जयपुर। राजस्थान भाजपा का आंतरिक संघर्ष थमने के बजाय बढ़ता जा रहा है। भाजपा अध्यक्ष जे.पी.नड्डा की एक दिवसीय यात्रा का मुख्य मकसद प्रदेश के नेताओें के बीच संघर्ष विराम कराना रहा। हालांकि उन्होंने यहां काली बाई मंदिर में दर्शन कर पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को भी साधने का प्रयास किया। उन्होंने बंगाली समाज के लोगों से बात भी की। जयपुर सहित प्रदेश के विभिन्न शहरों में बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल के लोग रहते हैं। जयपुर में बंगाली समाज के तीन मंदिर हैं। राजस्थान के लोग बड़ी संख्या में कलकत्ता और पश्चिम बंगाल के अन्य जिलों में रहते हैं,कुछ परिवार तो स्थाई रूप से वहीं बस गए।
नड्डा ने अपने दौरे के दौरान जहां प्रदेश के नेताओं को आपसी मतभेद भूलाकर एकजुट होने का संदेश दिया, वहीं बंगाली समाज के लोगों को साधने का प्रयास किया। उधर नड्डा की यात्रा और संदेश का प्रदेश के भाजपा नेताओं में कोई होता नहीं दिख रहा है। उनकी यात्रा के दूसरे दिन बुधवार को फिर खेमेबाजी साफ नजर आई। विधानसभा में भाजपा विधायक पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके विरोधी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया व उप नेता राजेंद्र राठौड़ के खेमे में बंटे नजर आए। वसुंधरा राजे के चाहने के बावजूद कटारिया, राठौड़ व पूनिया विधायक दल का सचेतक बनाने को तैयार नजर नहीं आए। वसुंधरा राजे चाहती हैं कि पिछले सवा दो साल से खाली पड़े इस पद को भरा जाए, लेकिन दूसरा खेमा इसके लिए तैयार नहीं है।
नड्डा के संदेश को नजरअंदाज करते हुए वसुंधरा खेमा 8 मार्च को होने वाली उनकी देव दर्शन यात्रा की तैयारी में जुट गया। वहीं पूनिया, राठौड़ व कटारिया खेमा वसुंधरा की यात्रा से दूर रहने को लेकर बुधवार सुबह से ही अपने समर्थकों को संदेश देने में जुटा रहा। भाजपा के प्रदेश मुख्यालय से जिला स्तर पर संगठन के पदाधिकारियों को वसुंधरा की यात्रा से दूर रहने के लिए फोन किए गए। वहीं देव दर्शन यात्रा को लेकर वसुंधरा खेमे की ओर से लगाए गए होर्डिंग्स में पूनिया सहित प्रदेश के अन्य वरिष्ठ नेताओं को स्थान नहीं दिया गया, हालाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा के फोटो कई स्थानों पर लाए गए।
वसुंधरा और विरोधियों को करीब लाने की कोशिश
नड्डा ने मंगलवार को प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में वसुंधरा, पूनिया, कटारिया व राठौड़ के हाथ उठवाए, लेकिन इन नेताओं में आपस में नजर नहीं मिली थी। यह नजारा वैसा ही था जैसे कि सवा दो साल पहले राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व सचिन पायलट के हाथ उठवाए, लेकिन दोनों में नजरें नहीं मिली थी। दोनों के बीच अब तक तकरार बरकरार है। नड्डा पांच राज्यों के चुनाव प्रचाार में व्यस्त हैं, लेकिन फिर भी वे जयपुर आए। इसका कारण वसुंधरा और उनके विरोधियों में बढ़ती कलह है। इस कलह और खेमेबाजी का चार विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव पर असर हो सकता है। राष्ट्रीय नेतृत्व की दोनों खेमेबाजी खत्म कर सभी नेताओं को करीब लाने की कोशिश में जुटा है। नड्डा ने इसको लेकर सख्त संदेश भी दिया।