
बीकानेर. मध्यप्रदेश के जबलपुर के एक निजी अस्पताल में आग लगने से हुई 8 लोगों की मौत ने एक बार फिर जनमानस को झकझोर दिया है। साथ ही इस बात की पड़ताल भी शुरू हो गई है कि आखिर देश में अस्पतालों की दशा को लेकर हमारा तंत्र चेत क्यों नहीं रहा है। संभाग के सबसे बड़े अस्पताल पीबीएम की बात करें, तो यहां पर भी अग्निकांड होने की स्थिति में उससे निपटने के उपाय सुलगते सवालों के घेरे में हैं। प्रबंधन की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कहने को तो पूरे परिसर में लगभग 380 फायर एंग्यूशर (सिलेंडरनुमा उपकरण) लगे हैं, लेकिन कितने इसमें चलित अवस्था में हैं और कितने बेकार, इसकी सटीक जानकारी प्रबंधन के पास भी नहीं है। हालांकि दावा यह है कि अधिकांश फायर एंग्यूशर भरे हुए हैं। लेकिन में हकीकत में सब कुछ राम भरोसे है।
शोपीस बने यंत्र
पीबीएम अस्पताल प्रशासन ने कई वार्डों के बाहर अग्निशमन यंत्र लगा रखे हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश की तो रीफिलिंग भी नहीं हुई है। कुछ में किसी प्रकार की तिथि तक नहीं अंकित है। इसके अलावा कई उपकरणों पर तो सिलेंडरों पर चस्पा जानकारी ही फाड़ने की कोशिश की गई है। जानकारी के मुताबिक गत दस साल में पीबीएम अस्पताल में दो-तीन बार आग भी लग चुकी है। इसके अलावा निजी अस्पताल में भी कोविड के दौरान आग लगने से एक मरीज की मौत भी हो चुकी है लेकिन सबसे ज्यादा भीड़-भाड़ वाले पीबीएम अस्पताल में जैसे अग्निकांड को लेकर कोई गंभीरता नजर ही नहीं आती। जबकि यहां पर बिजली लाइनें भी बड़ी संख्या में और कई जगह बेतरतीब बिछी हुई हैं। इस वजह से शॉर्ट सर्किट होने की आशंका भी बनी रहती है। सुपर स्पेशयलिटी यूनिट में आग बुझाने के लिए नई तकनीक का संयंत्र लगाया हुआ है। लेकिन यहां लगे जनरेटर में डीजल की कोई व्यवस्था नहीं हाे रही है। गौरतलब है कि अग्निकांड की स्थिति में बिजली आमतौर पर काट दी जाती है। ऐसे में आधुनिक तकनीक युक्त अग्निशमन उपाय होने के बावजूद इस यूनिट में इस आपदा से कैसे निपटा जाएगा, यह सवाल अनुत्तरित ही है।