बीकानेर, संभाग के सबसे बड़े पीबीएम अस्पताल में सुरक्षा और रोगियों की देखभाल, दोनों के हाल-बेहाल हैं। सुरक्षा ऐसी कि मोबाइल से लेकर बाइक चोरी तक अब आम आम ही हो चली है। बाइक सवार या पैदल आकर लोग तोड़फोड़ कर जाते हैं और हफ्तों गुजर जाने के बावजूद पता ही नहीं लगता कि वे कौन थे, उनका मकसद क्या था और यह कांड उन्होंने किया ही क्यों।सीसीटीवी दर्जनों की तादाद में लगे हैं। 50 और लगाने की योजना भी है। हालांकि, तथ्य यह भी है कि तोड़फोड़ की घटना हो या बाइक-मोबाइल चोरी की वारदातें, ये सीसीटीवी इन मामलों में मदद के लिहाज से महज शोपीस ही साबित होकर रह गए हैं। मरीज तो फिर भी मरीज है, लेकिन उसके परिजनों तक का यह हाल है कि लाइन-दर-लाइन, प्रयोगशाला, दवा काउंटर, बाहर की दवाई आदि का इंतजाम करने में वह ऐसा थक जाता है कि खुद ही बीमार होने के हालात बन जाते हैं। हालांकि, प्रशासन के दावों में कोई कमी नहीं है। उनकी मानें, तो सुरक्षा भी परिपूर्ण है और रोगी की देखभाल में भी कोई कमी नहीं है। पीबीएम अस्पताल के दावों की पोल खोलती पत्रिका की यह रिपोर्ट।
फर्श पर मरीज, गद्दे फटे हुए
अस्पताल में सरकारी योजनाओं का हश्र देखना हो, तो पीबीएम के वार्डों का निरीक्षण किया जा सकता है। इन वार्डों में स्थिति यह है कि मरीज को भर्ती करने के लिए बेड तक उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। इस समय जब मौसम परिवर्तन हो रहा है, तो रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है। ऐसे में मरीजाें को बेड नसीब नहीं हो रहे हैं। रोगियों को जमीन पर ही सुलाया जा रहा है। ऐसे में उनका सही तरह से इलाज भी नहीं पाता है और संक्रमण की समस्या होती है, सो अलग । चिकित्सक राउंड लेने आते हैं, तो वे खड़े-खड़े ही हालचाल पूछ कर चल देते हैं। नीचे पड़े मरीजों का हाल-चाल पूछने के लिए उन्हें झुकना और घुटनों के बल बैठना पड़ेगा, तो वे सरसरी तौर पर हाल-चाल पूछ कर खड़े-खड़े ही चल देते हैं। कई वार्डों में तो गद्दे भी फटे हुए हैं। उन पर चादरें लगाकर इज्जत बचाई जा रही है।
जहां 45 बेड, वहां 70 मरीज
अस्पताल के ई और एच वार्ड के हाल तो गजब हैं। यहां पर 45 बेड लगाए हुए हैं, लेकिन करीब 70 मरीजों को भर्ती किया हुआ है। नर्सिंग कर्मियों को बैठकर ही इन मरीजों को इंजेक्शन आदि लगाना पड़ता है। हालांकि बेड पर पहले से भर्ती मरीज इसका विरोध भी करते हैं, लेकिन चिकित्सक के आगे जोर नहीं चलता है।
बच्चा अस्पताल : एक बेड पर चार
बच्चा अस्पताल के वार्ड में भी हालात बहुत ज्यादा जुदा नहीं हैं। यहां पर एक बेड पर दो-दो मरीजों को भर्ती किया जाता है। इरी बेड पर ही बच्चों की मां भी सोती है। यानी एक बेड पर चार जने लेटते हैं। ऐसे में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीजों पर क्या बीत रही होगी। बच्चे को ड्रिप लगाने पर मां को उसका हाथ पकड़ कर भी बैठना होता है कि कहीं साथ सोए बच्चे का हाथ न लग जाए।
दवा भी बाजार से लाने की नौबत
सरकार ने निशुल्क दवा योजना के तहत सभी तरह की दवाइयां निशुल्क देने की व्यवस्था कर रखी है। उसके बाद भी रोगियों को बाजार से दवा खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। अगर कोई चिकित्सक पर्ची में चार दवाइयां लिखता है, तो उसे दो बाजार से ही लानी पड़ती है। जबकि अस्पताल में विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए 900 से अधिक दवाइयों की सूची है, जो इन दवाइयों की उपलब्धता का दावा करती हैं।
बाइक और मोबाइल चोरी आम बात
अस्पताल में बाइक और मोबाइल चोरी तो आम बात हो गई है। रात के समय परिजन जब सो रहे होते हैं, तो मोबाइल कब चोरी हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। एक माह में अस्पताल के विभिन्न वार्डों से दस से अधिक मोबाइल चोरी हो चुके हैं। यहीं स्थिति बाइक की है। मरीज या उसका परिजन बाइक खड़ी करके अंदर जाता है। इलाज करवा कर या अपने मरीज का हाल-चाल लेकर वापस आता है, तो उसकी बाइक गायब मिलती है।
जांच के लिए भी इंतजार
मरीजों को अपनी विभिन्न तरह की जांचों के लिए भी इंतजार करना पड़ता है। दोपहर 11 बजे बाद तो आउटडोर वाले मरीजों की जांच ही नहीं होती है। उन्हें इसके लिए दूसरे दिन आना पड़ता है। जबकि सोनोग्राफी जांच के लिए आगे की तिथि दी जा रही है। यह स्थिति लंबे समय से चल रही।
केस-एक
कहने को मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना में सारी दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन चूरू जिले की रहने वाली गीता के परिजनों को डॉक्टर की लिखी दवाई काउंटरों पर नहीं मिली। बाजार से खरीद कर दवाई लानी पड़ी।
केस-दो
महिला वार्ड की एक तस्वीर देखिए। यहां एक मरीज के परिजन को पंखा भी किराए पर लाना पड़ा। ताकि गर्मी से उसके मरीज को निजात मिल सके। वार्ड में लगा पंखा बंद पड़ा मुंह चिढ़ा रहा था।
केस-तीन
ई वार्ड का हाल देखिए। यहां 45 बेड उपलब्ध हैं। नीचे फर्श पर आप निकलना चाहें, तो बमुश्किल बहुत बचाकर निकल सकते हैं, क्योंकि लगभग इतने ही मरीज बेड के नीचे फर्श पर इलाज कराने को मजबूर हैं।