बीकानेर. निजी स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में लाखों बच्चों के प्रवेश लेने को प्रदेश सरकार ने अपनी उपलब्धि माना और सरकारी व्यवस्थाओं में सुधार का दावा करते हुए इन आंकड़ों को खूब प्रचारित किया। अब जबकि लगभग 33 फीसदी ड्रॉपआउप और अनामांकित का आंकड़ा सामने आ चुका है, तो सरकार को जवाब नहीं सूझ रहा है। जिम्मेदार चुप्पी साधे बैठे हैं। चुपचाप एक आदेश जारी करके इस 33 फीसदी आंकड़े को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। गौरतलब है कि आजादी के बाद यह पहला मौका है, जब प्रदेश में तीन साल में लाखों बच्चों ने स्कूल बदले हैं। आंकड़े गवाह हैं कि इस साल सरकारी स्कूलों से आठ लाख विद्यार्थी ड्रॉप आउट हुए हैं। इनमें से अधिकांश निजी स्कूलों में चले गए हैं। यह क्रम अभी थमा नहीं है। रोजाना हजारों विद्यार्थी सरकारी स्कूलों से टीसी कटवा रहे हैं। दूसरी तरफ प्रवेशोत्सव चल रहा है। अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के प्रति शुरुआत में जो उत्साह था, वह भी अब ठंडा पड़ने लगा है। शिक्षा विभाग के आंकड़ों को मानें तो प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कोरोना से पहले यानी शिक्षा सत्र 2019-20 में 80 लाख विद्यार्थी नामांकित थे। हर साल बारहवीं कक्षा पास कर निकलने वाले विद्यार्थियों से ज्यादा संख्या में प्रवेशिका में नए प्रवेश हो जाते हैं। अप्रेल 2020 में कोरोना लॉकडाउन और इसके बाद एक साल तक स्कूल पूरी तरह बंद रहे। शिक्षा सत्र 2021-22 में कोरोना की दूसरी लहर और बाद की आशंकाओं के चलते 18 लाख विद्यर्थियों का नामांकन सरकारी स्कूलों में बढ़ गया। यानी कोरोना के बाद अध्ययनरत विद्यार्थियों की संख्या 98 लाख पर पहुंच गई। इसी से राज्य सरकार और शिक्षा विभाग की बांछे खिल गईं और निजी स्कूल संचालक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए। इसी बीच महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में प्रवेश के लिए विद्यार्थियों ने उत्साह दिखाया। इस वजह से भी सरकारी स्कूलों में नामांकन तेजी से बढ़े।

अब घटकर 90 लाख पर आ गया आंकड़ा

बारहवीं बोर्ड परीक्षा का परिणाम आने के बाद विद्यार्थियों ने टीसी कटवानी शुरू की, तो सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या घटनी शुरू हो गई। अप्रेल, मई, जून और जुलाई में बड़ी संख्या में सरकारी स्कूलों से विद्यार्थियों ने टीसी कटवाई। हालांकि, दूसरी तरफ अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में प्रवेश के प्रति उत्साह से कुल छात्र संख्या में आ रही कमी ज्यादा महसूस नहीं हुई। अब अगस्त में सामने आए छात्र संख्या के आंकड़ों ने शिक्षा विभाग की नींद उड़ा दी है। एक करोड़ के नजदीक पहुंची छात्र संख्या घटकर 90 लाख पर आ गई है।

महात्मा गांधी स्कूलों का भी असर

बच्चों को सरकारी स्कूलों से दूर होने का कारण महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूल भी बने हैं। स्कूलों में बच्चों की संख्या निर्धारित है। ऐसे में जिन बच्चों का प्रवेश लॉटरी से नहीं हुआ, वह वापस हिन्दी मीडियम सरकारी स्कूल में जाने की बजाय निजी स्कूलों में चले गए हैं। अंग्रेजी माध्यम में कक्षा एक से पांच तक में 150 बच्चे तथा कक्षा छह से 8वीं तक में 105 बच्चों को प्रवेश देने का नियम है।

निजी स्कूलों में बढ़े 25 से 30 फीसदी

कोरोनाकाल समाप्त होने के बाद निजी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। शिक्षा सत्र 2022-23 में करीब 25 से 30 प्रतिशत नामांकन बढ़े हैं। जबकि कोरोना की पहली लहर के बाद 35 से 40 फीसदी नामांकन घटे थे। निजी स्कूल उत्साहित हैं। उन्हें उम्मीद है कि इसी सत्र के अंत तक वह वापस 2019 वाली िस्थति में लौट आएंगे।

सीबीइओ को नामांकन बढ़ाने के निर्देश

मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी डॉ. राजकुमार शर्मा ने सभी सीबीइओ को पत्र भेजकर ड्रॉपआउट तथा अनामांकित बच्चों को स्कूलों से पुन: जाेड़ने के निर्देश दिए हैं। निर्देश में कहा कि विभाग को सूचना मिली है कि ड्रॉपआउट और अनामांकित 33 फीसदी बच्चे पुन: स्कूल से नहीं जुड़े हैं। ऐसे विद्यार्थियों का पता लगाकर स्कूल से जोड़ने का प्रयास किया जाए।