जयपुर। भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘मिशन उपचुनाव फतह’ की राह आसान नहीं है। पार्टी के सामने ऐसी कई बाधाएं हैं जिन्हें बगैर पार किये मिशन तक पहुंचना मुनासिब दिखाई नहीं दे रहा है। भले ही दो दिन पहले ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पार्टी के अग्रिम पंक्ति के नेताओं के कानों में ‘विजयी मंत्र’ फूंककर गए हैं, पर फिर भी नेताओं को अंदरखाने मौजूदा समय की विपरीत परिस्थितियों का डर सताए हुए है।
गौरतलब है कि प्रदेश की चार सीटों पर उपचुनाव प्रस्तावित हैं जिसके चुनाव कार्यक्रम की घोषणा को लेकर काउंटडाउन जारी है। दोनों ही प्रमुख दल अपनी-अपनी तैयारियों के साथ चारों सीटों पर जीत के दावे कर रहे हैं।
किसानों का आक्रोश चरम पर
उपचुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब प्रदेश में किसान आंदोलन परवान पर है। केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर जगह-जगह किसान महापंचायतें हो रही हैं जिनमें हज़ारों की संख्या में किसान पहुंचकर ना सिर्फ अपनी एकजुटता दिखा रहे हैं, बल्कि भाजपा पार्टी के खिलाफ अपना आक्रोश भी जता रहे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत सहित अन्य कई किसान नेताओं की मौजूदगी में श्रृंखलाबद्ध महापंचायतें जारी हैं।
दरअसल, उपचुनाव क्षेत्रों में भी किसानों की बहुतायत वाले इलाके हैं। ऐसे में किसानों के बीच जाकर उन्हें अपने पक्ष में करना पार्टी नेताओं के लिए सबसे बड़ी परेशानी और चिंता का विषय बना हुआ है।
रालोपा की एंट्री से भी खतरा!
उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबले में अब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भी ताल ठोक दी है। रालोपा सांसद हनुमान बेनीवाल ने चारों सीटों पर उम्मीदवार उतारने और अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। रालोपा किसानों के मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठाती रही है। अब जब किसान आंदोलन के बीच उपचुनाव हो रहे हैं, ऐसे में रालोपा की कोशिश किसानों से जुड़े मुद्दों को उठाकर माहौल को अपने पक्ष में करने की रहेगी। ऐसे में जानकार मानते हैं कि रालोपा की एंट्री कांग्रेस से ज़्यादा भाजपा को नुकसान पहुंचाती दिख रही है।
बेरोजगारों से भी बनी हुई है दूरी
राज्य सरकार के मौजूदा कार्यकाल से बेरोजगार युवाओं की नाराजगी खुलकर सामने आई हुई है। राजधानी जयपुर में भी लम्बे समय तक सरकार विरोधी पड़ाव चला और बेरोजगारों ने चारों सीटों पर उम्मीदवार उतारने की भी चेतावनी दी, लेकिन इन सब के बीच भी भाजपा की बेरोजगारों से दूरी रही।
भाजपा के राज्य सभा सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा ने ज़रूर सड़क पर उतरकर युवाओं की सुध ली, पर सांसद की ये कवायद भाजपा पार्टी से ज़्यादा व्यक्तिगत रही। शेष वरिष्ठ नेताओं ने सिर्फ सोशल मीडिया पर बयान जारी कर ही इतिश्री की। ऐसे में बेरोजगार युवाओं की नाराजगी कांग्रेस के साथ ही भाजपा से भी देखी जा रही है।
विरोधी दल का ‘ठप्पा’
उपचुनाव में भाजपा की कोशिश भले ही मौजूदा ‘एंटी-इनकम्बेंसी’ की स्थितियों को भुनाने की होगी। लेकिन सरकार के बीच कार्यकाल में ऐसा कर पाना उसके लिए आसान नहीं होगा। जानकार भी मानते हैं कि सरकार के बीच कार्यकाल में होने वाले चुनावों का फ़ायदा अधिकांशतः सत्तारूढ़ दल को ही मिलता है। इसका उदाहरण प्रदेश में हाल हुए पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में भी देखने को मिला है।
अंदरूनी खींचतान भी परेशानी
प्रदेश भाजपा प्रभारी अरुण सिंह हों या प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया, दोनों ही नेता हर बार मीडिया के सामने पार्टी के अन्दर ‘ऑल इज वेल’ होने का दावा ठोक रहे हैं, जबकि हकीकत किसी से अब छिपी हुई नहीं है। ‘नेतृत्व’ को लेकर पार्टी नेताओं में टकराव इस कदर है कि गुटबाजी परवान पर है को कई बार खुलकर भी सामने आ चुकी है।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के समर्थक कार्यकर्ता बेधड़क होकर अपने-अपने नेता के समर्थन और उन्ही के नामों से पार्टी के पैरेलल होकर संगठन चला रहे हैं। ये अंदरूनी खेमेबाजी भी भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है जिसका नुकसान खुद भाजपा को ही उठाना पड़ सकता है।