दिल्ली। भाजपा अध्यक्ष और देश के नए गृह मंत्री अमित शाह का सियासी जलवा इन दिनों लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। लेकिन ये सब अचानक नहीं हुआ है बल्कि इसके पीछे अमित शाह की करीब तीन दशक पुरानी मेहनत है। शाह जब सातवीं क्लास में पढ़ते थे तभी जिंदगी का पहला चुनाव क्लास मॉनिटर के रूप में लड़ा और 75 फीसदी सहपाठियों का समर्थन पाकर क्लास मॉनिटर बने।
उनकी कक्षा में तब 50 बच्चे पढ़ते थे। 16 साल की उम्र पूरी करने के बाद अमित शाह पैतृक गांव से अहमदाबाद आ गए, जहां वो संघ की शाखा से जुड़ गए। अमित शाह की पॉलिटिकल एंट्री 1983 में एबीवीपी से हुई लेकिन उससे पहले ही 1980 में वो गुजरात भाजपा के संगठन सचिव नरेंद्र मोदी के संपर्क में आ चुके थे। कहा जाता है कि पीएम मोदी और अमित शाह के बीच बड़ी अच्छी केमिस्ट्री है। हो भी क्यों न? दरअसल, अमित शाह ने नरेंद्र मोदी को पीएम मोदी बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है।
साल 2013 में जब भाजपा ने गोवा बैठक में 2014 के चुनाव प्रचार अभियान समिति का प्रमुख नरेंद्र मोदी को चुना, तब से शाह उनके लिए जमीन मजबूत करने में और तेजी से जुट गए। जब 2014 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में पार्टी कोर कमेटी की बैठक चल रही थी, तब इस पर विचार किया जा रहा था कि नरेंद्र मोदी को कहां से चुनाव लड़ाया जाए। आज तक के मुताबिक उस वक्त राजनाथ सिंह ने पटना से मोदी को चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन उस बैठक में अकेले अमित शाह ने इसका विरोध किया था और कहा था कि उन्हें यूपी के किसी सीट से चुनाव लड़ाया जाय। हालांकि, तब बैठक बेनतीजा खत्म हो गई थी लेकिन बैठक के बाद फिर शाह ने राजनाथ सिंह से इस पर पुनर्विचार करने को कहा।
पार्टी महासचिव अमित शाह के बार-बार कहने और उसके सियासी मायने बताने के बाद भाजपा ने तय किया कि नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे। इस तरह अमित शाह की पहली रणनीति काम कर गई। अब वो पूरे यूपी में भाजपा के पक्ष में लहर पैदा करने में जुट गए और बूथ लेवेल तक पार्टी को मजबूत कर राज्य की 80 में से 73 सीटों में भाजपा की अगुवाई में एनडीए ने प्रचंड जीत दर्ज की।
बीजेपी अकेले देश में 282 सीटें जीतने में कारगर रही जो बहुमत के आंकड़े (272) से ज्यादा है। बाद में जब अमित शाह 2014 में भाजपा के अध्यक्ष बन गए तब उनकी अध्यक्षता में पार्टी के सदस्यों की संख्या बढ़कर करीब 11 करोड़ हो गई। इसके अलावा शाह ने गांव-गांव तक न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं का जाल बिछवाया बल्कि उनकी बातें सुनने के लिए कॉल सेंटर भी स्थापित करवाया। सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर अमित शाह ने 2019 का भी चुनाव उसी तरह जीत लिया, जबकि जातीय धु्रवीकरण बड़ी समस्या थी।