जयपुर। देश के पूर्व गृहमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे बूटा सिंह का आज दिल्ली में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। करीब महीने भर पहले ही उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था। प्रदेश जालौर-सिरोही से सांसद रह चुके हैं बूटा सिंह के निधन से कांग्रेस में शोक की लहर है।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है। वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के देहांत के बाद बूटा सिंह का निधन कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। सरदार बूटा सिंह का जन्म 21 मार्च 1934 को मुस्तफापुर जालंधर पंजाब में हुआ। राजनीति में आने से पहले उन्होंने एक पत्रकार के रूप में काम किया।
उन्होंने अपना पहला चुनाव अकाली दल के सदस्य के रूप में लड़ा। बूटा सिंह पहली बार साधना निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने। बूटा सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता रहे जिन्होंने देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। इनमें से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय बूटा सिंह खेल मंत्री रहे, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें पहले देश का गृहमंत्री बनाया तो प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें देश का खाद्य मंत्री बनाया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में राष्ट्रीय एससी कमीशन का चेयरमैन बनाया गया। बूटा सिंह तीसरी, चौथी, पांचवी, सातवीं, आठवीं, 10वीं, 12वीं और 13वीं लोकसभा में सांसद के तौर पर 8 बार सांसद बने।
कांग्रेस को हाथ का सिंबल दिलाने में बूटा सिंह की भूमिका आजादी के बाद कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था। जब कांग्रेस में टूटी और इंदिरा गांधी का समर्थित धड़ा कांग्रेस आई के रूप में देखा जाने लगा तो कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़ा की जोड़ी बना लेकिन गाय और बछड़े की जोड़ी को इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ में जोड़कर हंसी उड़ाई गई तो यह चुनाव चिन्ह कांग्रेस पार्टी ने बदलने का निर्णय लिया।जब पार्टी का चुनाव चिन्ह बदला जाना है उसमें कांग्रेस पार्टी के इंचार्ज बूटा सिंह ही थे और उस समय हाथ, हाथी और साइकिल का चुनाव चिन्ह में से बूटा सिंह ने हाथ का निशान फाइनल किया और इंदिरा गांधी ने उस पर अपनी मुहर लगाई।
जालौर को खास पहचान दिलवाई बूटा सिंह जब पहली राजस्थान 1984 में जालौर-सिरोही लोकसभा सीट से चुनाव लड़े तो जालौर को एक नई पहचान मिली। बूटा सिंह ने साल 1984 में जालोर-सिरोही लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और सांसद बने इसके बाद साल 1989 में जालोर लोकसभा जीता। 1998 में भी लोकसभा का चुनाव जीता उसके बाद 1999 से सिरोही से सांसद बने।
साल 2004 में जालोर से लोकसभा चुनाव हारने के बाद बूटा सिंह को बिहार का राज्यपाल बना दिया गया था जिसके बाद उनकी राजनीति का अंत माना गया लेकिन बूटा सिंह ने साल 2009 में कांग्रेस पार्टी से फिर जालोर लोकसभा का टिकट मांगा लेकिन पार्टी की ओर से टिकट नहीं देने के बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा हालांकि उन्हें इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। साल 2014 में भी उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और हार का सामना करना पड़ा। इससे साफ है कि जालोर सिरोही लोकसभा सीट से ही उन्होंने अंतिम चुनाव लड़ा।