बीकानेर। तीन पीढिय़ों का एक साथ लेखन करना वो भी मायड़ भाषा राजस्थानी में सृजनता भरी कलम चलाना और भी गर्व की बात है। जहां संवेदनाएं ही मुख्य होती है वहीं रचना का जन्म होता है। यही होता है मायड़ भाषा के प्रति प्रेम और समर्पण। यह बात एनएसडी अध्यक्ष डॉ. अर्जुनदेव चारण ने धरणीधर रंगमंच पर कही। शनिवार शाम को वरिष्ठ साहित्यकार-रंगकर्मी लक्ष्मीनारायण रंगा की राजस्थानी पद्य चितराम, कवि-कथाकार कमल रंगा की अदीठ साच व युवा कवि पुनीत कुमार रंगा की मुगत आभौ पुस्तकों का लोकार्पण डॉ. अर्जुनदेव चारण, डॉ. श्रीलाल मोहता, डॉ. मालचन्द तिवाड़ी, उमाकान्त गुप्त, मधु आचार्य व सुषमा रंगा ने किया।


प्रज्ञालय संस्थान व सुषमा प्रकाशन से प्रकाशित उक्त तीन पुस्तकों के लोकार्पण समारोह को सम्बोधित करते हुए डॉ. चारण ने कहा कि पौराणिक चरित्रों को समझना बहुत कठिन काम है। रचनाकार समाज को खड़ा करने के लिए आज के समय में नैतिक मूल्यों की स्थापना करना चाहता है। उस समय को आज सन्दर्भ में जानना और समझना बहुत मुश्किल कार्य है। रचनाकार की विशेषता होती है कि वो चरित्रों को कैसे खड़ा करता है। कमल रंगा की कविताएं बड़े कैनवास की मांग करती है व चरित्रों को लेकर और अच्छी रचनाएं पाठकों को देंगे। पुनीत की रचनात्मकता राजस्थानी भाषा के संरक्षण को बल देगी।

लोकार्पण अवसर पर वरिष्ठ आलोचक उमाकान्त ने कहा कि तीन पीढिय़ों की रचना एक साथ लोक के हाथ अच्छा प्रयास है। आज जब समाज के सामने असमंजस, अराजकता और मूल्यहीनता का अंधेरा व्याप्त है, साहित्य ही रोशनी बन सकता है। लक्ष्मीनारायण रंगा ने प्रकृति के नए रंग के माध्यम से शब्दों की अर्थवर्ता के साथ प्रकृति के कई रूप हमारे सामने नए बिम्ब-प्रतीक के साथ रखे। पौराणिक चरित्रों पर रचना करना चुनौती भरा है, उसे कमल रंगा ने निभाया है। पुनीत कुमार रंगा ने अपनी रचना के माध्यम से युवा मन की आशा-अपेक्षाओं को नए स्वर दिए हैं।

समारोह को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार मधु आचार्य ने कहा कि राजस्थानी भाषा जहां मान्यता के लिए संघर्ष कर रही है वहीं तीन पीढ़ी एक साथ सृजन करे, यह ऐतिहासिक है। तीन पीढ़ी और तीनों के भिन्न भिन्न काव्य रंग। राजस्थानी साहित्य में आज का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।

कवि व कथाकार मालचन्द तिवाड़ी ने अपने उद्बोधन में कहा कि पौराणिक साहित्य का अवगाहन करना लोमश ऋषि के रोम गिनने जैसी चुनौती है। उसे समकाल के प्रश्नों से यह रू-ब-रू कर मानवीय संवेदना से जोडऩे का यह महत्तर कार्य राजस्थानी कविता में एक नए अध्याय का श्रीगणेश है। अदीठ साच पुराणों के लाखों श्लोकों में से चुनिंदा स्त्री चरित्रों के माध्यम से रचा गया एक नया समकाल है। यह अतीत को वर्तमान की कचहरी में खड़ा कर प्रश्नांकित करने का कवि धर्म है, जो हर युग के कवि निभाते आए हैं। राजस्थानी में यह एक नई शुरुआत है।

लोकार्पण समारोह के अध्यक्ष श्रीलाल मोहता ने कहा कि तीन खण्डों की काव्यकृति अदीठ साच अपने पौराणिक चरित्रों के अनुरूप एक नई और ताजी भाषा-सृष्टि के कारण उल्लेखनीय बन पड़ी है। भरत की पत्नी मांडवी जैसे उपेक्षित चरित्र के प्रति संवेदनात्मक प्रश्नाकुलता इस कृति का एक और उल्लेखनीय पहल है। कैकयी हो या उर्मिला- कमल रंगा ने चुनौती के साथ स्त्री व पौराणिक संदर्भों को समकालीन जीवन के यथार्थ से जोड़ा है।

आयोजन से जुड़े राजेश रंगा ने स्वागत भाषण दिया तथा संजय आचार्य ने रचनाकारों का परिचय उपस्थितजनों के समक्ष किया। कार्यक्रम का संचालन ज्योति रंगा ने किया तथा आगन्तुकों का आभार कासिम बीकानेरी ने जताया।

यह रहे उपस्थित- भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’, नन्दकिशोर आचार्य, विद्यासागर आचार्य, रामकिशन आचार्य, रवि पुरोहित, शंकर सिंह राजपुरोहित, सरदारअली पडि़हार, राजेन्द्र जोशी, ब्रह्मदत्त आचार्य, सुनील बोड़ा, आत्माराम भाटी, डॉ. अजय जोशी, डॉ. मंजू कच्छावा, राजाराम स्वर्णकार, आनन्द वी आचार्य, गौरीशंकर प्रजापत, नितिन गोयल, बृजरतन जोशी, गिरिराज खैरीवाल, घनश्याम साध, पुखराज सोलंकी, शंभुदयाल व्यास, अरविन्द पुरोहित, गिरिराज पारीक, सीमा पालीवाल, मुकेश व्यास, जुगलकिशोर पुरोहित, सुधेश व्यास, सुनीलम, अशोक शर्मा, मदनमोहन व्यास, नगेन्द्र नारायण किराड़ू, योगेन्द्र पुरोहित, बाबूलाल छंगाणी, डॉ. फारुख चौहान, ओम सोनी, कैलाश भारद्वाज, नेमीचन्द गहलोत, चन्द्रशेखर जोशी, नवल व्यास, प्रेम व्यास, जाकिर, बुनियाद हुसैन, नीरज दइया, अशोक आचार्य, डॉ. प्रकाश आचार्य, श्यामनारायण रंगा, बृजगोपाल बिस्सा, विप्लव व्यास, लोकेन्द्र पुरोहित, एडवोकेट सुरेन्द्र शर्मा, राहुल रंगा, अविनाश व्यास, उमाशंकर व्यास, शिवशंकर भादाणी, हरिशंकर आचार्य, भवानी सिंह सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे।