ये क्या हुआ !
अजीब करामात है। पेड़ों पर पैसे लग रहे हैं। उन पैसों को नेताजी पेड़ों से तोड़-तोड़ कर रेवड़ियों की तरह बांटने में मशगूल हैं। इतना ही नहीं, दोनों ओर से नेताओं ने विपक्षी की योजनाओं को जन विरोधी बता कर वैसी ही अपनी-अपनी योजनाओं को सर्वश्रेष्ठ भी घोषित किया है। वाह! वाह! क्या बात है! खुद राज में आओ और उसी योजना को दूसरे लिफाफे में लपेट कर जनहित में पेश कर दो। करिश्मा यहीं नहीं रुकता। चुनावी समर में विपक्षी पर हमला करते हुए दूसरे लिफाफे में लपेटी अपनी जैसी ही उसकी योजना को बेशुमार नुक्सों भरा बता देते हैं। धन्य हैं राज कला में पारंगत जन नेतृत्व करने वाले।  यही तो बाधाएं पार करने की कला है। राज कला। इसका एक महत्वपूर्ण पीरियड होता है, घोषणा काल।  इस काल के शुभ मुहूर्त में दो प्रमुखों की रसाकसी से इतर तीसरा मोर्चा खम ठोक कह रहा है – 40 सीट मिल गई तो…  ¿¿¿ !!!  जैसा कि पब्लिक सब जानती है।
इन दिनों पंच वर्षीय महा लोकतंत्र कुंभ रूपी चुनाव के स्वागत में खूब घोषणाएं हो रही हैं।  पता नहींं कौनसी जादू की छड़ी से नेताजी पेड़ों पर पैसे उगाए जाने की करामात सीख गए हैं। कुछ सप्ताह पहले तक जिस खजाने में टोटे पड़े रहते हैं वहां के हवाले से ही नेताजी अब लाखों – करोड़ों के तोते उड़ाने की घोषणाएं करने लगे हैं । ऋण माफी से लेकर बेरोजगारी भत्ता तक घर बैठे पहुंचाने के ख्वाब दिखाए जा रहे हैं।   यही तो है  उच्च कोटि की घोषणाओं की बानगी । पब्लिक सब जानती है। ऐसी घोषणाएं सरकार की आर्थिक सेहत को दीर्घावधि तक प्रभावित करने वाली भी हो सकती हैं, जिनको अमलीजामा पहनाना घोषणा करने वाली सत्तासीन होने को उतावली पार्टी के नेताओं को भी दुष्कर लगने लगेगा। मगर ऐसी घोषणाएं इसलिए भी की जाती हैं कि खुदा न ख्वास्ता विपक्ष में बैठना पड़ जाए तो जनता को कहा जा सके कि भाई, वोट हमें देते तो हम ये कर देते, वो कर देते, यूं कर देते वैसे कर देते।  जादू की चुटकी से। चुटकी और जादू का करिश्मा एक साथ। बार बार । लगातार। मगर अब जाग्रत हो चुकी जनता कह रही है कि सभी राजनीतिक दलों का लक्ष्य एक ही है, सिंहासन पर बैठना, लेकिन यह पार्टियां कहती हैं कि उनका लक्ष्य है देश का विकास करना।  अब जनता सवाल यह है कि चाहे सिंहासन पर बैठना लक्ष्य हो या देश का विकास करने का लक्ष्य हो, पार्टियां  यह सब काम अलग अलग होकर क्यों करना चाहती  हैं ? इस सवाल का जवाब जनता इन राजनीतिक पार्टियों से यह जानना चाहती है।
यदि अपना ही हुक्मनामा चलाना है तो मिलकर चला लीजिए! जैसे किसी एक को परास्त करने के लिए महागठबंधन बनाते हो ! तो देश के विकास के लिए महा गठबंधन बना लो! सभी मिलकर सिंहासन पर बैठ जाओ!  सभी मिलकर देश का विकास करो! लेकिन नहीं, जनता इस बात को जान गई है कि सत्ता की लोलुप पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए तो किन्हीं चार से हाथ मिला सकती हैं, लेकिन देशहित और देश विकास के लिए सभी से हाथ मिलाना इन को गवारा नहीं।  पब्लिक सब जानती है। राज कला संकाय पढ़ती है। घोषणा कला का पीरियड भी जनता को मालूम है।