महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में युद्धाभ्यास के दौरान साथ-साथ नजर आये भारतीय टैंक बीएमपी और अमेरिकी टैंकर स्ट्राइकर। - Dainik Bhaskar

बीकानेर,

एक के बाद एक धांय-धांय करके चलती गोलियां और उसकी तकनीकी ओर को बड़ी गौर से देखते भारतीय जवान। ऐसा क्या है इस हथियार में जो इसे हमारे हथियार से बेहतर बना रहा है और किन चीजों में हमारा हथियार ज्यादा कारगर है। महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में भारत और अमेरिकी सैनिकों के बीच चल रहे युद्धाभ्यास में दर्जनों हथियारों की जानकारी का आदान-प्रदान हो रहा है। खास बात यह है कि अमेरिकी जवान भी अपने हथियारों की खूबी बताने में कोई कंजूसी नहीं बरत रहे हैं। पहले दो दिन रणनीति तैयार करने में व्यस्त रहे दोनों सेनाओं के जवान जल्द ही मैदान में इन हथियारों को उपयोग करने की जानकारी देंगे।

भारतीय टैंक बीएमपी 2 में पोजिशन लिए हुए दो जवान।
भारतीय टैंक बीएमपी 2 में पोजिशन लिए हुए दो जवान।

भारतीय सारथी बना आकर्षण का केंद्र

भारत का बीएमपी-2 टैंक अमेरिकी जवानों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह टैंक वैसे तो बहुत परानी जेनरेशन का है लेकिन मैदान में दौड़ते वक्त इसकी रफ्तार देखते ही बनती है। सारथ और सारथी के नाम से पहचान रखने वाले इस टैंक में दो रूम है। एक तरफ नजर रखने के लिए एक जवान और दूसरी तरफ नजर रखने के लिए दूसरा जवान है। दोनों को बाहर हमला करने के लिए देखते रहना है। इसमें एक लेंस भी इनबिल्ट है। दोनों जवानों में से जिसे भी लगे कि अब हमला किया जा सकता है, वह गोला दाग देता है। खास बात यह है कि दुश्मन को अंदर बैठे ये जवान नजर नहीं आते। बीएमपी 2 वर्ष 1980 में भारतीय सैन्य बेड़े में शामिल हुआ था। इस टैंक में गोला दागने की सुविधा के साथ ही एक 7.62 एमएम की गन भी दी गई है ताकि दुश्मन ज्यादा नजदीक हो तो आसानी से उसे शिकार बनाया जा सके। यह टैंक जमीन के साथ साथ पानी में भी उतर सकता है। इसे चैरियट ऑफ विक्ट्री यानी विजय का रथ भी कहा जाता है। ये दुश्मन के रडार में नहीं आता। खास बात यह है कि ये भारत की ऑर्डनेंस फैक्ट्री मेदक में बनाया गया है। भारत के पास वर्तमान में ऐसे 2500 टैंक है।

भारतीय टैंक से अलग है अमेरिकी स्ट्राइकर

अमेरिका का टैंक स्ट्राइकर थोड़ा अलग है। बीएमपी 2 में जहां दो जवान एक-दूसरे की पीठ का सहारा लेकर बैठते हैं, वहीं स्ट्राइकर में ऐसा नहीं है। यह एक खुले रूम की तरह है, जहां बैठने के लिए छोटी-छोटी चेयर दी गई है। यहां एक साथ बैठकर दो से तीन जवान एक साथ काम कर सकते हैं। इन टैंक में अत्याधुनिक सुविधाएं हैं। दुश्मन कितना पास है, यह आसानी से पता चलता है। एक मॉनिटर पर कई तरह की सूचनाएं आती रहती है। अमेरिकी स्ट्राइकर छुपा रुस्तम​​​​​​ है। दुश्मन को पता ही नहीं चलता कि कब वो मौत बनकर उसके सामने आकर खड़ा हो गया। पहियों पर चलने के कारण इसकी गति अच्छी है और खुले मैदान में तो यह बहुत गति के साथ दौड़ता है। चक्के बड़े हैं इसलिए उबड़-खाबड़ रास्ता हो या फिर छोटे पानी से भरे रास्ते, इसके आड़े नहीं आते। स्ट्राइकर को लगातार अपडेट किया जा रहा है। ये यूएस आर्मी के स्ट्राइकर ब्रिगेड कॉम्बेट का हिस्सा है। एक तरफ जहां भारतीय टैंक साल 1986 का है, वहीं स्ट्राइकर को वर्ष 2002 में शामिल किया गया।