आज मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर काल भैरवाष्टमी पर्व मनाया जा रहा है। अष्टमी तिथि के स्वामी रूद्र हैं। इसलिए हर महीने कृष्ण पक्ष की इस तिथि पर काल भैरव की पूजा करने की परंपरा है। इसलिए इसे कालाष्टमी भी कहा जाता है।
कालाष्टमी के दिन भगवान शिव के रौद्र रूप यानी भगवान भैरव की पूजा की जाती है। इनकी पूजा से घर से नकारात्मक ताकतें दूर हो जाती हैं। भगवान शिव ने बुरी शक्तियों को मार भागने के लिए रौद्र रुप धारण किया था। काल भैरव इन्हीं का स्वरुप है।
भैरव यानी डराने वाली आवाज
पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन समय में अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर ही भगवान शिव ने देवी मां की रक्षा के लिए काल भैरव अवतार लिया था। जब शिव जी का ये स्वरूप प्रकट हुआ तब उन्होंने भय (भै) बढ़ाने वाली और रव यानी आवाज उत्पन्न की थी। इसीलिए इस स्वरूप को भैरव कहा जाता है। ये अवतार हमेशा शक्तिपीठ की रक्षा में तैनात रहते हैं। शिव जी ने इन्हें कोतवाल नियुक्त किया है। इसीलिए हर देवी मंदिर में काल भैरव भी होते हैं।
पुराणों में काल भैरव
1. वामन पुराण: इस पुराण में बताया गया है कि शिव के रक्त से ८ दिशाओं में अलग-अलग भैरव की उत्पत्ति हुई है।
2. ब्रह्मवैवर्त्त पुराण: इस ग्रंथ का कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण की दांई आंख से भैरव की उत्पत्ति हुई है।
3. नारद पुराण: इस ग्रंथ के मुताबिक भगवान काल भैरव की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इससे बीमारियां और हर तरह की तकलीफ दूर होती हैं।
4. शिव पुराण: इस पुराण की शतरुद्रासंहिता में लिखा है कि भगवान शिव ने मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव रूप में अवतार लिया था। इस पुराण में भैरव को ही भगवान शिव का पूर्ण रूप कहा गया है।
5. भविष्य पुराण: इस पुराण के उत्तर पर्व के अध्याय 58 के मुताबिक अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर अनघाष्टमी व्रत करना चाहिए। इससे हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। साथ ही आठ तरह के महा सुख मिलते हैं।
6. ब्रह्मांड पुराण: इस ग्रंथ के उत्तर भाग में बताया गया है कि भगवान शिव के क्रोध से भैरव की उत्पत्ति हुई। उसके बाद भैरव ने ब्रह्माजी का सिर काट दिया। इस ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए शिव जी ने भगवान भैरव के काशी में तपस्या के लिए भेजा तब से काशी में काल भैरव मौजूद हैं।
काल भैरव पूजा और व्रत का महत्व
कालाष्टमी के दिन व्रत रखकर भगवान भैरव की पूजा तो की जाती है। साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती की कथा और भजन करने से भी घर में सुख और समृद्धि आती हैं। इस दिन किसी भी भैरव मंदिर में जाकर सरसों के तेल का दीपक जरूर लगाना चाहिए। काल भैरव अष्टमी पर पूजा से बुरी ताकतों का असर खत्म हो जाता है। इस दिन काले कुत्ते को रोटी जरूर खिलानी चाहिए। इससे भैरव प्रसन्न होते हैं।
इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि -विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं। काल उससे दूर हो जाता है। इस व्रत को करने से रोग दूर होने लगते हैं और कामों में सफलता मिलने लगती है।