आलसियों के लिए प्रचलित है – अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए, सबके दाता राम । प्रकृत्ति की प्रवृत्ति भी अजगर जैसे जीव को भोजन उपलब्ध कराने की है जिसे हिलने डुलने में भी आलस आता है। लेकिन वही प्रकृति ऐसे जीव भी बना चुकी है जो अजगरों को भाग दौड़ करने पर विवश करते हैं। ठीक वैसे ही जैसे सत्ता में रहे नेताओं ने काम नहीं किए तो विपक्षी उन्हें येनकेन प्रकारेण कचोट-कचोट कर सक्रिय करने के प्रयास करते हैं। हां यह इतर बात है कि विपक्षी खुद अपनी विफलताओं को भी चाशनी में भिगो कर मीठी सफलता बताते नहीं अघाते। आह… याद आया, दफ्तरों में फाइलें भी इधर से उधर होने में बहुत समय लगाती हैं । और चुनाव ना हो तो हमारे नेता जी भी जनता के बीच पहुंचकर आमजन का हाल-चाल जानने और अपनी कथित उपलब्धियां बताने में आलस कर फाइलों की तरह ही अपने अपने दफ्तरों में जमें रहते हैं। हमें दूध पहुंचाने वाले रफीक दूध वाले भैयाजी ने आज ही हमसे पूछा – बाबूजी, ऐसा क्यों होता है कि शहर में सत्ताधारी दल या विपक्ष के बड़े नेताजी ना आएं तो सड़कें भी धूल और कचरे से अटी रहती हैं। उनको साफ करने और करवाने वाले भी ना जाने कहां कहां जाकर हाजिरी लगाकर अपनी नौकरी पूरी करते हैं। लेकिन नेताजी या मंत्री के आने पर हमारा शहर उस रूट पर तो चमक उठता है

जहां से कुर्सीधारी गुजरने वाले होते हैं? नेता-मंत्री आते 4 घंटे के लिए हैं उसमें भी 2 घंटे खुली गाड़ी में हाथ जोड़े खड़े रोड पर घंटों से खड़ी जनता को अपना मुखड़ा दिखाते चलते हैं। किसी से बातचीत करने की फुरसत निकालना उनके बस की बात नहीं । बाकी के 2 घंटों में वे जगह जगह फूलमालाएं धारण कर 10-20 मिनट तक प्रतिद्वन्द्वी को कोसते और अपने प्रत्याशियों को वोट देने की अपील कर फिर हवाई घोड़ों पर सवार हो… यह जा वह जा… उड़नछू…! दूधवाले भैया की बात का हमसे तो भैयन, जवाब देते न बना। क्योंकि सभी देख ही रहे हैं चुनाव आ गए तो नेता जी भी हमारे और आपके बीच आ गए। वे नेता भी जो जनहित और राष्ट्रहित के आगे अपना और अपनी पार्टी का भविष्य तक दांव पर लगाने में पीछे नहीं रहे। और वे नेता भी जिनको अपने और अपनी पार्टी के आकाओं के आगे कुछ और दिखता-सूझता ही नहीं। कहां तो नेता जी को यह भी पता नहीं चलता कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में किसके यहां शादी हो रही है और किसके यहां गमी हो गई थी ।

अब वही नेता जी अपने मतदाताओं की पूरी जन्म कुंडली निकलवा कर ऐसे हाल चाल चाल पूछ रहे हैं मानो 24 घंटे उनकी निगाह हम पर ही रहती हो। वे शीतल कक्षों में बैठ कर जेठ की धूप में बादलों के लिए आसमान ताकने वालों की पीड़ा महसूस नहीं करते। ठीक ऐसे ही जैसे अजगर ठंडी जगहों पर पसरा रहता है… उसे क्या पता… जीवनयापन के लिए हिरण कितनी कुलांचे भरता है। पंछी कितने आसमान तय करता है। लेकिन विडंबना है कि प्रकृति ने कतिपय नेताओं को भी ऐसी प्रवृत्ति दे दी है कि वे चुनावों से पहले चलने फिरने भागने दौड़ने यात्रा करने जनता के बीच जाने में कंजूसी बरतते हैं। रफीक दूधवाले भैया ही कह कर गए – नेता लोग अपनी सारी शक्ति चुनाव के लिए जमा करते रहते हैं और चुनाव आते ही हेलीकॉप्टर से हवाई जहाज से से दे दनादन एक शहर से दूसरे शहर ही नहीं एक राज्य से दूसरे राज्य भी एक ही दिन में दो दो बार 3 तीन बार तक अपनी हाजिरी लगाते हैं।

अजगर के दाता राम। है तो बीते जमाने में ईजाद की गई कहावत लेकिन लगता है ज्ञानी पुरुषों ने भविष्य में भी झांक लिया था और इसके दृष्टांत नेताजी की कृपा से वर्तमान में भी दिखते रहते हैं। अजब तेरी कुदरत, अजब तेरा खेल…, छछूंदर भी डाले, चमेली का तेल । नेताओं की बनाई नीतियों की बदौलत ही तो… अयोग्य को भी योग्य से अधिक मिल जाता है… और तो और योग्य से लगभग छीनकर अयोग्य की झोली में डालने के लिए सीनाजोरी तक करने से लोग नहीं हिचकते। भाई, रफीक दूधवाले भैया की बात हमारा तो दिल चीरती लगी। क्योंकि सुना है – कार्य में वरीयता या मेरिट तो भर्ती परीक्षा के बाद तय होती है लेकिन आवेदन के लिए योग्यता पहले ही निर्धारित कर संभावित लाभांवितों के लिए मार्ग प्रशस्त करने का जुगाड़ बन जाता है। आय, आयु, शिक्षा, अनुभव आदि आदि में छूट के साथ साथ जाति – वर्ग में भी राहत। सामान्य तो अति सामान्य वर्ग में आ जाता है जिसकी कोई महत्ता नहीं।

उसका कसूर यह है कि वह केवल आर्थिक रूप से ही गरीब (कमजोर) नहीं, स्वभाव से भी ‘‘गरीब’’ है। योग्यता उसके पास है तो सिद्ध करे और खुद कमाए खाए, आजीविका के लिए राज का काज तो कमजोर के उत्थान हेतु है। लेकिन यह भी ज्ञानीजन ही कह गए है कि ईश्वर को अत्याचार पसंद नहीं। हद से बाहर कोई काम अच्छा नहीं होता। शायद जल्दी ही सबक लेकर अजगर हर वक्त भागने लगे, पंछी परमानेंट काम पर लग जाएं।