नई दिल्ली। तकनीक ने मैदान के अंदर ही नहीं बल्कि मैदान के बाहर होने वाले खेल को भी बदल दिया है। अलग-अलग मोबाइल ऐप्स ने सटोरियों को एक ऐसी जगह उपलब्ध करा दी है, जहां ना उन्हें अपनी पहचान जाहिर होने का डर है और ना पुलिस का खौफ।

परंपरागत सट्टे के सिंगल शॉट, जोड़ी या फिर मटका अब तमाम वेबसाइट और ऐप पर खुलेआम खेला जा रहा है। इनमें पड़ोसी मुल्कों या यूरोपीय देशों के सर्वर का इस्तेमाल होता है, ऐसे में जड़ तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। तकनीक के दौर में अब सट्टेबाज और सट्टे का कारोबार भी हाई-टेक हो गया है। अब मोबाइल ऐप के जरिेए सट्टे का कारोबार चल रहा है। इसके अलावा ई-वॉलेट के जरिए पैसे का लेन-देन हो रहा है।

 ऐसे किसी ऐप से जुडऩे के लिए सट्टा किंग की शरण में जाना पड़ता है। छोटे सटोरिये को ई-वॉलेट के जरिये गारंटी मनी देनी पड़ती है। इसके बाद उसके नाम पर एक अकाउंट खुलता है। इसका पासवर्ड दिया जाता है। फिर उसे मिलते हैं मैच के भाव और मिनट टू मिनट अपडेट। सट्टेबाजी होती है और सारा लेन-देन ई-वॉलेट के माध्यम से ही किया जाता है। पुलिस की मानें तो सटोरिये एक मोबाइल फोन पर 4-5 ई-वॉलेट रखते हैं। इन ऐप पर 4 तरह की मेंबरशिप होती हैं। पहली लाइव गेम की जर्नल मेंबरशिप। वहीं, एक दिन की वीआईपी सदस्यता की कीमत 20 हजार रुपये है। एक हफ्ते की वीवीआईपी मेंबरशिप चाहिए तो 50 हजार से लेकर एक लाख तक देने होंगे। एक महीने की सुपर वीवीआईपी मेंबरशिप 2 से 3 लाख रुपये तक में मिलती है। सट्टा कारोबारियों के पंटर सबसे महंगी मेंबरशिप के साथ घाटा रिकवर करने वाली इंश्योरेंस स्कीमों के भी ऑफर देते हैं।

भारत में सट्टे का ऑनलाइन कारोबार रुपये में हो रहा है, जबकि विदेशी साइटें बिटकॉइन में डील करती हैं। जिस ई-वॉलेट से लेन-देन होता है, उसे क्लाइंट की डिजिटल आईडी के साथ ही रजिस्टर कर लिया जाता है। दूसरे मोबाइल नंबर और ई-वॉलेट का इस्तेमाल नहीं होता। पुलिस अफसरों के मुताबिक, विदेशों में सर्वर होने और ऐप के कारण सट्टे को ट्रेस कर पाना मुश्किल है। पहले होटलों के कमरों या घरों में बैठकर दांव लगाने वाले अधिकतर लोग ऑनलाइन हो गए हैं। अधिकतर मेसेजिंग ऐप का यूज कर रहे हैं। पहले सट्टेबाज वॉट्सऐप का उपयोग करते थे, लेकिन गु्रप में सीमित लोग ही शामिल हो पाने की वजह से इस प्लैटफॉर्म को बदला गया। लोकल सटोरियों को पकड़कर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना पुलिस के लिए जितना आसान है, ऑनलाइन सट्टेबाजों, साइट और मोबाइल ऐप कंपनियों के खिलाफ ऐक्शन उतना ही मुश्किल। जिस तेजी से सट्टे में इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है, उस रफ्तार से पुलिस के पास जांच करने की तकनीक नहीं आई। ऐसे में वह पीछे रह जाती है।

2 लाख तक का नेटवर्क सट्टेबाजों के बीच टेलीग्राम सबसे लोकप्रिय ऐप है। सटोरिये हर मैच में नए नंबर के साथ नया टेलीग्राम अकाउंट बनाते हैं। खेल से करीब आधे घंटे पहले हजारों लोग ग्रुप पर आकर टॉस जीतने वाली टीम की संभावना पर सट्टा लगाते हैं। टेलीग्राम चैनल पर ‘बॉक्स’ एक खुला चैनल है, जहां बुकी हर गेंद, ओवर और रन पर सट्टे के भाव बताते रहते हैं। इस ऐप की मदद से मेसेज, फोटो, विडियो और फाइलें भेज सकते हैं। 2 लाख लोगों के ग्रुप का नेटवर्क बना सकते हैं। वॉइस कॉल के लिए एंड-टु-एंड एनक्रिप्शन का इस्तेमाल भी है। डिवाइस पर सीक्रेट चैट का ऑप्शन मिलता है। साथ ही अपने ऐप को दूसरे पासवर्ड के साथ लॉक करके रखा जा सकता है। ऐसे अन्य ऐप फन क्लिक, ऑनलाइन क्रिकेट बैटिंग, 99 प्लेटिनम हैं।