बीकानेर, बीएसएफ राजस्थान फ्रंटियर के बीकानेर सेक्टर में पहली बार कैमल हैंडलिंग और मैनेजमेंट का कोर्स शुरू किया गया है। चारों सेक्टर के 74 जवानों को ट्रेनिंग दी जा रही है। 6 सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद ये जवान अपनी-अपनी बटालियन में ऊंटों पर बॉर्डर की सुरक्षा करेंगे। दरअसल बीएसएफ में ऊंटों की संख्या लगातार घट रही है। राजस्थान फ्रंटियर के जैसलमेर के दो, बाड़मेर और बीकानेर के एक-एक सेक्टर में करीब साढ़े तीन सौ ऊंट की बचे हैं। इनमें बीकानेर सेक्टर के 57 ऊंट शामिल हैं। बीएसएफ में करीब पांच साल से ऊंटों की खरीद नहीं हो पाई है। एक साल से नए ऊंट लाने की कवायद के चलते बीएसएफ ने 177 ऊंट खरीदने की तैयारी कर ली है। यह ऊंट जल्दी ही बीएसएफ के बेड़े का हिस्सा होंगे। लेकिन ऊंट खरीदने से पहले उन्हें हैंडल करने के लिए जवानों की जरूरत को देखते महानिदेशक पंकज सिंह ने चारों सेक्टर के जवानों को हैंडलिंग और मैनेजमेंट कोर्स कराने के आदेश दिए थे। जिसके तहत पहली बार बीकानेर सेक्टर में फ्रंटियर लेवल का कोर्स शुरू किया गया है। डीआईजी पुष्पेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि फ्रंटियर के आईजी डेविड लालरिनसंगा के निर्देशन में छह सप्ताह का कोर्स जवानों को कराया जा रहा है। इससे पहले यह कोर्स जोधपुर में होता था। बीएसएफ के जवानों ने शनिवार को राष्ट्रीय ऊष्ट्र अनुसंधान केंद्र (एनआरसीसी) का दौरा किया। केन्द्र के डायरेक्टर अतिबंधु साहू, डॉ. आरके सावला, डॉ. काशीनाथ ने ऊंटों की मृत्युदर को कम करने व अच्छी तरह से सार संभाल करने की ट्रेनिंग दी। उन्होंने मौसम के अनुसार ऊंटों में आने वाले बदलाव और उनके खान-पान को लेकर रखने वाली सावधानियों के बारे में भी बताया।
ऊंट इसलिए महत्वपूर्ण
भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा के लिए पहले गाड़ियां नहीं थी। दूर तक फैले रेगिस्तान में ऊंट ही थे, जिन पर बीएसएफ के जवान पेट्रोलिंग करते थे। बीएसएफ में गाड़ियां आने और बॉर्डर पर सड़कें बनने के कारण ऊंट का उपयोग कम हो गया है। लेकिन इसका महत्व कम नहीं हुआ है। ऊंट जवान को जमीन से 12 फीट ऊंचा रखता है। जवान दूरबीन से दूर तक देख सकता है। घुसपैठिया उसकी नजर से बच नहीं सकता। गौरतलब है कि राजस्थान में वर्ष 2012 में ऊंटों की गणना हुई तो इनकी संख्या तीन लाख 26 हजार थी, वहीं 2019 में पुन: गणना होने पर ये घटकर महज दो लाख तेरह हजार रह गई थी। पिछले दो सालों में यानी 2020 व 2021 तक 28 हजार ऊंट और कम हो गए।