देश की जनता ने हर पांच वर्षों बाद अपनी सरकार को बदला है। ये सिलसिला प्रदेश में पिछले 20 वर्षों से जारी है। इस बार क्या होने वाला है, ये 11 दिसम्बर को ही पता लग सकेगा।
बीकानेर। 1993 से अब तक हुए हुए पांच विधानसभा चुनावों (20 साल) में इन दोनों पार्टियों के बीच सत्ता की अदला-बदली होती रही है। प्रदेश की 200 में से 199 विधानसभाओं पर मतदान तो हो गया है अब इसके नतीजे 11 दिसम्बर को आएंगे। यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच हमेशा कड़ा मुकाबला रहा है। एक नजर विधानसभा चुनावों से जुड़ी रोचक बातों पर –
1952 से अब तक राजस्थान विधानसभा के 14 चुनाव हो चुके हैं। 9 बार कांग्रेस की सरकारें बनी तो 4 बार भाजपा सत्ता में रही। एक बार जनता पार्टी की सरकार रही थी।
1972 तक प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का एकतरफा दबदबा रहा। 1977 में पहला मौका आया जब कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई। तब जनता पार्टी ने 200 में से 151 सीटें जीत कर सरकार बनाई और भैरोंसिंह शेखावत पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे।
हालांकि अगले दो चुनावों (1980 और 1985) में फिर कांग्रेस सत्ता में रही। 1980 से चुनाव मैदान में उतरी भाजपा को पहली कामयाबी 1990 में मिली। तब पार्टी को 85 सीटें मिली थीं। शेखावत फिर सीएम बने।
1993 में प्रदेश की दसवीं विधानसभा के लिए चुनाव हुए और 95 सीटों के साथ भाजपा फिर सत्ता में लौटी। राजस्थान के इतिहास में यह पहला और एक मात्र मौका रहा जब भाजपा लगातार दो बार सत्ता में रही।
इसके बाद से भाजपा और कांग्रेस के बीच सत्ता की अदला-बदली चल रही है। 1998 में कांग्रेस ने धमाकेदार प्रदर्शन किया और 200 में से 153 सीटों जीत दर्ज की। यह पहला मौका था, जब कांग्रेस ने 150 सीटें हासिल की थी। तब अशोक गहलोत सीएम बने थे।
2003 विधानसभा चुनाव में गहलोत दूसरी पारी नहीं खेल पाए और उनके नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। 120 सीटें जीतकर भाजपा सत्ता में लौटी, वसुंधरा राजे सीएम बनीं।
2008 में वसुंधरा भी लगातार दूसरी पारी नहीं खेल पाईं। 96 सीटें पाकर कांग्रेस सत्ता में लौटी, गहलोत फिर से सीएम बने।
2013 में अदला-बदली का क्रम जारी रहा और भाजपा ने राजस्थान विधानसभा के इतिहास में अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज की। 163 सीटों के साथ वसुंधरा राजे फिर प्रदेश की सीएम बनीं।
राजे के सामने 20 साल की परंपरा तोडऩे की चुनौती
मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने 20 साल से चली आ रही इस परंपरा को तोडऩे की चुनौती है कि राजस्थान में लगातार दो बार किसी पार्टी की सरकार नहीं बनती।
चुनौती इसलिए और भी बड़ी है क्योंकि इसी साल फरवरी में हुए लोकसभा उपचुनाव (अलवर, अजमेर) और विधानसभा उपचुनाव (मांडलगढ़) में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि इसके बाद मदनलाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने जैसे कदम उठाकर भाजपा ने डैमेज कंट्रोल के कदम उठाए हैं।