बीकानेर। बीकानेर, जिसे “छोटी काशी” के नाम से जाना जाता है, अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं के लिए विश्वविख्यात है। लेकिन क्या इस शहर की पहचान अब फास्ट फूड और अस्वस्थ खानपान की वजह से बदल रही है? यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि आज हर गली, नुक्कड़ और चौराहे पर ऐसे खाद्य पदार्थों की भरमार है, जिन्हें ‘मीठा जहर’ कहें तो गलत नहीं होगा।
बीते कुछ वर्षों में बीकानेर में फास्ट फूड कल्चर ने अपनी जड़ें इतनी गहराई तक फैला ली हैं कि अब यह आदत बनती जा रही है। स्थानीय बाजारों, स्कूलों, कॉलेजों और यहां तक कि धार्मिक स्थलों के आसपास भी फास्ट फूड की दुकानें नजर आती हैं। इनमें से अधिकतर खाद्य पदार्थ खुले में बनते हैं, जहां न स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है और न ही गुणवत्ता का। सस्ते और स्वादिष्ट होने के नाम पर ये खाद्य पदार्थ धीरे-धीरे लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
फास्ट फूड के बढ़ते दुष्प्रभाव
इन खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल किए जाने वाले तेल, मसाले और सामग्री की गुणवत्ता पर कोई नियंत्रण नहीं है। यहां तक कि कई जगहों पर एक्सपायर्ड सामग्री का उपयोग होने की शिकायतें भी सामने आई हैं। बार-बार उपयोग किए गए तेल में तैयार ये खाद्य पदार्थ हृदय संबंधी बीमारियां, मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं पैदा कर रहे हैं।
चिंता का विषय यह है कि इन फास्ट फूड आइटम्स के प्रति बच्चों और युवाओं में विशेष आकर्षण देखा जाता है। स्कूलों के बाहर बिकने वाले चाऊमीन, बर्गर और पकोड़े जैसे खाद्य पदार्थ न केवल उनकी सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि उनकी खानपान की आदतों पर भी बुरा प्रभाव डाल रहे हैं।
स्थानीय प्रशासन की भूमिका
फास्ट फूड के बढ़ते चलन को रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण है। हालांकि, स्वच्छता और खाद्य गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर प्रशासन की ओर से अभियान चलाए जाते हैं। लेकिन इनका असर तभी दिखेगा जब यह सतत और प्रभावी तरीके से लागू किए जाएं।
खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को चाहिए कि वे नियमित रूप से फास्ट फूड स्टॉल्स और दुकानों की जांच करें। यदि किसी दुकान पर खराब गुणवत्ता या स्वच्छता नियमों का उल्लंघन पाया जाता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इसके अलावा, खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए दुकानदारों को प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है।
समाज की जिम्मेदारी
समाज के तौर पर भी हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम स्वस्थ खानपान को प्रोत्साहित करें। बीकानेर जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर में पारंपरिक और स्थानीय खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देना चाहिए। फास्ट फूड के बजाय इन खाद्य पदार्थों को बाजार में लाना न केवल लोगों की सेहत को बेहतर बनाएगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देगा।
आवश्यकता है जागरूकता की
स्वास्थ्य और स्वच्छता को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है। स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को फास्ट फूड के दुष्प्रभाव के बारे में बताया जाना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय प्रशासन और सामाजिक संगठनों को मिलकर ऐसे अभियान चलाने चाहिए, जो लोगों को स्वस्थ खानपान के लिए प्रेरित करें।
क्या होगा भविष्य?
अगर समय रहते इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया, तो फास्ट फूड का यह चलन बीकानेर की पहचान को नुकसान पहुंचा सकता है। यह जरूरी है कि प्रशासन, समाज और व्यक्तिगत स्तर पर हम सभी इस दिशा में कदम उठाएं।
बीकानेर की विरासत केवल ऐतिहासिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं है। इसकी पहचान यहां के समृद्ध खानपान और जीवनशैली से भी जुड़ी है। ऐसे में यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि हम इस ‘मीठे जहर’ को हर नुक्कड़-चौराहे से हटाकर बीकानेर की असली पहचान को बचाएं।
अब समय आ गया है कि हम अपनी खानपान की आदतों पर पुनर्विचार करें और अपने शहर को स्वस्थ और खुशहाल बनाए रखने की दिशा में प्रयास करें।