बीकानेर। भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के एक पुकार पर भगवान श्रीकृष्ण ने ना केवल उसकी अपित्तु उसके गर्भस्थ शिशु की भी रक्षा की थी। पितृपक्ष अवसर पर गोपेश्वर बस्ती स्थित श्री गोपेश्वर महादेव मंदिर में चल रही पन्द्रह दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन मंगलवार को सींथल पीठाधीश्वर क्षमारामजी महाराज ने भक्त और भगवान के संबंध के महत्व को प्रतिपादित किया। साथ ही कहा कि भगवान है लेकिन उन्हें जानने और पहचानने की जरुरत है, भगवान कोई वस्तु नहीं जो दिखाई दे, वह तो सर्वव्यापक हैं, घट-घट वासी हैं।

क्षमारामजी महाराज ने कहा कि संसार में पंचभूत अग्नि, पृथ्वी,वायु, आकाश और जल हैं तो यह भी मानकर चलना चाहिए कि भगवान भी हैं। भगवान सबसे ज्यादा सुक्ष्म है और जो जितना सुक्ष्म होता है वह उतना ही सर्वव्यापक होता है। भगवान कोई दिखावे की चीज नहीं है। इसलिए यह इच्छा भी नहीं रखनी चाहिए कि वह दिखाई दें।

भक्त और भगवान के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए महाराज ने बताया कि जब अश्वथामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र चलाया तब उत्तरा ने वहां पर मौजूद पांडवों से भी पुकार ना कर केवल श्रीकृष्ण का ध्यान कर उन्हें पुकारा। भगवान भी भक्त की पुकार सुन पहुंचे तब उत्तरा ने कहा कि उसे अपनी मृत्यु का भय नहीं है लेकिन वह गर्भ में पल रहे शिशु को बचा लें तब भगवान ने उसके भक्ति भाव को जान उत्तरा के गर्भस्थ शिशु को चतृभुज रूप में दर्शन दिए और अपनी आलौकिक शक्ति से गर्भ के चारों ओर सुरक्षा कवच बनाकर उसकी रक्षा की।

महाराज ने गर्भपात को महापाप बताते हुए कहा कि वर्तमान में बालक की चाह में भ्रूूण हत्याएं हो रही है यह चिन्ता का विषय है। भागवत का महत्व बताते हुए क्षमारामजी महाराज ने कहा कि भगवान से प्रीति रखने वालों को भागवत सुनने का जब भी अवसर मिले सुनना चाहिए। भागवत से शक्ति, भक्ति और मुक्ति मिलती है।

केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने किया कथा का रसपान
केन्द्रीय संसदीय मामलात राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल आज अपने संक्षिप्त दौरे पर बीकानेर पहुंचे। इस अवसर पर उन्होंने गोपेश्वर महादेव मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में पहुंचकर कथावाचक महंत क्षमारामजी महाराज से आशीर्वाद लिया एवं कथा का रसपान किया। इस मौके पर अर्जुनराम मेघवाल का समिति की ओर से शिवरतन अग्रवाल ने स्वागत किया, धनपत चौधरी ने दुपट्टा पहनाया और राजेन्द्र अग्रवाल एवं सुनील अग्रवाल ने स्मृति चिन्ह प्रदान किया।