दिखे हैं। गहलोत कांग्रेस दफ्तर में बड़े नेताओं के साथ रोज रणनीति बनाते हैं और फिर उनके साथ प्रदर्शनों में भी नजर आ रहे हैं। पार्टी का पक्ष रखने में भी गहलोत को प्रायोरिटी दी जा रही है
गहलोत की सक्रियता के सियासी मायने
गहलोत को गांधी परिवार की चार पीढ़ियों के साथ काम करने का अनुभव है। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीतिक उठापटक के बावजूद यही अनुभव सियासी रूप से उनके काम आता रहा है। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए गहलोत संगठन महासचिव के रूप में उनके साथ काम कर चुके हैं। सोनिया गांधी की टीम में राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं। संगठन में काम करने के इस अनुभव के चलते ही वे अब फिर फ्रंट में दिख रहे हैं। इस सियासी सक्रियता ने कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में चर्चा छेड़ दी है।
सरकार-संगठन की नियुक्तियों में गहलोत खेमे का रह सकता है दबदबा
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ED विरोधी मुहिम के तहत दिल्ली में चल रहे सियासी प्रदर्शन का राजस्थान कांग्रेस के अंदरूनी समीकरण पर आगे असर होगा। कांग्रेस की फिलहाल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकार है, इसलिए दोनों मुख्यमंत्रियों की पूछ ज्यादा है। गहलोत का सियासी अनुभव और एक्सपोजर ज्यादा रहा है, जिसका असर पिछले तीन दिन से देखा जा रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि आगे सरकार और संगठन की नियुक्तियों में मुख्यमंत्री खेमे का दबदबा देखने को मिल सकता है।