बादशाह

चुनावी समर में नामांकन प्रक्रिया के साथ ही पाला बदलने की नीति पर अमल शुरू हो चुका है । कुर्सी की लालसा वाले ऐसे दलबदलू कल तक पार्टी आलाकमान की हां में हां ऐसे मिला रहे थे जैसे अकबर की हां में बीरबल की हां।आपको याद ही होगा, अकबर ने कहा बैंगन बहुत खराब है, बीरबल ने कहा, जी हां बहुत खराब है। फिर किसी दिन अकबर मूढ़ में थे तो कहने लगे, बैंगन तो बहुत उपयोगी है, इसके सिर पर ताज है। वाह क्या स्वाद है! बीरबल ने तुरंत हां में हां मिलाई, जी हां बादशाह। बैंगन-सा कोई नहीं। अकबर को पुरानी बात याद हो आई तो बोले – अरे बीरबल, तुम मेरे कहने से बैंगन को बुरा या अच्छा कहते हो, क्या बैंगन का अपना कोई गुण-महत्व नहीं जो तुम कह सको ? बीरबल बोला – हुजूर, मैं नौकरी आपकी करता हूं। बैंगन की नहीं। तो अकबर एक था, बीरबल एक था इसलिए उनसे श्रेष्ठ कोई नहीं और ऐसा ही आजतक होता आया है कि सरदार जो कहे वही ठीक, प्यादे बाकी लोगों की नौकरी थोड़े ही करते हैं। लेकिन अब अपनी कथित महान पार्टी की टिकट से वंचित से नामी गिरामी टोपीधारी अब अपनी अपनी पार्टियों को तुच्छ बता कर निर्दलीय उम्मीदवारी के रूप में प्रकट हो रहे हैं ।

इन सब गतिविधियों का पूर्वावलोकन करने के दावे के साथ गठित तीसरा मोर्चा अभी भी न जाने क्यों किसी की राह देखता चुप्पी साधे मानो स्थिति का जायजा ले रहा है । साथ ही जनता में उत्सुकता भी बनाए हुए है कि ये तीसरा चुनावी नैया में पार तक जा पाएगा या भंवर में फंस जाएगा।  जहां तक दोनों प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों की सूचियों का सवाल है उनमें  झमेला उठ खड़ा हुआ है और कद्दावर नेता से लेकर मंत्री तक पद त्याग कर और  पार्टी छोड़ कर निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं किंतु तीसरे मोर्चे की ओर झांक भी नहीं रहे। बड़ी रंगबाजी के बाद कांग्रेस की सूची आने के बाद बीजेपी से पेशतर कुछ ज्यादा ही सुर्खियां बटोरने में कामयाब रही चुनावी गतिविधियों के बीच भी तीसरा मोर्चा मीडिया में नामूदार नहीं है। हालांकि तीसरे मोर्चे की दशा और दिशा चुनावी मौसम के आरंभ काल में  कुछ हद तक ठीक दिखाई दे रही थी ।  इस महीने के शुरू होने से 1 दिन पूर्व राजधानी गुलाबी नगर में इसके नामकरण और चिन्हीकरण की घोषणा भी हो गई । यानी चुनाव चिन्ह के साथ नाम भी पार्टी का तीसरे मोर्चे ने घोषित कर दिया।  बावजूद इसके अभी तक ऐसा महसूस नहीं हो रहा कि तीसरा मोर्चा सरकार गठन में अपनी भूमिका को महत्वपूर्ण कर सकेगा ।

प्रत्याशी बनने का रुझान रखने वालों का पूरा रुझान दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की ओर से निराश होकर  एकला चालो की तर्ज पर निर्दलीय बन मैदान में उतरने की ओर झुका नजर आ रहा है। छोटी पार्टियों की दशा भी कुछ अच्छी नहीं है । एक क्षेत्रीय पार्टी से भी सदस्य के इस्तीफा देने की बात सामने आ रही है और कहा जा रहा है कि पार्टी के पास कार्यकर्ता नहीं हैं। ऐसे में तीसरा मोर्चा सरकार के गठन में अपनी वांछित आवाज बुलंद कर पाएगा यह अभी भी कहना मुहाल है । कहा यह भी जा रहा है कि नामांकन प्रक्रिया के बाद स्थिति लगभग 23 नवंबर 24 नवंबर तक इस लायक हो सकेगी कि राजनीतिक विश्लेषक अपनी पुख्ता राय जाहिर कर सकें कि राजस्थान में भाजपा कांग्रेस में किसका पलड़ा भारी होगा ।

नतीजों के आने तक कयास ये भी रहेंगे कि बहुमत से दूर रहने पर प्रमुख पार्टियों को निर्दलीय अथवा  तीसरे मोर्चे की शरण में ना जाना पड़ जाए । ऐसा हुआ तो समझो बादशाह बोले – बैंगन के सिर पर ताज !