बीकानेर, पीबीएम ट्रोमा सेंटर का 20 नंबर कमरा, माइनर ओटी (एमओटी)। टेबल पर तीन माह का बच्चा। चारों तरफ से घेरे आर्थोपीडिशियन डॉक्टर, नर्स और एनस्थेटिस्ट की टीम। दुधमुहें के पैर में इंजेक्शन लगाया। टेढ़े हो चुके पैर में पांव के तलुअे से थोड़ा ऊपर निडल चुभाई। एक बूंद खून निकला। पैर को पकड़कर सीधा किया। प्लास्टर किया। आवाज लगाई, नेक्स्ट। अब बारी थी पास ही टेबल पर झुनझुने से खेल रहे तीन महीने के बच्चे की। पीबीएम के माइनर ओटी में एक-एक कर 10 से ज्यादा छोटे बच्चे लाए जाते रहे। इनमें से तीन के पांव में सुईं चुभाकर खून निकाला। इलाज की इस प्रक्रिया को चिकित्सकीय भाषा में टेनोटोमी कहते हैं। मतलब यह कि जन्म के समय से पांव में जकड़न के कारण रह गए टेढ़ेपन को दूर करने की तकनीक। बाकी बच्चों के पैर को सीधा कर प्लास्टर बांधा गया। कइयों को एक खास किस्म का जूता पहनाया गया। सोते वक्त भी यह जूता पहने रहने से आठ से 10 सप्ताह में इन बच्चों के पैर पूरी तरह ठीक हो जाएंगे। कुल मिलाकर तीन से चार महीने के इलाज में ये पूरी तरह ठीक होकर चलने-फिरने लगेंगे। एक दिन में इतने सारे बच्चों का इलाज कैसे? सवाल पर ट्रोमा सेंटर के डायरेक्टर डॉ.बी.एल.खजोटिया कहते हैं, दरअसल ऐसे बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में हमने सप्ताह में एक पूरा दिन ऐसे बच्चों के करेक्शन के लिए तय कर दिया है। सप्ताहभर तक ऐसे केस रजिस्टर्ड करते हैं। उनकी जांच करवाते हैं। फिट होने पर एक दिन में सभी की टेनोटोमी या प्लास्टर रिप्लेसमेंट की प्रक्रिया करते हैं। बीकानेर में जनवरी से अब तक ही ऐसे 50 बच्चे रिपोर्ट हो चुके हैं। इनमें से 13 की टेनोटोमी की गई। बाकी को प्लास्टर-जूता तकनीक या डोरो सेल ब्रेस पद्धति से ठीक कर रहे हैं।

देर का असर, मोनिका की तरह टेढ़े पांव
गुसाईंसर गांव के सहीराम अपनी चार वर्षीय बेटी मोनिका के दोनों पांव डॉक्टर को दिखाते हैं। ये इस कदर टेढ़े हो चुके हैं कि सामान्य सर्जरी से ठीक हो पाना मुश्किल लगता है। डॉ.खजोटिया कहते हैं, इसे भर्ती करके बड़ा आपरेशन प्लान करना होगा। हो सकता है दो से तीन सर्जरी करने पड़े। वे कहते हैं, समय पर इलाज नहीं हो तो टेढ़े पैर ठीक करना मुश्किल हो सकता है।