बीकानेर। प्रदेश में कांग्रेस में दो धूरियों के बीच टिकटों का बंटवारा अटका हुआ है। ये धूरी हैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और चार दशकों से भी अधिक समय से राजस्थान में राजनीति कर रहे अशोक गहलोत। राजस्थान में कांग्रेस का दिग्गज नेता अशोक गहलोत को माना जाता है और राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की नजदीकियों व प्रदेश अध्यक्ष पद के कारण सचिन पायलट भी प्रदेश के बड़े नेता बनकर उभरे हैं। पायलट ने राजस्थान के उप चुनावों में शानदार परफॉर्मेंस भी दी है।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि दोनों गुटों के बीच टिकटों की खींचतान चल रही है, जो चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा सकती है। उनके अनुसार इन हालातों के चलते पार्टी को नुकसान से बचाने के लिए राहुल गांधी ने 50-50 फार्मूला अपनाया है। राहुल ने दोनों नेताओं के बीच राजस्थान की 100-100 विधानसभा सीटों का बंटवारा कर दिया है, जहां वे अपनों को टिकटें बांट सकेंगे।

राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से हर सीट पर औसतन 15-15 उम्मीदवार दावेदारी जता रहे हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार पायलट और गहलोत दोनों ही अपने-अपने गुट के नेताओं को टिकट दिलवाने के लिए जमकर उनकी पैरवी कर रहे हैं। उनके अनुसार विवाद और नाराजगी से बचने के लिए राहुल गांधी ने बीकानेर संभाग सहित मारवाड़ व उससे लगते नागौर जिले, शेखावाटी, हाड़ौती क्षेत्र की सीटों पर उम्मीदवारों के चुनाव में अशोक गहलोत की राय मायने रखेगी। वहीं जयपुर, अजमेर सहित मध्य राजस्थान, पूर्वी राजस्थान तथा अन्य स्थानों की सीटों पर सचिन पायलट से प्रमुखता से राय ली जाएगी। राजस्थान विधानसभा में 200 सीटें हैं और प्रदेश नेतृत्व व आलाकमान तीन-तीन हजार प्रत्याशियों की दावेदारी से जूझ रहा है। कांग्रेस बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के उतर रही है।

हालांकि पहले भी ऐसा ही हुआ है, लेकिन दो दशकों से भी अधिक समय से अशोक गहलोत यहां सर्वमान्य नेता और मुख्यमंत्री पद के लिए काग्रेस का अघोषित चेहरा रहे हैं। इधर, राहुल गांधी ने करीब चार वर्ष पूर्व पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद दिया। साल 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार हुई थी। ऐसे हताशा भरे समय में राहुल गांधी ने सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष नाते हुए कमान सौंपी थी। हालांकि चार साल में उन्होंने उप चुनाव में दोनों लोकसभा सीटें व 6 में से 4 विधानसभा सीटें जीतीं और कांग्रेस में ऊर्जा का संचार किया। यहां दशकों से जो नेता गहलोत से असंतुष्ट थे, उन्होंने पायलट का साथ दिया। दोनों कद्दावर नेताओं को लेकर कांग्रेस नेता-कार्यकर्ता व जनता के बीच यह कौतुहल बना हुआ है कि अगर ये पार्टी सत्ता में आई, तो मुख्यमंत्री गहलोत होंगे या पायलट।