बीकानेर. राजस्थान का पहला जीरियाट्रिक क्लीनिक मात्र भवन बनकर रह गया है। जबकि इसकाे शुरू करने का मुख्य उद्देश्य यह था कि बुजुर्ग मरीजों का इलाज एक ही छत के नीचे किया जा सके। वहीं पर ही भर्ती किया जाए और एक्सरे आदि की जांचों के लिए भी रोगियों को भटकना नहीं पड़े। इस समय यह क्लीनिक मात्र दो घंटे, वह भी आउटडोर ही संचालित हो रहा है। इस समय अवधि के बाद चिकित्सक तो चले जाते हैं , जबकि नर्सिंग स्टाफ अस्पताल के निर्धारित समय तक खाली बैठा रहता है।

दो घंटे या दो बजे तक…

वैसे क्लीनिक खुलने को लेकर दो अलग-अलग तरह की बातें सामने आ रही है। अस्पताल अधीक्षक का दावा है कि इस क्लीनिक में प्रतिदिन दोपहर दो बजे तक आउटडोर चलता है, जबकि मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष का कहना है कि यहां पर चिकित्सक मात्र दो घंटे ही मरीजों का इलाज करते हैं। अब किसकी बात को सही मानें, यह समस्या तो है ही, लेकिन हकीकत यह है कि इस क्लीनिक में दो घंटे बाद वास्तव में डॉक्टर नहीं मिलते। गत चार दिनों से पत्रिका प्रतिनिधि ने हर रोज इस तथ्य को खंगाला और प्रत्यक्ष भी देखा, तो क्लीनिक में दोपहर बारह बजे बाद चिकित्सक नदारद मिलते हैं।

एक कराेड़ तीस लाख की लागत से बना भवन

पानादेवी बिन्नाणी गवर्नमेंट जीरियाट्रिक रिसर्च सेंटर एंड हॉस्पिटल (जीरियाट्रिक क्लीनिक) को बनाने के लिए यहां की वरिष्ठ नागरिक समिति ने कई बार प्रयास किए थे, लेकिन धन की कमी आड़े आ रही थी। इसके बाद सरकार की जनसहभागिता योजना के तहत इस क्लीनिक का निर्माण कराया गया। इसमें एक कराेड़ तीस लाख रुपए की लागत आई थी। इसमें से 50 प्रतिशत राशि सरकार ने वहन की थी, जबकि इतनी ही राशि रामकिशन जयकिशन बिन्नाणी चेरिटेबल ट्रस्ट कोलकाता ने खर्च की थी।

वार्ड में दवाइयां और आइसीयू बंद

दानदाता के सहयोग से बने इस क्लीनिक में पुरुष और महिला मरीजों के अलग-अलग वार्ड बनाए गए थे। इन वार्डों में दवाइयों के कार्टन भरे हुए हैं, जबकि आइसीयू में ताला लटक रहा है। कोविड की पहली लहर के बाद आइसीयू को बंद कर दिया गया था, जो आज तक बंद ही पड़ा है, जबकि अब कोविड की लहर भी थमी हुई है।

प्रतिदिन 40 रोगियों का आउटडोर

इस क्लीनिक में प्रतिदिन औसतन 40 रोगियों का आउटडोर है। अगर भर्ती करने की नौबत आती है, तो पीबीएम अस्पताल के मुख्य भवन में भर्ती किया जाता है, जबकि यहां पर भर्ती करने की सुविधा भी उपलब्ध है।एक्सरे मशीन धूल से अटी बुजुर्ग रोगियों को अपनी जांचों के लिए भटकना नहीं पड़े, इसके लिए सरकार ने इस क्लीनिक में एक्सरे, सोनोग्राफी मशीन की व्यवस्था की थी। इसके अलावा आइसीयू में वेंटिलेटर आदि की भी व्यवस्था की, लेकिन इस समय एक्सरे मशीन धूल से भरी हुई है। जिस कक्ष में इस मशीन को स्थापित किया हुआ है, उस कक्ष में घुसने का रास्ता तक बंद पड़ा है।

मर्जी का आउटडोर

इस क्लीनिक में मात्र दो घंटे ही आउटडोर संचालित हो रहा है। इसका समय भी 10 बजे से 12 बजे तक का है। जबकि अस्पताल में सुबह 8 बजे से दोपहर दो बजे तक का समय निर्धारित है। अगर दोपहर 12 बजे बाद कोई बुजुर्ग रोगी आ जाए, तो उसे यहां पर चिकित्सक नहीं मिलते हैं। उस रोगी को 16 नंबर आउटडोर में ही लाइन में खड़ा होना पड़ता है, जबकि इस क्लीनिक के लिए दो पीजी सीटें भी स्वीकृत हुई हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब पूरे अस्पताल में आउटडोर का समय सुबह आठ बजे से दोपहर बाद दो बजे तक का है, तो यहां आउटडोर 10 बजे से 12 बजे तक समय किसने निर्धारित किया। पत्रिका प्रतिनिधि ने इसका जवाब तलाशने की कोशिश की, लेकिन सिवाय दावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ। हकीकत चार दिन खुद आंखों से देखी, जिसमें 10 से 12 बजे तक ही आउटडोर चलता मिला। हालांकि, नर्सिंगकर्मियों और तकनीकी कर्मचारियों के सुबह आठ बजे दोपहर दो बजे तक बैठे मिलने से इतना तो तय हो गया कि क्लीनिक का भी समय सुबह आठ बजे से दोपहर बाद दो बजे तक का ही है, जिसे मनमर्जी से चिकित्सकों ने सुविधानुसार कर लिया है।