बीकानेर। देश में अपनी सबसे अलग पहचान रखने वाली बीकानेरी अलमस्त होली की हंसी-ठिठोलियां थम्ब स्थापना के साथ ही हो जायेगी। फाल्गुन मास की अष्टमी से होलिका दहन के दिन तक मरू शहर बीकानेर में चंग पर पड़ती रसियों के गीतों की थाप, देवर-भाभी की नोंक-झोंक से ओतप्रोत गीतों के बोल, दूधिया प्रकाश में डांडिया नृत्यों के आयोजन व जग प्रसिद्ध ऐतिहासिक रम्मतें होलाष्टक में बीकानेर के लोगों को अपनी रसमयता में डूबोये रखते है। गली-गली गुवाड़ तथा चौक चौराहों पर नजर आने वाली मस्ती भरे नजारों से यहां के वाश्ंिादे उनमें डूबे रहते है। होलाष्टक के प्रथम दिन से ही इनको शुरू होते है मस्ती भरे नजारे जिससे न केवल मजाक करने वाले हंसते है बल्कि जो बुद्धू बने है वे भी हंसे बिना नहीं रह पाते है। अलबेलों और अनूठों के शहर में बच्चों से बूढ़ों तक सभी मस्ती में संलग्न रहते है। हर पल हर क्षण मस्ती के आलम। बच्चों व युवाओं के साथ महिलाएं भी मजाक में पीछे नहीं रहती। वहीं होलाष्टक में लड़की रूप में स्वांग बने लड़कों की हरकतें, नखरें व कार्य देखते ही बनते है। मंडली के साथ चलने वाले ये स्वांग रूपी लड़कियां किसी भी स्थान पर खड़े होकर नृत्य करने, आने जाने वाले लड़कों को आंख मारने, सुंदर व जवान लड़के की चुंबन लेने, किसी दुपहिया वाहन के पीछे बैठकर दूसरे लड़कों को इशारे करने, किसी लड़की के साथ पति पत्नी के रूप में चौराहों पर फेरे लेने व लड़की रूपी स्वांग बने लड़के द्वारा सामूहिक रूप से एकत्रित होकर विवाह के मांगलिक गीत गाते हुए चलना मस्ती भरे आलम को चार चांद लगाते है। रम्मतों में बनने वाली मेहरियों तथा स्वांग रूप में लड़की बनकर नृत्य करने वालों के साथ बूढ़ों द्वारा भी गीत नृतय करने वालों के साथ बूढ़ों द्वारा भी गीत नृत्य में शामिल होना जीवन को हंसी खुशी से खुलकर जीने का संदेश देते है। होली के रसिये बताते है कि वर्षों पूर्व जब ग्रामीणजन होलाष्टक में शहर की गलियों में से गुजरते थे तो उनकी पाग को चमचेड़ द्वारा पकड़कर ऊपर की ओर खींच ली जाती थी। नेग देने पर ही पाग को पुन: लौटाते थे वहीं छोटे बच्चे इनके पीछे लोहे के डिब्बे से बने भोंपू को बजाकर डराते थे। होलाष्टक के प्रथम दिन से होलिका दहन के दिन तक चलने वाले ये मस्ती भरे आलम शहर की फिजा को ही बदल देते है। आपसी प्रेम सौहार्द तथा त्यौहारों को जाति व धर्म समाज की परिधियों से अलग रखकर बीकानेर की गंगा जमुनी संस्कृति की झलक भी प्रस्तुत करते है।
सिमटती चंग की थाप
एक समय था जब बसंत पंचमी के साथ ही शहर में अनेक स्थानों पर चंग की थाप के साथ होली के रंगीले गीत सुनाई देते थे और रसिये देर रात तक टेरियों के साथ गीतों पर मदमस्त होते थे लेकिन आधुनिकता के इस दौर में अब शहर में चंग की थाप सिमट सी गई है। कभी होली के पखवाड़े पूर्व से ही चंग की थाप की अनुगूंज रंगपर्व के सन्निकट होने का आभास कराती थी, लेकिन अब इक्का-दुक्का स्थानों पर ही यह कर्णप्रिय थाप सुनाई देती है। फागुन के साथ ही कुछ सालों पहले तक शहर में गूंजने वाले चंग और उसकी थाप पर गीत गाते लोग अब दिखाई नहीं देते। यह थाप दिन के वक्त बाजारों में तो रात को मुख्य चौराहे पर गूंजती थी। चंग के रसिक रात को कभी कोटगेट तो कभी जूनागढ़ के सामने, जस्सूसर गेट के बाहर जाते थे और नाचते भी थे। शहर के कई मोहल्लों में भी चंग बजाने वाली टोलियों को बुलवाया जाता था और रात तक चंग पर मोहल्लेवासी होली के गीतों का आनंद उठाते थे। होली में दस दिन शेष हैं और इस बार दिन में भी चंग बजाने वाली टोलियां नजर नहीं आई हैं। हालांकि, शहर में इस परम्परा को चंद ही लोगों ने जीवित रखा है।
