बीकानेर। नकली नोटकांड ने जिला पुलिस की कार्यशैली पर कई प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं। डेढ़ साल में नकली नोट छापने का काम हो रहा था लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लगी। अब मामला स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) के पाले में है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक गिरोह के संपर्क में रहे 30 लोगों को सूचीबद्ध किया गया है। इसके अलावा 43 लोगों की डोजियर बनाई जा रही है।

गांव को व ग्रामीणों को पता था…
दीपक, चंपालाल, मालाराम, रविकांत, राकेश, पूनमचंद व नरेन्द्र के बार में पूरे गांव को पता था कि यह क्या कर रहे है लेकिन संबंधित थाना पुलिस को ही पता नहीं था। आरोपी इतने शातिर थे कि नोट प्रिंटिंग का काम अलग-अलग जगह करते। 20-25 दिन से ज्यादा कहीं सेटअप नहीं लगाते।
एक-एक दिन में उड़ा रहे थे लाखों रुपए
पत्रिका पड़ताल में सामने आया कि गिरोह मे शामिल दीपक जीनगर, रविकांत व मालाराम शर्मा ने कुछ ही समय में काफी तरक्की कर ली। पार्टियों में साखों रुपए खर्च करते। इतना ही नहीं दोस्तों के साथ घुमने गए तो होटल के वेटर को दस-दस हजार की ट्रीप देना, महंगे कपड़े, जूते, चश्मे पहनना। इन्हीं हरकतों से वह पुलिस की निगाह में चढ़ गए। पुलिस को पता चला कि नकली नोट छापे जा रहे हैं। तब पुलिस ने जाल बिछाया।
39 दिन लगे तीन करोड़ पकड़ने में

बीकानेर रेंज पुलिस महानिरीक्षक ओमप्रकाश को नकली नोटकांड का पर्दाफाश करने में करीब 39 दिन का समय लगा। एक वरिष्ठ अधिकारी लूणकरनसर तहसील के बाजार में कुछ खरीदने गए। तब दो हजार के नोट की बजाय पांच सौच का नोट देने या फिर उधारी रखने का कहा। तब अधिकारी का माथा ठनका कि उधारी देने को तैयार है लेकिन दो हजार का नोट नहीं ले रहा। पुलिस के मुखबिरों, गुप्तचरों को अलर्ट किया।

कई घर उजड़ने से बचे
पुलिस सूत्रों की मानें तो आरोपियों ने 20-22 करोड़ नकली रुपए प्रिंटिंग कर सप्लाई भी कर दिए थे। यह गिरोह पकड़ा नहीं जाता तो कई घर उजड़ जाते। हवाला में असली रुपए जिसे दे रहे थे, वह उससे वसूली करते। इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था नहीं होने पर अनहोनि की आशंका रहती।