प्रत्याशी बनने की चाहत परवान पर संगठन और धरातल पर नहीं है कोई राजनीतिक वजूद, सिर्फ धनबल बना है आधार

सुमित व्यास
देवेन्द्र वाणी न्यूज़ @ बीकानेर।  प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी तकरीबन नौ महीने का समय शेष है लेकिन नेताओं में अभी से राजनीतिक बैचेनी बढऩी शुरू हो गई है। शहर के कुछ नेता पोस्टर प्रचार के माध्यम से अपनी दावेदारी जताने लगे हैं तो वहीं कुछ नेता सोशल मीडिया तक ही सीमित होकर अपनी दावेदारी जताने में जुट गए हैं तो कुछ अखबारों में विज्ञापन के डीएम पर राजनेता बन रहे है। इन दिनों शहर में कई नेताओं ने विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए अपनी दावेदारी सोशल मीडिया और पोस्टर प्रचार के जरिए तेज कर दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉम और पोस्टर प्रचार के माध्यम से ये नेता अपने आपको जनसेवक बताने के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने उम्मीदवारों को लेकर किसी प्रकार की रणनीति को सार्वजनिक नहीं किया है लेकिन नए उभरते ये नेता सोशल मीडिया और पोस्टर प्रचार के जरिए अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए अपनी मंशा जाहिर करने में जुटे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स और पोस्टर प्रचार करने वाले इन नेताओं में से अधिकांश नेताओं का संगठन और धरातल पर कोई विशेष वजूद नहीं है लेकिन धनबल के आधार पर वो अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पूरा करने की जुगत में लगे दिखाई पड़ रहे हैं। सोशल मीडिया और पोस्टर प्रचार में लिप्त ये नेता पिछले साढ़े तीन वर्षों से ज्यादा समय में अपने संगठन या जनहित के मुद्दों के लिए आवाज उठाते कभी नजर नहीं आए लेकिन चुनाव नजदीक आने से पहले इनकी सक्रियता बढ़ गई है। वहीं कुछ नेता जनहित मुद्दों से इतर दूसरे मुद्दों को लेकर धरातल पर जनसेवक होने की उपस्थिति दर्ज करवाकर सोशल मीडिया पर अपना प्रचार-प्रसार करते नजर आ रहे हैं ताकि लोग उन्हें सच्चे जनसेवक के रूप में स्वीकार कर सकें, लेकिन ऐसे नेताओं की जमीनी हकीकत आमजन की समझ से परे नहीं है।
क्या फोटो फोबिया से बनते हैं नेता?
सामान्य तौर पर देखा जाता है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने ऐसे कार्यकर्ता या सदस्य को उम्मीदवार बनाने पर जोर देती है जो जनता से जुड़ाव रखता हो, जनहित के मुद्दों को लेकर आवाज उठाने वाला और संगठन के लिए सकारात्मक कार्य करने वाला हो। किसी ऐसे को नहीं जो सिर्फ अपने चेहरे को सोशल मीडिया या पोस्टरों में दर्शा कर आमजन के बीच अपनी मौजूदगी दर्शाता हो। आज के आधुनिक और जागरूक युग में आमजन भी बखूबी जानता है कि फोटो फोबिया से नेता नहीं बनते।