बीकानेर. गंगाशहर. दीपावली पर्व को अब 20 दिन का समय बचा है। ऐसे में मिट्टी के बर्तन तैयार करने वाले कारीगर तैयारियों में जुट गए हैं। कोरोना काल के बाद इस बार कारीगरों को मंदी दूर होने की उम्मीद है। शहर के उपनगरीय क्षेत्र गंगाशहर में कई परिवार ऐसे भी हैं, जो पिछली पांच पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं। पांच पीढि़यों से यह काम करने वाले मघाराम प्रजापत का कहना है कि कोरोना संक्रमण के चलते पिछले दो साल में कमाई के अभाव में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। तैयार माल भी कोई लेने नहीं आ रहा था। थोड़ी-बहुत बिक्री हुई, जिससे लागत भी नहीं आई। इस बार अच्छी बिक्री की उम्मीद है। यही वजह है की अभी से पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों का निर्माण शुरू कर दिया है।
बाहर से आकर बेचते हैं बर्तन
मिट्टी के बर्तन बेचने वाली संतोष प्रजापत ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से अहमदाबाद ,जयपुर ,उदयपुर, दिल्ली, अजमेर आदि स्थानों से भी व्यापारी आकर माल बेचने लगे हैं और यहां मिट्टी के बर्तन बेचने वाले भी प्रतिस्पर्धा के चलते वहां से माल मंगवाने लगे हैं। लेकिन आज भी पुरानी मान्यता के अनुसार पारंपरिक मिट्टी के बर्तन उपयोग में लिए जाते हैं तथा रोशनी के लिए भी स्थानीय स्तर पर बनने वाले छोटे दीपक बहुतायत में लोग खरीदते हैं। केशव प्रजापत ने बताया जिले में डूंगरगढ़, नापासर ,उदयरामसर , देशनोक , पलाना , नोखा ,कोलायत आदि स्थानों पर लोग मिट्टी के बर्तन बनाते हैं और शहर में बेचने भी आते हैं। उन्होंने बताया कि देसी मिट्टी के बर्तन बाहर से आने वाले बर्तनों की तुलना में न केवल मजबूत होते हैं, बल्कि इनके दाम भी बाहर से आने वाले बर्तनों की तुलना में आधे के करीब ही होते हैं।