बीकानेर, सहित प्रदेश में ऐसे सैकड़ाें डॉक्टर हैं जो 15 से 20 साल पहले पीजी कर स्पेशलिस्ट डॉक्टर बन गए। हॉस्पिटल्स में नियुक्त हो गए। प्रोफेसर और सीनियर प्रोफेसर के पद तक पहुंच गए लेकिन अब तक उनके पास पीजी की ओरिजिनल डिग्री नहीं है। वे अब तक एक प्रोविजनल डिग्री से काम चला रहे हैं। जहां भी ओरिजिनल की डिमांड होती है यह लिखकर देना पड़ता है कि अब तक मिली नहीं है। इसके साथ ही नेशनल मेडिकल काउंसिल या राज्य काउंसिल से मिला संबद्धता का प्रमाण-पत्र देकर छूट लेते हैं। दरअसल वर्ष 2007 से पहले राजस्थान यूनिवर्सिटी ही मेडिकल की परीक्षा करवाती और डिग्री जारी करती थी। वर्ष 2007 में आरयूएचएस का गठन होने के बाद यह काम उसके जिम्मे आ गया। ऐसे में जिन्होंने पहले यहां से यूजी-पीजी कर ली उनकी डिग्री लंबे समय तक अटक गई। हालांकि यूनिवर्सिटी ने बाद में इसे जारी करने का क्रम शुरू किया लेकिन अब भी कई सालों की डिग्रियां अटकी हैं। इतना ही नहीं अब आवेदन करने पर जो डिग्री जारी की जा रही है उसे ओरिजिनल नहीं कहा जा सकता। वजह, राजस्थान यूनिवर्सिटी अपनी डिग्री हिन्दी में जारी करती थी। अब जो दे रही है उसमें लिखा होता है इंग्लिश वर्जन ऑफ हिन्दी डिग्री। ऐसे में यह भी ओरिजिनल होने की वजह उसका अंग्रेजी वर्जन ही है। एमबीबीएस की डिग्री एक साथ जारी की आवेदन करो, अब तो एमएनआईटी तक की डिग्रियां दे रहे हैं : तक्षक राजस्थान यूनिवर्सिटी की रजिस्ट्रार नलिनी तक्षक का कहना है, आधार कार्ड के साथ आवेदन करने पर डिग्री मिल जाएगी। पहले मेडिकल सहित एमएनआईटी की डिग्री भी यहीं से मिलती थी। ऐसे में अब उसकी डिग्रियां भी जारी कर रहे हैं। इंग्लिश वर्जन अभी दे रहे हैं। प्रयास करेंगे कि जल्द हिन्दी में पहले जैसी डिग्री उपलब्ध करवाएं। बीकानेर के एसपी मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2019 में एमबीबीएस की डिग्रियों का बंडल पहुंचा। इसमें भी लगभग 10 साल पहले तक एमबीबीएस कर चुके डॉक्टर्स की डिग्रियां थी। परेशानी क्या : इंटरनेशनल जनरल में रिसर्च पेपर भेजने, इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस अटेंड करने सहित प्रदेश से बाहर नियुक्ति के समय पड़ती है जरूरत
वजह : 2007 तक मेडिकल की परीक्षाएं राजस्थान यूनिवर्सिटी के अधीन होती थी, इसके बाद यह आरयूएचएस के अधीन हो गई, एेसे में मेडिकल की डिग्रियां अटक गईं