बीकानेर, 22 नवंबर।
इटालियन मूल के विद्वान और राजस्थानी साहित्य के संरक्षक डॉ. एल. पी. तेस्सीतोरी की 105वीं पुण्यतिथि पर सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा एक श्रद्धांजलि एवं शब्दांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम गोकूल सर्किल स्थित तेस्सीतोरी की प्रतिमा स्थल पर संपन्न हुआ, जिसमें साहित्य, संस्कृति और समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े व्यक्तित्वों ने भाग लिया।

तेस्सीतोरी: एक सांस्कृतिक सेतु

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, अतिरिक्त जिला कलेक्टर (प्रशासन) डॉ. दुलीचंद मीना ने डॉ. तेस्सीतोरी को राजस्थान और इटली के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक सेतु के रूप में स्मरण किया। उन्होंने कहा कि तेस्सीतोरी ने बीकानेर में रहते हुए राजस्थानी चारण और जैन साहित्य पर गहन शोध कर इसे नई ऊंचाइयां दीं।

साहित्यिक योगदान पर चर्चा

सादुल रिसर्च इंस्टीट्यूट के सचिव राजेंद्र जोशी ने तेस्सीतोरी के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि तेस्सीतोरी ने “राव जेतसी रो छंद” और “वेलि क्रिसन रुक्मिणि री” जैसे काव्यों का सम्पादन किया। उनके शोध कार्यों में आठ हस्तलिखित प्रतियों और टीकाओं का संदर्भ लिया गया, जो राजस्थानी साहित्य में उनकी गहरी पकड़ को दर्शाता है।

अन्य वक्ताओं के विचार

विशिष्ट अतिथि हरिशंकर आचार्य और डॉ. अजय जोशी ने तेस्सीतोरी के सीमित संसाधनों में किए गए अभूतपूर्व कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि राजस्थानी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाना तेस्सीतोरी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

श्रद्धांजलि और भावपूर्ण मौन

कार्यक्रम में तेस्सीतोरी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। साथ ही, शिक्षक नेता श्रवण पुरोहित के आकस्मिक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

डॉ. तेस्सीतोरी की साहित्य सेवा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।