साफा बांधे दिखेंगे रसिये
थम्ब स्थापना होते ही होली के रसिये व बीकानेरी परंपरा को जीवंत करने वाले लोग रंग-बिरंगे राजस्थानी साफों में नजर आयेंगे। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी आयु वर्ग के लोग रंग-बिरंगे तथा विभिन्न प्रकार के साफों में घुमते देखे जा सकेंगे। इसके लिए व्यासों के चौक, आचार्य चौक, बिस्सों का चौक सहित अनेक स्थानों पर साफे बांधने वाले भी पाटों पर अलमस्ती करते देखे जायेंगे।
अपनाघर आश्रम में होगा फागोत्सव
मां माधुरी बृज वारिस सेवा सदन अपनाघर आश्रम दीन-हीन, मंदबुद्धि, मनोरोगी, लावारिस, आश्रयहीन, परिवार एवं समाज द्वारा तिरस्कृत एवं पीडि़त मानव मात्र की सेवा में संचालित है। अपनाघर आश्रम के अध्यक्ष द्वारकाप्रसाद पचीसिया ने बताया कि अपना घर आश्रम में 15 मार्च को पुष्पों की रंग भरी होली मनायेगा। साथ ही नापासर, नोखा एवं बीकानेर की टोलियों को भी होली के फाग एवं लोक गीत गाने की प्रस्तुति देंगे।
किया थंब पूजन
मरूनायक चौक मे थम्ब पूजन विधि विधान से मरूनायक चौक में थम्ब स्थापित किया। मरूनायक ट्रस्ट के ट्रस्टी घनश्याम लखाणी ने बताया करनानी परिवार की ओर से अनिल करनानी,गोपाल कृष्ण मोहता, अशोक जोशी, बबला महाराज्र नानू भदाणी, बाबू बिहाणी, कृष्ण कुमार बाहेती, शिवशंकर पुरोहित सहित बड़ी संख्या में मोहल्लावासी उपस्थित थे।
बनने लगे भगभोळिये
होलिका दहन के दिन भाईयों की लंबी उम्र के लिये की जानी वाली माला घोळाई की तैयारियां भी शुरू हो गई है। जिसके लिये बहनों ने गोबर से बनने वाले भगभोळियों का निर्माण करना शुरू कर दिया है।
इस दिन होगी रम्मतें
13 मार्च  को  खेलणी सप्तमी
13 मार्च थंब पूजन
14 मार्च थंब पूजन
14 मार्च से भांग सम्मेलन मोहता चौक
14 मार्च फक्कडदाता रम्मत नत्थूसर गेट के अंदर
16 मार्च नौटंकी शहजादी,बिस्सो का चौक
17 मार्च फागणियां फुटबाल,धरणीधर मैदान
17 मार्च व्यास जाति की गेर
17 मार्च जमनादास कल्ला की रम्मत,व्यासों का चौक
18 मार्च हर्ष-व्यास जाति का डोलची खेल
18 मार्च स्वांग मैरी रम्मत बारह गुवाड़
18 मार्च स्वांग मैरी रम्मत मरूनायक चौक
18 मार्च अमरसिंह राठौड,आचार्य चौक
18 मार्च शहजादी नौटंकी,बारह गुवाड़
19 मार्च हाडउ मैरी बारह गुवाड
20 मार्च ओझा-छंगाणी डोलची खेल,बारह गुवाड
20 मार्च होलिका दहन
21 मार्च धुलंडी
रंग की रंगत-शब्द की संगत चंदन तिलक संग ”
बीकानेर। नगर के चेतनाधर्मी एवं विभिन्न कलाकर्म से जुड़े नगर के रंगप्रेमी-शब्द साधकों द्वारा गत वर्ष की भांति ही नवपहल एवं नवाचार के साथ होली के पावन पर्व पर स्थानीय नागरी भण्डार स्थित नरेन्द्र सिंह ऑडिटोरियम में 17 मार्च को शाम 5 बजे ‘रंग की रंगत-शब्द की संगतÓ का भव्य रंगा रंग आयोजन रखा गया है। संयोजक कवि कथाकार कमल रंगा ने बताया कि कार्यक्रम का आगाज ‘चंदन तिलकÓ से होगा।
आयोजन में पर्ची द्वारा आबंटित कविता, गीत, गजल, नज्म, चुटकले, संस्मरण संवाद आदि तो अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करना होगा साथ ही रंग की रंगत वाली एक रचना भी प्रस्तुत की जा सकती है। कार्यक्रम हास्य की फुहार व्यंग्य के तीर संग, उमंग-तरंग के साथ शब्द दर शब्द रंगत से सराबोर होगा। कार्यक्रम में ‘फ न वल्र्ड पार्क, नाल का सहयोग रहेगा।