प्रदेश अध्यक्ष बोले कांग्रेस ने डूंगरपुर में
बीजेपी से हाथ मिलाकर हमें धोखा दिया
डूंगरपुर
राजस्थान सरकार को समर्थन दे रही भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने अशोक गहलोत सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। डूंगरपुर में जिला प्रमुख चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने बीटीपी को हराने के लिए हाथ मिला लिए थे। पार्टी इससे नाराज चल रही थी। अभी तक हर सियासी संकट में बीटीपी गहलोत सरकार का समर्थन देती आई थी। राज्यसभा चुनाव और उसके बाद मुख्यमंत्री गहलोत तथा सचिन पायलट में मतभेदों के वक्त भी बीटीपी ने गहलोत का साथ दिया था।
बीटीपी के प्रदेश अध्यक्ष वेलाराम घोघरा ने बुधवार को सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। बीटपी का आरोप है कि सरकार ने उनकी 17 सूत्रीय मांगों में से एक भी पूरी नहीं की। बीटीपी के राज्य विधानसभा में दो विधायक हैं। वेलाराम ने कहा कि पार्टी की ओर से शाम तक सरकार से समर्थन वापसी का पत्र राज्यपाल कलराज मिश्र और विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दिया जाएगा।
जिला प्रमुख चुनाव में भाजपा-कांग्रेस ने मिलकर बीटीपी को हराया
डूंगरपुर जिले में जिला परिषद की कुल 27 सीटें हैं। इस बार के चुनाव में बीटीपी को निर्दलीय के रूप में 13 सीट मिलीं तो वहीं 8 सीट पर भाजपा और 6 सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। ऐसे में बीटीपी का बोर्ड बनना लगभग तय था। लेकिन ऐन वक्त पर भाजपा कांग्रेस ने अपनी रणनीति के तहत सूर्या अहारी को जिला प्रमुख प्रत्याशी के रूप में निर्दलीय नामांकन कराया।
इस पर एक सीट के अंतर से सूर्या अहारी ने जिला प्रमुख का चुनाव जीत लिया। इस मामले में बीटीपी के प्रदेश अध्यक्ष वेलाराम घोघरा का कहना है कि कांग्रेसी नेताओं से बीटीपी को समर्थन देने की बात हुई थी लेकिन समर्थन नहीं देकर धोखा किया गया है। इसलिए सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की है।
भाजपा ने भी हाथ मिलाने की बात स्वीकारी थी
भाजपा-कांग्रेस के हाथ मिलाने की बात सामने आने की बात पर खुद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने स्वीकारी थी। पूनिया से भास्कर ने इस संबंध में सवाल किया था। इस पर पूनिया ने कहा था, हमने जिला स्तर के नेताओं काे कहा था कि उन्हें जो उचित लगे, वो करें। हमें बीटीपी के नक्सली नेताओं से रिश्ते की बात पता चली थी, इसलिए वहां हमने कांग्रेस से हाथ मिलाया।
वेलाराम बोले- अनुसूचित क्षेत्र को अशांत करने की साजिश चल रही है
वेलाराम ने कहा कि एक सोची समझी साजिश के तहत कांग्रेसी नेता अपनी पार्टी में गुटबाजी दिखा रहे हैं और अनुसूचित क्षेत्र के लोगों को गुमराह कर रहे हैं। कांग्रेस और बीजेपी एक थे और आज भी एक हैं। जिला प्रमुख डूंगरपुर चुनाव में गठबंधन कर उन्होंने साबित कर दिया है।
उन्होंने कहा कि नगर परिषद व नगर पालिका चुनाव में बीटीपी अपने उम्मीदवार उतारेगी। बीटीपी पर नक्सलवाद के लगाए आरोपों पर वेलाराम ने कहा कि जिन नेताओं ने बीटीपी पर नक्सलवाद की ट्रेनिंग लेने के आरोप लगाए हैं वह साबित करें कि कहां-कहां ट्रेनिंग सेंटर हैं, कब तक कितने लोगों ने ट्रेनिंग ली है। बीटीपी को भाजपा नेताओं के बयानों से लगता है कि अनुसूचित क्षेत्र को अशांत करने की साजिश चल रही है।
सरकार पर संकट नहीं
सरकार से समर्थन वापस लेने से हालांकि सरकार को हाल फिलहाल खतरा नहीं है। भाजपा और उसकी सहयोगी आरएलपी को छोड़कर निर्दलीयों सहित सभी दलों का करीब-करीब समर्थन है।
राज्य विधानसभा की दलगत स्थिति
1. कांग्रेस – 105
2. भाजपा 71
3. निर्दलीय 13
4. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी – 3
5. भारतीय ट्राइबल पार्टी – 2
6. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी – 2
7 रिक्त – 3
8. राष्ट्रीय लोक दल – 1
बीटीपी ने विधानसभा चुनाव में 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था, अभी दो विधायक हैं
बीटीपी का गठन 2017 में हुआ था। इसने हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ स्थानीय मुद्दों को लेकर 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पार्टी ने चुनाव में दो सीटें जीतीं एक पर चौरासी से राजकुमार रौत तथा दूसरी पर सागवाड़ा से रामप्रसाद जीते। साथ ही दो सीटों पर बीटीपी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे। पार्टी ने 0.7 प्रतिशत वोट शेयर हासिल कर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।
बीटीपी की क्या मांगे हैं
- 9 अगस्त को वर्ल्ड ट्राइबल डे पर अवकाश घोषित किया जाना
- महाराष्ट्र ट्राइबल सब प्लान लागू करना / आदिवासी जनसंख्या के अनुपात में बजट आवंटित करना
- गुजरात के बांध से डूंगरपुर में पानी लाना
- बेणेश्वर धाम के आस-पास 80 प्रतिशत भूमि आदिवासियों के लिए आरक्षित करना
- आदिवासियों के ईसाइयत में धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए उपाय करना
- आदिवासियों के लिए नया पर्सनल लॉ कोड (अभी तक आदिवासियों पर हिंदू मैरिज एक्ट ही लागू होता है)
- दिल्ली-मुंबई रेलवे कॉरिडोर में जिन आदिवासियों की असिंचित भूमि अधिग्रहीत कर ली गई हो उसे क एवल में मुआवजा दिलाना
- आदिवासियों को निशाना बना रहे इसाई धर्मावलंबियों और हिंदू धार्मिक समूहों से मुकाबले के लिए कानूनी उपाय करना
- अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियों के लिए अलग से आरक्षण (इसमे दौसा,करौली और धौलपुर के आदिवासी) भी शामिल
- सभी आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम के तहत जमीन के पट्टे देना