बीकानेर (सुमित व्यास) । पान मसाला और गुटखा पर प्रतिबंध लगा है, दुकानें बंद हैं इसलिए पान और गुटखा की भी किल्लत है लेकिन ऐसा नहीं है कि जो पान और पान मसाला खाने वाले हैं उन्हें अभी तक कोई ख़ास दिक़्क़त हुई हो, बस दाम जरूर बढ़े है जो की स्थानीय स्तर पर कालाबाजारी के परिणाम है। जहां चाह है, वहां राह है जो खाने का शौक़ीन है, वो ढूंढ़ ही ले रहे हैं फिर वो दाम को भला क्यों देखेगा। गौरतलब है कि पान मसाला और गुटखा की कालाबाजारी शहर में परवान पर है दूकानें बंद है पर घरों से चार गुना दामों में बेचे जा रहे है। हालांकि पान मसाला कम्पनीयों ने दरों में कोई बढ़ोतरी नही की है किन्तु लॉकडाउन के चलते कालाबाजारी की जा रही है। देश भर में लॉकडाउन के तुरंत बाद ही राजस्थान सरकार ने राज्य में पान-मसाला और गुटखा वितरण करने और उसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। यह आदेश जारी करते वक़्त कहा गया कि पान मसाला खाकर थूंकने और पान मसाले के पाउच के उपयोग से भी कोरोना वायरस के संक्रमण की आशंका रहती है। पान, गुटखा, पान मसाला, तंबाकू जैसी नशीली वस्तुओं का बीकानेर में न सिफऱ् सेवन आम है बल्कि पान मसालों के उत्पादन में भी यह शहर अग्रणी है इस लॉकडाउन में जहां पाउच वाले पान मसाला बढ़े दामों के कारण हर किसी की पहुच से दूर है तो स्थानीय निजात खुटखा जो सुपारी-जर्दा मिश्रित जिसका नाम सुपारीपत्ती ने भी पकड़ बना ली। बीकनेर में सुपारीपत्ती की खपत ख़ासतौर पर लॉकडाउन में काफ़ी ज़्यादा है।
लेकिन सवाल ये उठता है कि यदि पान मसाले की दूकाने बंद है तो यह लोगों को मिल कैसे रहा है?
ये दुकानें भले ही बंद हो गई हों लेकिन कुछ किराने की दुकानों पर भी लोग-चोरी छिपे बेच रहे हैं और पान की जो छोटी-मोटी दुकानें बंद हो गई हैं, वो दुकानदार अपने घरों से भी छिटपुट तौर पर अपना वो स्टॉक बेच रहे हैं जो उनके पास रखा हुआ था। यही नहीं, ये सारी चीजें महंगे दामों पर बिक रही हैं और खाने वाले शौक़ से खऱीद रहे हैं। कुछ जो न तो दूकानदार है न ही व्यापारी पर घर से बेच रहे है। प्रशासन ने जर्दा व गुटखा पकडऩे की कार्यवाही भी की पर अब भी चार गुना दामों में बिक तो रहा है, वो माल आया कहां से? प्रशासन इस मामलें में मौन क्यों है? अब हालात ये है कि शौकिन तो कही से भी ले आएगा और चारगुना दाम भी देगा पर इस कालाबाजारी का पता सबको है फिर वो जनता हो या प्रशासन दोनों ही मौन है।