कोटा. हाड़ौती में भीषण गर्मी के बीच स्वाइन फ्लू के बाद जीबी सिन्ड्रोम जैसी गंभीर बीमारी सामने आई है। एमबीएस अस्पताल के स्ट्रोक यूनिट में इससे पीडि़त मरीज भर्ती है। दरअसल, वायरल इंफेक्शन होने के बाद कई बार मरीज की नव्र्स पर असर पड़ता जाता है। इससे शरीर की नसें काम करना बंद कर देती है। ऐसी अवस्था में मरीज (आरोही लकवा) जीबी सिंड्रोम का शिकार हो जाता है। इस बीमारी में शरीर का निचला हिस्सा धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। बाद में शरीर का ऊपरी हिस्सा, सांस लेने व निगलने की मांसपेशियां भी काम करना बंद कर देती है। यह बीमारी मार्च से अक्टूबर तक ज्यादा प्रभावी रहती है।
ऐसे अटैक करती है बीमारी किसी के भी वायरल इंफेक्शन हो जाता है। जैसे डायरिया, गला खराब होना। इंफेक्शन के 10 से 15 दिन बाद जो शरीर में एन्टीबॉडीज बनते है। वो वायरस को अटैक करने के बजाय नसों को अटैक करते हैं। इस बीमारी के होने पर सबसे पहले रोगी के शरीर, खासकर हाथों व पैरों में सुन्नपन, सिहरन, अंगुलियों में सुई सी चुभन महसूस होना, दर्द होना आदि लक्षण होने लगते हैं। रोगी अपने हाथ और पैरों में कमजोरी महसूस करने लगता है। जो धीरे-धीरे बढ़ती है, रोगी चल फिर नहीं पाता। इसके होने पर गर्दन की मांसपेशी भी प्रभावित हो सकती है। एक चौथाई रोगियों में सिर और चेहरे में स्थित क्रेनियल नव्र्स भी प्रभावित हो जाती है। इस वजह से बात करने, चबाने और निगलने में परेशानी होने लगती है। चार हफ्ते तक ये बीमारी बढ़ सकती है। कुछ रोगियों को हाथ-पैर के साथ सांस की मांसपेशियों में भी कमजोरी आ जाती है।
पूरे साल 60 मरीज आते हैं चपेट में
पिछले आंकड़े देखे तो इस जानलेवा बीमारी के अमूमन पूरे साल में एमबीएस अस्पताल के वार्ड एवं स्ट्रोक यूनिट में 60 से 80 मरीज भर्ती होते हैं। इस साल भी बीमारी के मरीजों का अस्पतालों में आना शुरू हो चुका है।
दस प्रतिशत तक खतरा
ऐसे मरीजों को करीब कई दिनों तक वेंटिलेटर पर रखना पड़ता है। इसमें 80 प्रतिशत मरीज ठीक हो जाते है, लेकिन 20 प्रतिशत में कुछ कमी रह जाती है और 10 प्रतिशत की जान भी जा सकती है। इसमें ऑटोनॉमिक सिस्टम फेलियर की वजह से मौत होती है। वेंटिलेटर पर रहने से निमोनिया होना भी मौत का कारण बनता है।
सरकारी अस्पताल में इलाज की सुविधा
इस बीमारी के लिए एनसीवी जांच होती है। इसके सरकारी अस्पताल में 500 रुपए व निजी में एक हजार से 1300 रुपए तक लगते हैं। एनसीवी जांच में जीबी सिन्ड्रोम की पुष्टि होने के बाद मरीज के एक दिन में 5.5 ग्राम आईवीआईजीजी इंजेक्शन लगते है, जो मरीज के वजन के हिसाब (प्रतिदिन 3 से 6 इंजेक्शन तक) से लगाए जाते है। लगातार पांच दिन तक मरीज के इंजेक्शन लगाए जाते हैं।
बाजार में 5 ग्राम आईवीआईजीजी इंजेक्शन 8 से 12 हजार तक का आता है। सरकारी अस्पताल में नि:शुल्क लगते हैं। जो सरकार की तरफ से गरीब मरीजों के लिए मददगार साबित होती है। यदि मरीज निजी अस्पताल में इलाज करवाता है तो 2 से 3 लाख रुपए तक लग जाते हैं। ध्यान रखे जब पैरों या पंजों की झनझनाहट शरीर के ऊपरी हिस्से तक पहुंच जाए। कमजोरी तेजी से बढऩे लगे, सांस लेने में परेशानी हो या पीठ के बल लेटने पर सांस छोटी आए तो तत्काल डॉक्टर को दिखाएं।
जीबी सिंड्रोम तंत्रिका तंत्र की बीमारी
जीबी सिंड्रोम एक तंत्रिका तंत्र की बीमारी है। यह वायरल इंफेक्शन के होने से शरीर मे एन्टीबॉडीज बनने से रोकती है और नव्र्स पर अटैक करती है। हाथ पैर काम करना बंद हो जाता है। कई बार निगलने व सांस लेने में तकलीफ होती है। शरीर में ओटोनॉमिक सिस्टम फेलियर की वजह से मौत तक हो सकती है। हालांकि ये बहुत कम प्रतिशत रोगियों में होता है। ज्यादातर रोगी ठीक हो जाते हैं। निजी अस्पताल में इस बीमारी का इलाज मंहगा है, लेकिन सरकारी अस्पताल में आईवीआईजीजी का महंगा इंजेक्शन सभी रोगियों को नि:शुल्क दिया जाता है।