प्रदेश में वसुन्धरा राजे है बीजेपी की मजबूरी
कर्नाटक वाली गलती नहीं दोहराना चाहेगी बीजेपी
देवेन्द्र वाणी न्यूज़, बीकानेर। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार के बाद से वसुंधरा राजे सूबे की सियासत में हाशिए पर थीं। चुनावी साल में अब वो फिर से फ्रंटफुट पर नजर आ रही हैं। वसुंधरा राजे सालासर में अपने जन्मदिन पर बड़ी रैली कर अपनी ताकत दिखा चुकी हैं।
राजनीतिक पंडितों के अनुसार पार्टी ने भी उन्हें दोबारा तरजीह देना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि कुछ महीनों पहले जहां वसुंधरा राजे की सियासत खत्म होने तक के दावे किए जा रहे थे, वहीं अब उनकी एक बार फिर प्रदेश में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में वापसी की भविष्यवाणी की जाने लगी है। राजनीतिज्ञों को मानना है कि वसुंधरा राजे के बिना बीजेपी के लिए चुनावी राह आसान नहीं होगी। वसुंधरा राजे ही वह चेहरा हैं जो बीजेपी को राजस्थान के रण में विजयी बना सकता है। बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी इस बात को समझ रहा है कि हर बार सरकार बदलने के ट्रेंड के बावजूद वसुंधरा राजे के बिना पार्टी की चुनावी राह आसान नहीं होगी। यही वजह है कि बीजेपी में वसुंधरा राजे को तरजीह मिलनी शुरू हो गई है।
प्रदेश में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष से सतीश पूनिया की छुट्टी वसुंधरा राजे की नाराजगी दूर करने की दिशा में बीजेपी नेतृत्व का पहला कदम था। इसके बाद बीजेपी के होर्डिंग-पोस्टर पर वसुंधरा राजे की तस्वीरों की वापसी के साथ ही उनके निजी कार्यक्रम सालासर रैली में बीजेपी विधायकों के साथ ही तमाम दिग्गजों का पहुंचना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आबूरोड रैली में उनके पास की कुर्सी पर बैठे नजर आना भी इसी तरफ इशारा कर रहे थे। ऐसे समय में जब कांग्रेस दो दिग्गजों (अशोक गहलोत और सचिन पायलट) के आंतरिक द्वंद्व में उलझी है, बीजेपी वसुंधरा राजे की नाराजगी मोल लेकर राजस्थान के रण में कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी। परिवर्तन के पीछे कर्नाटक चुनाव नतीजों का रोलवसुंधरा राजे को लेकर बीजेपी और शीर्ष नेतृत्व के रुख में आए परिवर्तन के पीछे कर्नाटक चुनाव नतीजों का बड़ा रोल माना जा रहा है। कर्नाटक में बीजेपी की हार के पीछे हर चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे पर दांव लगाने की रणनीति और मजबूत स्थानीय चेहरे येदियुरप्पा को दरकिनार किए जाने को भी बड़ी वजह बताया गया। माना जा रहा है कि बीजेपी राजस्थान में वसुंधरा राजे को दरकिनार कर कर्नाटक वाली गलती नहीं दोहराना चाहती। वसुंधरा राजे की लोकप्रियता पूरे प्रदेश में है। सच्चाई यही है कि प्रदेश में बीजेपी के पास ऐसा कोई नेता नहीं जो कद और लोकप्रियता के मामले में वसुंधरा राजे के आसपास भी हो।
प्रदेश में वसुंधरा राजे क्यों हैं बीजेपी की मजबूरी
उधर, वसुंधरा राजे के सुर भी बदल गए हैं। वसुंधरा राजे ने झारखंड में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के नौ साल पूरे होने पर जनसभा को संबोधित किया। अपने संबोधन के दौरान वसुंधरा राजे ने न सिर्फ प्रधानमंत्री की तारीफ की बल्कि ये दावा भी किया कि 2024 में भी मोदी सरकार को सत्ता में आने से कोई रोक नहीं पाएगा।वसुंधरा राजे का बयान, हाल ही में आबूरोड में हुए पीएम मोदी के कार्यक्रम में उनको मिली तरजीह और पार्टी के होर्डिंग-पोस्टर पर पूर्व सीएम की वापसी…इन सबको देखते हुए अब ये चर्चा भी तेज हो गई है कि क्या बीजेपी वसुंधरा राजे के ही नेतृत्व में राजस्थान के रण में उतरेगी। बीजेपी के नेता इस तरह के कयासों पर कुछ बोलने से अभी बच रहे हैं। वहीं, राजनीति के जानकार इसे राजस्थान में बीजेपी की मजबूरी बताते रहे हैं।